आखिर शेर ही क्यों है मां दुर्गा का वाहन ….?

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2023 navratri special : बीते 15 अक्टूबर से नवरात्र व्रत की शुरूआत हुई, बंगाल के साथ – साथ पूरे भारत में नवरात्र के खास मायने है। भक्त पूरी श्रद्धा – भाव से व्रत अर्चना करते है, दुर्गा की स्थापना कर लोग विशेष पूजा करते है। ऐसे में अक्सर तस्वीर में सिंह पर सवार माता दुर्गा को देखते है तो, एक सवाल मन में आता है कि, आखिर मां की सवारी शेर ही क्यों है, इस की क्या वजह और क्या है इसके पीछे की कहानी ?

आपको बता दें कि, हम नवरात्र के दिनों में मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करते है, इसके अलावा कुछ स्थानों पर मां दुर्गा के समक्ष शस्त्र पूजने का रिवाज भी है। वेसे तो शस्त्रों को पूजन का दिन दशहरें को माना गया है। दशहरे के दिन ही शस्त्रों, विशेष तौर पर तलवार की पूजा भी होती है, पौराणिक कथाओं में सुनने को मिलता है कि, भगवान राम जब रावण का वध किया तो उससे पहले नौ दिनों तक मां दुर्गा का पूजा- अर्चना की थी।

कुल मिलाकर मां दुर्गा की छवि एक युद्ध के लिए सुसज्जित देवी की है जिनके हाथ में तलवार, भाला, गदा, धनुष, आदि शस्त्र होते हैं। ऐसे में शेर स्वाभाविक तौर पर उनकी सवारी लगता है। लेकिन यह कारण बिल्कुल भी इस बात को साबित नहीं होता की इस वजह से मां दुर्गा का वाहन शेर बना, तो आखिर क्या है वजह जिसकी की वजह से शेर बना मां दुर्गा का वाहन….

आइए जानते है कैसे बना शेर मां दुर्गा का वाहन

इसको लेकर समाज में दो कहानी प्रचलित है, जिनमें पहली कथा है कि, भगवान शिव को पाने के लिए मां पार्वती तपस्या कर रही थी। तब उनका शरीर सांवला पड़ गया था। जिसके बाद भगवान शिव ने मजाक में शिव को काली कह दिया, जिससे नाराज होकर मां पार्वती अपना गोरा रूप वापस पाने के लिए तपस्या करने लग गयी है। देवी मां के कई रूप देखने को मिलते है, जिसमें सबसे ज्यादा मां दुर्गा की पूजा की जाती है। वैसे तो शस्त्रों और वाहनों की पूजा का रिवाज दशहरे के दिन करने का है, लेकिन नवरात्रि के दौरान कई जगह शस्त्रों, विशेष तौर पर तलवार की पूजा भी होती है।

बताते है कि, भगवान राम ने रावण वध से पहले नौ दिन तक देवी मां की पूजा अर्चना की थी और फिर रावण का वध किया था। कुल मिलाकर मां दुर्गा की छवि एक युद्ध के लिए सुसज्जित देवी की है, जिनके हाथ में तलवार, भाला, गदा, धनुष, आदि शस्त्र होते हैं। ऐसे में शेर स्वाभाविक तौर पर उनकी सवारी लगता है, लेकिन शेर उनकी सवारी कैसे बना इसकी भी कथा है।

दूसरी पौराणिक कथा

मां दुर्गा का वाहन शेर बनने को लेकर समाज में प्रचलित दूसरी कथा में बताया गया है कि, एक बार महादेव ध्यान करने बैठे और अनंत काल के लिए समाधिस्थ हो गए। इस दौरान मां पार्वती उनकी काफी वक्त तक प्रतीक्षा करती रहीं, लेकिन भोलेनाथ तपस्यारत ही रहे। तब मां पार्वती खुद भी कैलाश पर्वत को छोड़कर घने जंगल में तपस्या के लिए चली गईं। जिस वक्त माता पार्वती तपस्या में लीन थीं, उसी वक्त वहां एक सिंह आ गया।

सिंह कई दिनों से भूखा था। माता को देखकर उसने मां पर हमला करना चाहा, लेकिन तप के सुरक्षाचक्र का घेरा वह तोड़ नहीं सका। यह देखकर वह मां के पास में ही तपस्या पूरी होने का इंतजार करते हुए बैठ गया। उसने सोचा तपस्या से उठने के बाद वह शिकार कर भूख मिटाएगा।

देवी मां की तपस्या की वजह से शिवजी प्रसन्न हुए और उन्हें वापस कैलाश पर्वत पर ले जाने आ गए।जब माता पार्वती चलने के लिए उठीं तो उनकी निगाह उस सिंह पर पड़ी जो उनका शिकार करने का इंतजार कर रहा था। योग दृष्टि से उन्होंने जान लिया कि आखिर यह शेर क्या चाहता है। ममतामयी मां को उस सिंह पर दया आ गई और उन्होंने उसकी प्रतीक्षा को ही तपस्या मान लिया और उसे अपने साथ ले गईं। उसी दिन से सिंह दुर्गा मां का वाहन बन गया।

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ध्यान देने वाली बात यह है कि, जहां मां दुर्गा पार्वती का रूप है। वही नवरात्रि के मौके पर मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है और हर देवी का अलग स्वरूप होता है, साथ ही उन अलग वाहन भी होता है। जिसमें मां दुर्गा, स्कंद माता सिंह पर सवार है, वही माता पार्वती शेर पर सवार है, देवी कुष्मांडा और माता चंद्रघंटा का वाहन शेर है, शैलपुत्री और महागौरी का वाहन वृषभ है, तो महिषासुर का वध करने वाली कात्यायनी देवी का वाहन सिंह बताया गया है ।

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