पूर्वांचल में गैंगवार की धूरी रहा Mukhtar Ansari
इस तरह पूरी किया अर्श से फर्श तक का सफर
Mukhtar Ansari: लोकसभा के चुनाव की सरगर्मी के बीच बाहुबली और पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की मौत के बाद पूर्वांचल में आतंक का एक अध्याय समाप्त हो गया. अब उसके गिरोह की कमान कौन संभालेगा यह भी यक्ष सवाल है. मुख्तार के जाने के बाद उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल पर सभी की निगाहें टिकी हुई है. बात जब भी पूर्वांचल की होती है आंखों के सामने बाहुबली की गैंगवार माफियागिरी घूम जाती है.
एक से बढ़कर एक तुर्रमखां और अपराध ऐसा कि सुनकर लोग थर्रा जाएं. पूर्वांचल की जमीन से कई बाहुबली निकलकर सियासत तक पहुंचे. उसी पूर्वांचल के गंगा किनारे बसे उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले को लहुरी काशी भी कहते हैं. गाजीपुर हमेशा से पूर्वांचल के गैंगवार की धूरी रहा है. ऐसे ही एक बाहुबली का नाम रहा मुख्तार अंसारी. आज बात करेंगे मुख्तार अंसारी की. उसके अपराध से सियासत के सफर की कहानी की.
छात्र जीवन में साधु-मकनू को बनाया गुरु
क्रिकेट का अच्छा खिलाड़ी रहा मुख्तार अंसारी जमींदार घराने का भले ही रहा मगर पैसों और वर्चस्व के लिए उसने अपराध की दुनिया में कदम रखा. छात्र जीवन में ही इसे साथ मिल गया साधु सिंह और मकनू सिंह जैसे कुख्यात अपराधियों का साथ जिन्हें इसने अपना आपराधिक गुरु माना. उस वक़्त पूर्वांचल में दो गिरोह था.
पहला मकनू सिंह का तो दूसरा साहिब सिंह का गिरोह. गाजीपुर के सैदपुर में दोनों गैंग के बीच ठेके को लेकर विवाद हुआ तो राहें एकदम अलग हो गई. साहिब सिंह के गैंग के सबसे खतरनाक खिलाड़ी का नाम था ब्रजेश सिंह. लेकिन उस दौर में ब्रजेश और मुख्तार के बीच कोई विवाद नहीं था. साल 1990 आते आते ये दोनों एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए जो आज भी बरकरार है. इनकी दुश्मनी की शुरुआत कैसे हुई है इसकी भी एक रोचक कहानी है.
अपराध जगत में ऐसे हुई एंट्री
80 के दशक में मुख्तार अंसारी कॉलेज में पढ़ाई के साथ-साथ इलाके में दबंगई की शुरुआत कर चुका था. इसी दौर में मोहम्मदाबाद से उसके पिता नगर पंचायत के चेयरमैन रह चुके थे. मुहम्मदाबाद गोहना क्षेत्र के हरिहरपुर गांव के सच्चिदानंद राय दबंग छवि के थे. क्षेत्र की राजनीति में भी उनका दखल था. इधर नगर पालिका के चेयरमैन रह चुके मुख्तार अंसारी के पिता के राजनीतिक विरोधी भी थे. किसी बात को लेकर सच्चिदानंद और मुख्तार के पिता के बीच विवाद हो गया.
सच्चिदानंद ने मुख्तार के पिता को भरे बाजार काफी भला बुरा कहा. इस बात की खबर जब मुख्तार को लगी तो उसने सच्चिदानंद राय की हत्या का फैसला कर लिया लेकिन मोहम्मदाबाद में राय बिरादरी प्रभावशाली और जनसंख्या में ठीक-ठाक थी. इस वजह से मुख्तार इस सोच में पड़ गया कि इस मुश्किल काम को अंजाम कैसे दिया जाए. पिता के अपमान का बदला लेने की आग दिल में सुलगाए घूम रहे मुख्तार ने साधु और मकनू से मदद मांगी.
दोनों ने मुख्तार की पीठ पर हाथ रख दिया. लिहाजा सच्चिदानंद राय की हत्या हो गई. साधु और मकनू ने मुख्तार के पिता का बदला लेने में मदद की. इसके बाद मुख्तार उन्हेंन अपराध जगत का गुरु मानने लगा. फिर तो साधु सिंह मकनू सिंह के गिरोह में शामिल हुए मुख्तार के नाम एक से बढ़कर एक बड़े गैंगवार, हत्या, फिरौती व रंगदारी की वारदातों का सिलसिला चल पड़ा. इसके बाद साधु के साथ मिलकर मुख्तार ने माफिया त्रिभुवन सिंह के कांस्टेबल भाई राजेंद्र सिंह को मौत के घाट उतार दिया.
ब्रजेश और मुख्तार कैसे बने जानी दुश्मनी
उसी दौर में जुर्म की दुनिया में दाखिल हो चुके बृजेश को त्रिभुवन की शह मिली और वो सीधे मुख्तार से दुश्मनी लेने लगा. यहीं से शुरू होती है वर्चस्व की जंग. मुख्तार अंसारी का सरकारी ठेकों पर दबदबा था. पीडब्लूडी हो या कोयले का ठेका हो या फिर रेलवे और शराब का ठेका गाजीपुर, बनारस और जौनपुर में उसी का सिक्का चलता था.
उसे अब बृजेश सिंह चुनौती देने लगा था. ठेका रेलवे का हो या शराब का. किडनैपिंग का मामला हो या हत्याओं का दोनों ही गैंग एक दूसरे को पछाड़ने में लग गए. दोनों गैंग कई बार आमने-सामने आए. मुख्तार और बृजेश की दुश्मनी में कई जानें गईं. इसमें कारोबारी भी मारे गए. गुंडे बदमाशों के साथ खाकी भी निशाने पर आई लेकिन अब वो वक्त आनेवाला था जब इस दुश्मनी में खादी को भी मौत का स्वाद चखना था.
गुरु की हत्या के बाद गिरोह का बना सरगना
राजेन्द्र हत्याकांड में साधु सिंह गिरफ्तार हुआ. जेल में था तो पत्नी को बच्चा हुआ. साधु पुलिस कस्टडी में अपने बच्चे और पत्नी को देखने के लिए गाजीपुर सदर अस्पताल पहुंचा तो पुलिस की वर्दी पहने एक व्यक्ति ने साधु की हत्या कर दी. लोग बताते हैं कि अस्पताल में पुलिस की वर्दी में आया व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि मुख्तार का जानी दुश्मन ही था.
इसके कुछ दिनों बाद ही गाजीपुर सिंचाई विभाग चौराहे पर बम मारकर मुख्तार के दूसरे गुरु मकनू सिंह की हत्या कर दी गई. दोनों आपराधिक गुरुओं की हत्या हो जाने के बाद साधु मकनू गिरोह का सरगना मुख्तार बन गया. बताते हैं कि मुख्तार ने पिता की तरह साधु और मकनू के परिवार के सारे दायित्व निभाए लेकिन सबसे बड़ा सपना था कि अपने गुरुओं की हत्या का बदला लेना.
सियासत में एंट्री
हालांकि साधु और मकनू की मौत के बाद मुख्तार कमजोर हुआ. 90 के दशक में मुख्तार ने राजनीति का रुख किया लेकिन बृजेश के साथ अदावत जारी थी. ये वो रंजिश थी जो चार दशकों तक चलने वाली थी. बाहुबल को बढाने के लिए मुख्तार ने चुनाव लड़ने का फैसला किया. राजनीतिक रसूख के चलते कई दल उसे चुनाव लड़ाना चाहते थे लेकिन मायावती ने मुख्तार पर भरोसा जताते हुए मऊ सीट से चुनाव का टिकट दिया. मुख्तार ने बीजेपी के विजय प्रताप सिंह को 26 हजार वोटों से हराकर पूर्वांचल की राजनीति का बड़ा नाम कर दिया. मुख्ता र रिकार्ड पांच बार इस सीट से विधायक रहा. मुख्तार ने अब अपराध की दुनिया से सियासत का दामन थाम कर अपना कद बढ़ा लिया था.
राह में कांटे बिछाने आये कृष्णानंद
गाजीपुर की एक सीट है मोहम्मदाबाद. इस सीट पर 1985 से अंसारी परिवार ने कब्जा जमाए रखा था. 2002 में अंसारी परिवार के अजेय रथ को रोकते हुए भाजपा नेता कृष्णानंद राय विधायक बन गए. कृष्णा ने मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी को इस सीट से हरा दिया. मुख्तार को यह हार बर्दाश्त नहीं हुई और वह इस करारी हार से तिलमिला गया. इस तिलमिलाहट के दो कारण थे पहला चुनाव हारने की दूसरा हमले की. दरअसल साल 2001 में मुख्तार पर जानलेवा हमला हुआ. कहा जाता है की हमला ब्रजेश सिंह और उसके लोगों ने किया था. इस हमले में मुख्तार अंसारी के तीन साथी मारे गए पर वो बाल-बाल बच गया. इस हमले को कृष्णानंद राय से भी जोड़कर देखा जाता है.
कृष्णानंद की जीत का बदला कत्ल से लिया
बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय ने मोहम्मदाबाद सीट जीत कर मुख्तार को खुली चुनौती दी थी. मुख्तार ये हार सहन नहीं कर पाया और हार का बदला उसने कत्ल से लिया. 25 नवंबर 2005 को विधायक कृष्णानंद बुलेटप्रूफ गाड़ी के बजाय सामान्य गाड़ियों के काफिले से पड़ोसी गांव में एक क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन करने गए थे. कार्यक्रम से वापसी करते समय भांवरकोल की बसनिया पुलिया के पास सामने से आई एक सिल्वर ग्रे कलर की गाड़ी खड़ी हो गई.
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कोई कुछ समझ पाता इतने में ही आठ लोग गाड़ी से उतरे और विधायक कृष्णानंद राय की गाड़ी पर एके- 47 से ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी. हमलावरों ने करीब 400 राउंड फायरिंग की थी जिसमें सात लोग मारे गए थे. इसमें मारे गए लोगों शरीर के साथ पूरी गाड़ी छलनी हो गई. भाजपा विधायक कृष्णानंद राय समेत सात लोगों की हत्या के बाद मऊ दंगा की दहशत की गूंज देश ने सुनी. मगर तत्कालीन सरकारों की वोट बैंक की राजनीति के चलते इसे मिलने वाले राजनीतिक संरक्षण ने जेल में भी मुख्तार को ठाट की जिंदगी मुहैया कराई और वहीं से वह गिरोह का संचालन करता रहा.