लाभ का पद: ‘आप’ के लिए मुश्किल रहे हालात, अब मिली यह राहत
नई दिल्ली [जेएनएन]। तीन साल तक दिल्ली की सियासत में ‘आप’ विधायकों के लिए हालात कमोबेश आसान नहीं रहे। लाभ के पद मामले में चली लंबी लड़ाई के बाद दिल्ली हाई कोर्ट से आम आदमी पार्टी की सरकार को बड़ी राहत मिली है। लाभ के पद मामले में अयोग्य ठहराए गए ‘आप’ के 20 विधायकों की सदस्यता बहाल कर दी गई है। चुनाव आयोग की सिफारिश को खारिज करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि विधायकों की याचिका पर दोबारा सुनवाई हो। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने फैसले का स्वागत करते हुए ट्वीट किया, ‘सत्य की जीत हुई।’
‘आप’ में खुशी की लहर
आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता रद होने के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट की 2 जजों की बेंच ने यह बड़ा फैसला सुनाया है। बताया जा रहा है कि कोर्ट में 15 से ज्यादा पूर्व विधायक भी मौजूद थे। फैसला आते ही ‘आप’ के खेमे में खुशी की लहर दौड़ गई। चुनाव आयोग की ओर से फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
कोर्ट ने अपनी बात रखने का दिया मौका
‘आप’ नेता सौरभ भारद्वाज ने कहा है कि विधायकों को अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया गया था। अब कोर्ट ने उन्हें यह मौका दिया है। चुनाव आयोग दोबारा इस मामले की सुनवाई करेगा। गौरतलब है कि जनवरी में ‘आप’ विधायकों ने अपनी सदस्यता रद किए जाने के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट का रुख किया था। इसके बाद हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग को भी इस मामले में फैसला आने तक उपचुनाव नहीं कराने का आदेश दिया था।
संवैधानिक मुद्दा उठाया
‘आप’ विधायकों की अयोग्यता के मामले में याचिकाकर्ता प्रशांत पटेल ने कहा, ‘कोर्ट ने कहा है कि यह केस दोबारा खुलेगा। मैंने केवल एक संवैधानिक मुद्दा उठाया था, मेरे लिए यह कोई झटका नहीं है।’
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क्या कहता है कानून
संविधान का अनुच्छेद 102 (1) (a) और 191(1) (a) कहता है कि संसद या फिर किसी विधानसभा का कोई भी सदस्य अगर लाभ के किसी भी पद पर होता है, उसकी सदस्यता जा सकती है। यही नहीं दिल्ली एमएलए (रिवूमल ऑफ डिसक्वालिफिकेशन) एक्ट 1997 के अनुसार भी संसदीय सचिव को भी इस लिस्ट से बाहर नहीं रखा गया है। मतलब साफ है कि इस एक्ट के आधार पर इस पद पर होना ‘लाभ का पद’ माना जाता है। दिल्ली के किसी भी कानून में संसदीय सचिव का उल्लेख नहीं है, इसीलिए विधानसभा के प्रावधानों में इनके वेतन, भत्ते सुविधाओं आदि के लिए कोई कानून नहीं है।
कैसे हुई शुरुआत
दिल्ली में संसदीय सचिव पद की शुरुआत सबसे पहले भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री साहब सिंह वर्मा ने की थी। वर्मा ने एक संसदीय सचिव पद की शुरुआती की, लेकिन इस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस की शीला दीक्षित ने इसे बढ़ाकर तीन कर दिया। कांग्रेस और भाजपा ने आपसी तालमेल के कारण इस पद की वैधता पर कभी सवाल नहीं उठाए। लेकिन आम आदमी पार्टी ने पिछली कांग्रेस सरकार से सात गुना ज्यादा, 21 संसदीय सचिवों की नियुक्ति कर इस पूरे विवाद को जन्म दिया।
कब-कब क्या हुआ
13 मार्च 2015 को अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया गया।
19 जून को एडवोकेट प्रशांत पटेल ने राष्ट्रपति के पास इन सचिवों की सदस्यता रद करने के लिए आवेदन किया था।
राष्ट्रपति की ओर से 22 जून को यह शिकायत चुनाव आयोग में भेज दी गई। शिकायत में कहा गया था कि यह लाभ का पद है इसलिए ‘आप’ विधायकों की सदस्यता रद की जानी चाहिए।
मई 2015 में चुनाव आयोग के पास एक जनहित याचिका भी डाली गई थी। इसपर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा था कि विधायकों को संसदीय सचिव बनकर कोई आर्थिक लाभ नहीं मिल रहा।
20 जनवरी 2018 को चुनाव आयोग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को भेजी।
ये हैं 20 ‘आप’ विधायक
1. प्रवीण कुमार- विधायक (जंगपुरा)
2. शरद कुमार- विधायक (नरेला)
3. आदर्श शास्त्री- विधायक (द्वारका)
4. मदन लाल-विधायक (कस्तूरबा नगर)
5. शिव चरण गोयल- विधायक (मोती नगर)
6. संजीव झा-विधायक (बुराड़ी)
7. सरिता सिंह- विधायक (रोहतास नगर)
8. नरेश यादव- विधायक (महरौली)
9. राजेश गुप्ता- विधायक (वजीरपुर)
10. राजेश ऋषि- विधायक (जनकपुरी)
11. अनिल कुमार वाजपेयी- विधायक (गांधी नगर)
12. सोम दत्त- विधायक (सदर बाजार)
13. अवतार सिंह- विधायक (कालकाजी)
14. विजेंदर गर्ग विजय- विधायक (राजेंद्र नगर)
15. जरनैल सिंह- विधायक (तिलक नगर)
16. कैलाश गहलोत- विधायक (नजफगढ़)
17. अलका लांबा- विधायक (चांदनी चौक)
18. मनोज कुमार- विधायक (कोंडली)
19. नितिन त्यागी- विधायक (लक्ष्मी नगर)
20. सुखवीर सिंह- विधायक (मुंडका)
(साभार- जागरण)
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