ये ‘अंगूठी’ करेगी दृष्टिहीनों और बुजुर्गों को पढने मे मदद

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आइआइटी धनबाद में पढ़ चुकी नागा श्रव्या टुंडले ने ‘आमी’ नामक उपकरण तैयार किया है जो पढ़कर सुनाता है। यह उन लोगों के लिए मददगार साबित होगा, जो पढ़ नहीं सकते या दृष्टिहीन हैं। जल्द ही यह बाजार में उपलब्ध होगा।

उपकरण को अंगूठी की तरह पहना जा सकता है

आमी नामक इस उपकरण को अंगूठी की तरह पहना जा सकता है। इसमें सामने कैमरा और पीछे स्पीकर लगा हुआ है। इसे पहनने वाला जब कैमरे को किताब के पन्ने पर या अक्षरों पर घुमाता है तो यह लिखे हुए शब्दों को स्कैन कर लेता है। इसमें लगा हुआ एक जीबी रैम क्षमता वाला ए 7 सीपीयू इन शब्दों को आवाज में बदल देता है। जिन्हें स्पीकर या हेडफोन से सुना जा सकता है। फिलहाल यह उपकरण इंग्लिश भाषा में काम करता है। इसे भारतीय भाषाओं में भी विकसित किया जा रहा है।

मात्र तीन फीसद स्टार्टअप छात्रओं के नाम दर्ज

आइआइटी धनबाद की पूर्व छात्र ने एक ऐसा उपकरण तैयार किया है जो पढ़कर सुनाता है। यह उन लोगों के लिए बेहद मददगार साबित होगा, जो दृष्टिहीन हैं या फिर पढ़ नहीं सकते। इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कंप्यूटर इंजीनियरिंग में बीटेक 22 वर्षीय नागा श्रव्या टुंडले ने आमी नामक इस उपकरण को बाजार में उतारने के लिए कंपनी भी रजिस्टर करा ली है। वह स्वयं इस कंपनी की सीईओ हैं। श्रव्या ने बताया कि जल्द ही यह उपकरण बाजार में उपलब्ध होगा। 2016-17 में आइआइटी के छात्र-छात्रओं ने कुल 650 स्टार्टअप शुरू किए। इनमें मात्र तीन फीसद स्टार्टअप छात्रओं के नाम दर्ज हैं।

व्यावसायिक उत्पादन का निर्णय लिया

इन्हीं में से एक श्रव्या टुंडले का स्टार्टअप है। श्रव्या ने इसी वर्ष बीटेक की पढ़ाई पूरी की है। वह आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले की रहने वाली हैं। वह बताती हैं कि पढ़ाई के दौरान आइआइटी कानपुर के छात्र विक्रम रस्तोगी, अनिश दुर्ग और पीयूष आनंद से मुलाकात हुई। सभी रोबोटिक्स और ड्रोन पर काम कर रहे थे। हम सभी ने भाषाओं की प्रोसेसिंग पर तकनीकी शोध का निर्णय लिया। एक साल की अथक मेहनत के बाद ‘आमी’ तैयार हो गया। निरंतर बदलाव और प्रयोग के बाद इस उपकरण की कार्यप्रणाली सफल साबित हुई। तब हमारी टीम ने इसके व्यावसायिक उत्पादन का निर्णय लिया।

इनोवेटिव आइडिया पर स्टार्टअप शुरू किया

चूंकि आइडिया मेरा था, इसलिए स्टार्टअप के नेतृत्व की जिम्मेदारी मुझे दी गई। फिलहाल हम अपने उत्पाद का प्रदर्शन देश के दृष्टिहीन बच्चों के स्कूलों और बुजुर्गो के बीच कर रहे हैं। जहां इसकी सराहना हो रही है।हम लड़कियां निर्णय लेने में संकोच करती हैं। मेरे मामले में भी मुझे अपने परिजनों को काफी समझाना पड़ा था, लेकिन आज उन्हें मुझ पर गर्व है। मेरी टीम ने भरपूर साथ दिया श्रव्या टुंडले, सीईओ आमीश्रव्या ने यह प्रोजेक्ट पढ़ाई के दौरान शुरू किया था। इसे काफी पसंद किया गया। बीटेक के बाद उसने इसी इनोवेटिव आइडिया पर स्टार्टअप शुरू किया है।

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