पत्रकारिता छोड़ गरीबों का तन ढक रहे आनंद मोहन

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आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में किसी के पास  इतना समय नहीं है कि वो किसी दूसरे का दुख दर्द समझे। सुबह से लेकर शाम होने तक हर इंसान सिर्फ अपने नफे-नुकसान के बारे में सोचता रहता है। किसी के पास इतना वक्त नहीं है कि वो उन गरीब और मजलूम लोगों के बारे में भी सोचे जिनके नसीब में गरीबी और लाचारी के अलावा ऊपर वाले ने शायद कुछ भी नहीं लिखा है। लेकिन सरपट दौड़ रहे इस स्वार्थी समाज में अब भी कुछ लोग हैं जिन्हें फिक्र है उन लोगों की जिनको खाने के लिए न रोटी है न तन ढकने के लिए कपड़ा। लेकिन इन लोगों के द्वारा किए गए एक छोटे से प्रयास ने उन चेहरों पर मुस्कान बिखेरी है जिनकी आंखों में हमेशा उम्मीद के आंसू के सिवा कुछ भी नही होता था।

दो साल पहले हुई कपड़ा बैंक की शुरूआत

हम बात कर रहे हैं इलाहाबाद में चलाए जा रहे कपड़ा बैंक की। इस बैंक को वरिष्ठ पत्रकार आनंद मोहन श्रीवास्तव ने करीब 2 साल पहले 30 जनवरी 2016 को शुरू किया था। आनंद मोहन देश के कई बड़े मीडिया संस्थानों में ऊंचे पदों पर काम कर चुके हैं। जब इस बैंक को शुरू किया गया तो सिर्फ दो लोग थे। इलाहाबाद का ये कपड़ा बैंक आज मध्य प्रदेश और दिल्ली जैसे शहर तक पहुंच गया है। आनंद मोहन ने जर्नलिस्ट कैफे से बातचीत में बताया कि शुरूआत में सिर्फ वो और उनके एक मित्र ने इस कपड़ा बैंक को शुरु किया था, जिसमें देखते ही देखते आज करीब 50 लोग जुड़ गए हैं।

वीडियो : 

https://www.facebook.com/anand.mohansrivastava.14/videos/1483767611666655/

गरीबों को मुफ्त में मिलता है कपड़ा

आनंद मोहन ने बताया कि इस बैंक के माध्यम से वो गांव के उन गरीबों को कपड़ा मुहैया कराते हैं जिन्हें वाकई में इन कपड़ों की जरुरत है। पहले इनकी टीम गांवों का दौरा करती और पता करती है कि कौन सा ऐसा परिवार या लोग हैं जिन्हें इन कपड़ों की जरुरत है, फिर उसके बाद हर महीने की एक तारीख को ये लोग गांव में जाकर कपड़ा बांटते हैं।

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कोई भी सरकारी मदद नहीं लेते

उन्होंने बताया कि ये कोई एनजीओ नहीं है, और न ही सरकार से किसी तरह की कोई मदद लेते हैं। इसमें जितने भी सदस्य है उनके पास एक-एक गुल्लक है जिसमें वो 10-20 रुपए डालते रहते हैं और महीने के अन्त में उन सभी पैसों को मिलाकर कपड़े खरीदे जाते हैं और लोगों से पुराने कपड़े लेकर गरीबों में बांटते हैं। अगर कोई आर्थिक मदद करने की कोशिश करता है तो उसे ये कहकर वापस कर दिया जाता है कि आप इन पैसों से कपड़े खरीदकर दे सकते हैं लेकिन पैसे नहीं। आगे उन्होंने बताया कि पिछले दो सालों में करीब 12-13 हजार लोगों को कपड़ा बैंक से कपड़ा बांटा जा चुका है।

कई शहरों में पहुंचा संगठन

इलाहाबाद से शुरू हुआ ये कपड़ा बैंक अब तक धीरे-धीरे कौशांबी, प्रतापगढ़, वाराणसी, नोएडा, कानपुर, लखनऊ व मिर्जापुर तक जा पहुंचा है।

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