मरते-मरते भी 5 लोगों को दे गई जिंदगी

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अंग प्रत्यारोपण मरीजों की जान बचाने में अहम साबित हो सकता है, लेकिन दानकर्ताओं के अभाव में बहुत से मरीज प्रत्यारोपण के इंतजार में रहते हैं। आंकड़े बताते हैं कि भारत में प्रति दस लाख लोगों पर अंगदान करने वालों की संख्या एक से भी कम है। भारत में किसी व्यक्ति की मौत के बाद उसके अंग किसी जरूरत मंद को दान देने के मामले कभी-कभी ही सामने आते हैं। लेकिन कुछ लोग दूसरों के लिए ही जीते हैं। हम बात कर रहे हैं 18 साल की अंजू की। अंजू को बचपन से ही दूसरों को खुश देखने में खुशी मिलती थी। दूसरों की जिंदगी में खुशियां भरने की इस आदत को अंजू ने मरने के बाद भी नहीं छोड़ा।

परिवार ने लिया अंगदान का फैसला

परिवार के मुताबिक, एक सड़क हादसे में अंजू बुरी तरह से घायल हो गई थी, जिससे उसके सिर पर गहरी चोटें आई। उसे इलाज के लिए पीजीआई अस्पताल, चंडीगढ़ ले जाया गया। लेकिन डॉक्टरों की कोशिश के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका। घरवालों को जैसे ही ये बात पता चली, उन्होंने डॉक्टरों से कहा कि वह अंजू के अंगों को डोनेट करेगें। उनका कहना था कि अंजू को बचपन से ही दूसरों को अपनी चीजे देना अच्छा लगता था। वह दूसरों को खुश देखकर खुश होती थी। अंजू के अंग जब दूसरे लोगों की जिंदगी बचाने के काम आएंगे तो अंजू की आत्मा को जरूर शान्ति मिलेगी।

5 लोगों की जिंदगी में आई खुशियां

अंजू के दिए गए अंगों से आज पांच लोगों की जिंदगियों में खुशियां आईं हैं। अंजू की किडनी, लीवर और कोर्निया को जरूरतमंद लोगों को दान किया गया। डॉक्टरों के मुताबिक उसका हार्ट भी दिया जाना था, लेकिन उन्हें उसके लिए कोई सही जरूरतमंद नहीं मिला।

बेटी के होने का एहसास

अंजू के पिता ने कहा कि उनके बेटी के अंग जिस किसी के भी शरीर में होंगे, हमें अंजू के होने का एहसास कराएंगे। अंजू का शरीर भले ही खत्म हो गया हो, लेकिन अंजू ने आज पांच लोगों के शरीर को अपना बना लिया है। आज के आधुनिक युग में किसी भी परिवार के लिए अंगदान करने जैसा फैसला लेना मुश्किल काम है, लेकिन अंजू के माता-पिता यह फैसला लेकर समाज के प्रति एक सकारात्मक उदाहरण पेश किया है।

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