अमरमणि की वापसी से बदलेगा पूर्वांचल की राजनीति का ग्राफ, जानें रिहाई के पीछे क्या है बीजेपी का प्लान

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यूपी के पूर्वांचल की राजनीति में दो दशकों तक साख जमाने वाले नेता और हत्या के आरोप में दोषी पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी अपनी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी के साथ रिहा हो गए है, साल 2003 में कवयित्री मधुमिता की हत्या के ममाले में साल 2007 में कोर्ट नें अमरमणि और उनकी पत्नी मधुमणि को दोषी पाने के बाद आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, बीते कई सालों से सजा काट रहे पति-पत्नी की सजा को माफ होने के साथ ही दोनों बाहर आ गए है।

लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान अमरमणि की रिहाई को बीजेपी के राजनीतिक दांव के तौर पर भी देखा जा सकता है, वही बड़ा सवाल ये भी है कि अमरमणि की सियासत में वापसी सियासत पर क्या असर डाल सकती है। इसके अलावा दंडित होने की वजह से वे राजनीति की मुख्यधारा में आ नहीं सकते है, ऐसे में जमीन नेपथ्य में ही तलाशने की कवायद होगी। हालांकि, उनकी यह सक्रियता किसको फायदा पहुंचाएगी नजरें इस पर भी हैं।

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इसके साथ ही अमरमणि की रिहाई का ये वो समय है जब पूर्वांचल के बाहुबली ब्राह्मण चेहरे हरिशंकर तिवारी का निधन हो गया है और उनके छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी फिलहाल सपा का दामन थाम चुके है। वही बड़े बेटे भीष्म शंकर तिवारी साल 2019 में संतकबीरनगर से एसपी-बीएसपी गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा लड़े थे और हार गए थे। ऐसे में यह कहना गलत न होगा दोनो ही अपने अस्तित्व और पद के संघर्ष से गुजर रहे है। वहीं, आपको बता दें कि, अमरमणि को राजनीति में लाने वाले हरिशंकर तिवारी ही थे।

हर दल में अमरमणि ने आजमाई किस्मत

दो दशक की सक्रिय राजनीति करने वाले अमरमणि का दखल फिलहाल हर दल में रहा है। ऐसे में उन्होने साल 1980 में हरिशंकर तिवारी ने उन्हें बाहुबली वीरेंद्र प्रताप शाही के खिलाफ चुनाव लड़ा लेकिन इन में उन्हें हार का सामना करना पडा। इसके बाद महराजगंज जिले की लक्ष्मीपुर विधानसभा से कांग्रेस की तरफ से अमरमणि ने चुनाव लडा और जीत हासिल कर विधायक बने, इसके बाद कांग्रेस से ही उनको दो बार हार का सामना करना पडा। इसके बाद साल 1996 में उन्हे एक बार फिर कांग्रेस से टिकट मिला और इन्होने कल्याण सिंह के खिलाफ जीत दर्ज की थी। सके बाद लोकतांत्रिक कांग्रेस का हिस्सा बन गए। इसका इनाम उन्हें बीजेपी सरकार में मंत्री के तौर पर मिला।

जेल से जीता था चुनाव

2001 में बस्ती के एक व्यवसायी के बेटे के अपहरण में नाम आने के बाद मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया गया। 2002 में अमरमणि बीएसपी से चुनाव लड़े और जीते। अगले साल ही मधुमिता हत्याकांड में नाम आने के बाद उनकी गिरफ्तारी हुई। इस बीच सरकार की बागडोर मुलायम के हाथ आई और उन्होंने सपा का दामन थाम लिया। 2007 में जेल में रहते हुए वह एसपी से विधायक बने। हालांकि, इसके बाद मधुमिता के हत्या में आजीवन कारावास हो गया।

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चुनाव के समय अमरमणि की रिहाई का बीजेपी ने क्यो खेला दांव

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अमरमणि की रिहाई को लेकर लोगों का मानना है कि, यह बीजेपी का बड़ा सियासी दांव हो सकता है। दरअसल, ये फैसला पूर्वी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाताओं को रिझाने के लिए बीजेपी ये दांव खेल सकती है। ऐसे में त्रिपाठी की रिहाई से बीजेपी को ब्राह्मणों का समर्थन हासिल करने में मदद मिल सकती है और जैसा की आपको मालूम है कि, अमरमणि त्रिपाठी चार बार विधायक रहे। उन्होंने जेल के भीतर रहते हुए भी चुनाव जीता और वो यूपी के सभी चारों बड़े राजनीतिक दलों कांग्रेस, बीजेपी, समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी में शामिल रहे हैं।

हालाकि, रिहाई के बाद अमरमणि किस पार्टी में जाएंगे, इस योजना को फिलहाल उनके परिवार ने मीडिया से साझा नहीं किया है, अमरमणि त्रिपाठी के बेटे, 32 वर्षीय अमनमणि त्रिपाठी भी पूर्व विधायक हैं और फ़िलहाल अपनी पत्नी सारा की हत्या के मामले में जेल से बाहर है, इस अनुसार अमरमणि उनके परिवार के लिए राजनीति में बडें चेहरे के तौर पर है। वही एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमरमणि के पैतृक गांव पाहुणी में उनके परिवार को पूरा समर्थन मिलता रहा है। वही सभी धर्म और जातियां उनका पूर समर्थन करते है।

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