आखिर कब खत्म होगा शव को कंधे पर ढोने का सिलसिला ?

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‘देख तेरे इंसान की हालात क्या हो गयी इंसान …’ ये गीत गाने वाले ने भी शायद सिस्टम से परेशान होकर ही गाया होगा। वो सिस्टम जो किसी की मौत के बाद भी नहीं पसीजता। इंसान जिंदा हो या मुर्दा लेकिन यह संवेदनहीन समाज एक पत्थर बन चुका है, जो जाति धर्म और जानवर के नाम पर तो लड़ मर सकता है लेकिन एक इंसान के लिए क्यों उसका दिल नहीं पसीजता।

दरअसल सास की तबीयत खराब थी
वैसे तो इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म माना जाता है लेकिन, एक व्यक्ति 40 किलोमीटर तक एक लाश को कंधों पर अकेला ढोता रहे और लोगों की इस पर नजर न पड़े इससे ज्यादा संवेदनहीनता हो नहीं सकती। ऐसा ही एक इंसानियत को शर्मसार कर देने वाला मामला इलाहाबाद में देखने को मिला। जहां एक व्यक्ति अपनी सास की लाश को कंधों पर अकेला ढोता रहा लेकिन कोई उसकी मदद के लिए सामने नहीं आया। दरअसल सास की तबीयत खराब थी।
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इलाज के लिए उसके पास पैसा नहीं था। अस्पताल ले जाने के दौरान ही उसकी सास की मौत हो गई। लोगों से उसने मदद मांगने का प्रयास किया लेकिन किसी ने भी उसकी मदद नहीं की…फिर उसने 40 किलोमीटर तक सफर पैदल किया। गरीब कंधे पर बांस में उस लाश को ढो रहा था। लोग मात्र मूक दर्शक देखते रहे। आपको बता दें कि ये कोई पहला मामला नहीं है, ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं।
गरीबी में इलाज के अभाव में मर जाता है क्या
पर, सवाल ये उठता है कि यह समाज यह सिस्टम इतना संवेदनशील हो गया है कि कोई पड़ोसी या किसी का मासूम भूख से मर जाता है और उसे पता नहीं चलता। गरीबी में इलाज के अभाव में मर जाता है क्या किसी को पता नहीं चलता।
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सरकार का लक्ष्य है कि हर बीमार को समय पर अस्पताल पहुंचाया जा सके, इसलिए 60 हजार पर एक एम्बुलेंस होना चहिए। फिलहाल एक लाख पर एक एंबुलेंस है। आमतौर पर एंबुलेंस 10 मिनट में पहुंच जाना चाहिए लेकिन एक घंटा क्यों लगता है? ऐसे एक नहीं सैकड़ों सवाल उन गरीबों के मन में हैं, सिस्टम के खिलाफ। आखिर क्यों सिस्टम की अनदेखी का खामियाजा उन गरीब औऱ लाचार लोगों को जान औऱ अपनों को खो कर भुगतना पड़ता है?
(साभार – भारत समाचार)

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