मोदी की काशी: खतरे में लाखों जिंदगी
देश की राजधानी दिल्ली व मुंबई में अभी कूड़े में लगी आग का धूआं ठंडा भी नहीं हुआ था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी भी कूड़े की आग में जलने लगी है। जिला प्रशासन और नगर निगम एक लाख से भी ज्यादा लोगों के जीवन को तबाह कर देने पर तुला है।
वाराणसी के रमना और आसपास के गांव तथा उससे सटे शहरी इलाके में नगर निगम नियम विरुद्ध यहां महीनों से कूड़ा डंप कर रहा है। सवाल सिर्फ इतना ही नहीं कि रमना में कूड़ा गिराया जा रहा है। निगम के कर्मचारी उस कूड़े में आग भी लगा रहे हैं जो सबसे खतरनाक है।
कूड़े में आग जहां मानव ही नहीं समस्त जीवों के जीवन से खिलवाड़ है वहीं यह सुप्रीम कोर्ट और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइड लाइन के विपरीत है। लेकिन इससे नगर निगम को कोई सरोकार नहीं। नतीजा यह कि रमना गांव और आस-पास के करीब एक लाख से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आ रहे हैं।
रमना में कूड़ा डम्पिंग आस पास के गावों के एक लाख लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है। यह स्थान बीएचयू से मात्र तीन किलोमीटर, संत रविदास मंदिर से एक किलोमीटर और गंगा तट से 300 मीटर की दूरी पर है। बाढ़ का डूब क्षेत्र होने के कारण यहां बाढ़ के दिनों में 8-14 फीट तक पानी आ जाता है। ऐसे में कूड़ा बह कर आगे गांवों और रिहायशी इलाकों तक पहुंच जाता है तथा बाढ़ घटने पर वापस यही कूड़ा गंगा में भी मिलता है।
बता दें कि 2007 में उत्तर प्रदेश जल निगम ने गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अंतर्गत उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा रमना सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के लिए रमना में भूमि अधिग्रहीत की। तब से अब तक नौ साल बीत गए एसटीपी तो बना नहीं अब उसका उपयोग डंपिंग ग्राउंड के रूप में होने लगा।
रमना के बड़े भूभाग में कई फीट ऊंचाई तक कूड़े की पटान हो चुकी है। कूड़े से निकलने वाली मीथेन गैस से स्थान स्थान पर लगी आग से दुर्गन्ध युक्त धुआं और गैस आसपास के लोगों पर दुष्प्रभाव छोड़ रही है। पशु-पक्षी, खेती, बाग़ बगीचे सब प्रभावित हैं। लेकिन कोई पुरसाहाल नही है। कूड़े की ढेर पर गाय और अन्य पशु पॉलिथीन खा रहे है। कभी कभार कूड़े की आग में फस जाने से उनकी मौत भी हो जा रही है।
वाराणसी में पर्यावरण की प्रति सचेत कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं, कुछ संस्थाओं और संगठनों के साथ मिल कर शहर की कूड़े की स्थिति पर एक डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाने की प्रक्रिया प्रारंभ की गई है। इसमें सभी पहलू को लेने की कोशिश की जायेगी। इस प्रयास में आईआईटीबीएचयू के मालवीय उद्यमिता संवर्धन केंद्र, साझा संस्कृति मंच, केयर फॉर एयर अभियान आदि के सदस्य शामिल हैं।
कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बल्लभ पांडेय के नेतृत्व में गत 12 अप्रैल इलाके का दौरा कर वस्तुस्थिति की जानकारी ली है। बल्लभ पांडेय बताते हैं कि रमना पर अगर समय रहते ध्यान न दिया गया तो रमना ही नहीं आसपास की आबादी भी तहस-नहस हो जाएगी।।