300 साल से एक परिवार कर रहा इस हमाम की हिफाजत
एक परिवार 300 साल पुराने और एशिया के सबसे पुराने हमाम की हिफाजत कर रहा है। यह मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल शहर में स्थित है। यही नहीं इसके लिए उन्हें करोड़ों का ऑफर भी मिला लेकिन इस परिवार ने ठुकरा दिया। चमचमाता राजा भोज सेतु, कमला पार्क, वर्धमान पार्क, आसपास आलीशान बिल्डिंग और सामने शहर की पहचान बड़ा तालाब यानी भोपाल की सबसे प्राइम लोकेशन में यह स्थित है। यहीं, सड़क किनारे फल के ठेलों के पीछे छिपा हुआ पुराना लोहे का गेट है। थोड़ा अंदर जाने पर बड़ी बड़ी बिल्डिगों की आड़ में दबा हुआ एक पुराना ढांचा नजर आता है।
बिल्डरों के 10 करोड़ रुपये तक के ऑफर भी नामंजूर
यह देश ही नहीं बल्कि पूरे एशिया का सबसे पुराना वो हमाम है जो आज भी वैसे ही चल रहा है जैसे तीन सौ साल पहले चलता था। तीन सौ साल से यदि यहां कुछ नहीं बदला है तो इसका श्रेय जाता है उस परिवार को जो इतने सालों से यहां आने वालों की खिदमत करता आ रहा है। इतिहास और शहर की पहचान कायम रहे इसलिए इस परिवार ने इस बेशकीमती जमीन के लिए बिल्डरों के 10 करोड़ रुपये तक के ऑफर भी नामंजूर कर दिए हैं।
नई पीढ़ी भी इस काम के लिए तैयार हो रही है
हमाम और परिवार का इतिहास पूछने पर 60 साल के अतीक बताते हैं कई पीढ़ियों से उनका परिवार इस हमाम और यहां आने वालों की खिदमत करता आ रहा है। बेहद साधारण माली हालत और तमाम मुश्किलों के बाद भी अब नई पीढ़ी भी इस काम के लिए तैयार हो रही है। अतीक का दावा है कि ये देश ही नहीं बल्कि एशिया का सबसे पुराना चालू हमाम है और यहां कुछ भी नहीं बदला है।
इमारत में भी कोई बदलाव नहीं किया गया है
लोगों की मालिश से लेकर नहाने तक की सारी प्रक्रिया बिल्कुल वैसी ही है जैसी तीन सौ साल पहले थी। हमाम की इमारत में भी कोई बदलाव नहीं किया गया है और यही इसकी खासियत है। यदि इससे छेड़छाड़ हुई तो हमाम नष्ट हो जाएगा। इतिहासकारों और आर्किटेक्ट का मानना है कि 1720 के आसपास का यह हमाम गोंड़ शासकों के काल का है।
हमाम की जमीन में तांबे की चादर बिछी हुई है
बाद में भोपाल नवाब और उनके मेहमानों के लिए इस्तेमाल होने लगा। अतीक बताते हैं उनके पूर्वज हम्मू ने हमाम में काम शुरू किया था। उसके बाद भोपाल की शाहजहां बेगम ने यह हमाम उनके परिवार के नाम कर दिया था। हमाम की जमीन में तांबे की चादर बिछी हुई है। इसके नीचे सुरंग बनी है, जिसमें आग जलाने से पूरा हमाम गरम हो जाता है। हमाम को गर्म रखने के लिए एक दिन में ढाई से तीन क्विंटल लकड़ी की खपत होती है। हमाम को तीन हिस्सों मे बांटा गया है।
भाप कक्ष में करीब 20 मिनट तक बैठाया जाता है
यहां आने वाले व्यक्ति को सबसे पहले सामान्य तापमान वाले कमरे में ले जाया जाता है। इसके बाद उसे गुनगुने पानी से नहलाया जाता है। फिर भाप कक्ष में करीब 20 मिनट तक बैठाया जाता है और शरीर पर जमे मैल के फूल जाने पर त्वचा पर विशेष तरह की मिट्टी से बनी घिसनी को रगड़ा जाता है। 300 साल पुराना कदीमी हमाम अपने आप में पूरा इतिहास समेटे हुए है, लेकिन सरकार का इसके संरक्षण की तरफ कोई ध्यान नहीं है।
मेहमानों के लिए इस्तेमाल होता था
आयुक्त पुरातत्व अनुपम राजन के मुताबिक यह निजी संपत्ति है, इसको लेकर क्या किया जा सकता है ये हम देखेंगे।हमाम पुराने किले के अंदर बना हुआ है, इसकी डिजाइन बेहद खास है। इमारत गोंड़कालीन है,नवाबी दौर में यह नवाब परिवार और उनके मेहमानों के लिए इस्तेमाल होता था। हमारे लिए पैसों से बढ़कर यह शानदार विरासत है। हम चाहते हैं कि इस शहर और हमारे परिवार का तीन सौ साल पुराना ये इतिहास कायम रहे।
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