अच्छा तो… इस पूर्व IAS की वजह से बेघर हो गए अखिलेश-मायावती
सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश और सारे पूर्व मुख्यमंत्रियों की नींद उड़ गई। आदेश था जल्द से जल्द सरकारी आवास खाली करने का। आदेश के साथ ही शुरु हुआ मिन्नतों का दौर…कभी अखिलेश बंगला खाली करने के लिए मोहलत मांगते तो कभी मायावती से बंगले का मोह न छूटता। तो दूसरी तरफ मुलायम सिंह भी दर-दर घर तलाशने और सहारा ढ़ूढने को मजबूर हो गए।
आखिर कौन है वो व्यक्ति…
लेकिन, क्या आपको पता है बंगला खाली कराने के पीछे किसका हाथ है। वो व्यक्ति जिसने अखिलेश यादव, मायावती और राजनाथ सिंह जैसे कद्दावर नेताओं को बंगले खाली करने पर मजबूर कर दिया। हम आपको बताते है आखिर कौन है वो व्यक्ति उस व्यक्ति का नाम है एसएन शुक्ला। समाजसेवी, वकील और पूर्व आईएएस एसएन शुक्ला रिटायरमेंट के बाद पिछले 15 सालों से लोकतंत्र को मजबूत करने की लड़ाई लड़ रहे हैं। ये वो व्यक्ति हैं जिन्होंने कद्दावर नेताओं को उनके सरकारी बंगले खाली करने पर मजबूर कर दिया।
दरअसल शुक्ला ने ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसकी वजह से इन नेताओं को अपने बंगले खाली करने पड़े। सरकारी बंगलों पर कब्जा जमाए पूर्व सीएम की लिस्ट में अखिलेश यादव, मायावती, एनडी तिवारी, राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह और मुलायम सिंह जैसे कद्दावर नेताओं के नाम शामिल हैं, जो सालों से अपने सरकारी आवासों पर काबिज थे। ये पहला मौका नहीं था, जब शुक्ला ने अपनी याचिकाओं के बूते ताकतवर सत्ता को हिलाया हो। इससे पहले भी उन्होंने कई बड़े फैसलों को पलटा था। अपने आईएएस करियर के दौरान उन्होंने कई बड़े पीडब्ल्यूडी, एक्साइज, राजस्व, सिंचाई जैसे महत्वपूर्ण विभाग संभाले।
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इसके अलावा वीपी सिंह, श्रीपति मिश्रा, एनडी तिवारी, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और मायावती के अधीनस्थ काम किया है। वहीं से उन्होंने कानून की ताकत समझी। शुक्ला ने रिटायरमेंट के बाद शुरु हुआ समाजसेवा का दौर… 2003 में हुए रिटायरमेंट के बाद से ही वो एक एनजीओ के साथ जुड़े। जो कुछ पूर्व आईएएस अधिकारियों, जज और दूसरे सरकारी अधिकारियों ने मिलकर स्थापित किया था। ऐसे अधिकारियों की संख्या 20 थी। इनमें कुछ प्रमुख नाम पूर्व इलेक्शन कमिश्नर और गुजरात के गर्वनर आर के त्रिवेदी, पू्र्व डीजीपी और यूपीएससी के चेयरमैन रहे जेएन चतुर्वेदी और इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज एसएन सहाय शामिल थे।
पहले भी किए कई बड़े बदलाव
इससे पहले शुक्ला ने अपनी याचिकाओं से बड़े बदलाव किए हैं। 2013 में लोक प्रहरी एनजीओ ने अदालत में दोषी नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोला। उन्हीं की मुहिम का असर था कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि सज़ायाफ्ता सांसद या विधायक सजा की तारीख से पद पर रहने के अयोग्य होंगे। इसके बाद NGO ने रिप्रजेंटेशन ऑफ द पीपुल एक्ट 1951 को अदालत में चुनौती दी। इसका असर हुआ कि कोर्ट ने दोषी व्यक्ति के वोट देने पर प्रतिबंध और ऑफिस जाने पर रोक लगा दी। साल 2015 में एनजीओ ने अदालत में चुनावों के दौरान नेताओं की पत्नियों और संबंधियों की संपत्ति के स्त्रोतों की जानकारी सार्वजनिक करने की मांग की थी।
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