नेपाल : हिन्दू राष्ट्र और राजशाही की वापसी की मांग को लेकर प्रदर्शन
नेपाल में एक बार फिर हिंदू राष्ट्र और राजशाही की मांग को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं. इस देश में राजशाही की बहाली के लिये 23 नवंबर से ही प्रदर्शन हो रहे हैे. पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह ने अपने पूर्वज दिवंगत राजा पृथ्वी नारायण शाह की एक प्रतिमा का अनावरण किया. इसके साथ ही नेपाल के झापा जिले में एक स्कूल में प्रतिमा का अनावरण हुआ.
हजारों की तादाद में प्रदर्शनकारी नेपाल की राजधानी काठमांडू में एकत्र हुए और राजशाही की बहाली और आधिकारिक तौर पर हिंदू राष्ट के रूप में देश की पूर्व स्थिति की मांग की. वर्तमान में नेपाल का संविधान देश को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य के रूप में परिभाषित करता है. “राष्ट्र, राष्ट्र, धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए नागरिक आंदोलन के समर्थक काठमांडू के बाहरी इलाके में एकत्र हुए और उन्होंने नेपाली झंडे लेकर पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के समर्थन में नारे लगाते हुए शहर के केंद्र में मार्च करने का प्रयास किया. प्रर्दशनकारी नारा लगा रहे थे “राजा लाओ देश बचाओ“
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नेपाल : हिन्दू राष्ट्र और राजशाही: प्रदर्शनकारियों को रोकने का प्रयास करती रही पुलिस
मार्च को रोकने के लिए पुलिस ने पानी की बौछारों और आंसू गैस का इस्तेमाल किया और प्रदर्शनकारियों पर लाठियां बरसाईं. दोनों पक्षों को मामूली चोटें आईं. अधिकारियों ने सभा से पहले नेपाल के विभिन्न जिलों में विरोध प्रदर्शन पर रोक लगा दी थी, इस प्रदर्शन में देश के पूर्व राजा के अनुयायियों ने भाग लिया था.
2008 में खत्म हुई थी राजशाही
2008 में नेपाल की सदियों पुरानी राजशाही का उन्मूलन देश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था. 2006 में सड़कों पर हफ्तों तक चले तीव्र विरोध ने तत्कालीन राजा ज्ञानेंद्र को अपने सत्तावादी शासन को त्यागने और लोकतंत्र के युग की शुरुआत करने के लिए मजबूर किया था. दो साल बाद, नेपाल के राजनीतिक परिदृश्य को नया आकार देते हुए राजशाही को आधिकारिक तौर पर समाप्त कर दिया गया था.
आम आदमी की तरह कर रहे गुजारा
इस परिवर्तनकारी बदलाव के बाद, राजा ज्ञानेंद्र ने खुद को एक आम नागरिक की तरह जिंदगी जीना शुरु कर दिया. अपनी शाही पहचान खोने के बावजूद वह खुद की छवि को जनता के बीच कुछ हद तक लोकप्रिय बनाए रखने में कामयाब रहे हैं. हालांकि, बदले हुए राजनीतिक परिदृश्य और लोकतांत्रिक शासन के पक्ष में प्रचलित भावना को देखते हुए, उनके दोबारा राजगद्दी हासिल करने की संभावनाएं न्यूनतम हैं.
2007 में लोकतंत्र के साथ ही धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया
वर्ष 2007 में, नेपाल के इतिहास में एक और महत्वपूर्ण बदलाव तब आया जब इसे अंतरिम संविधान के माध्यम से एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया.बता दें कि इससे पहले नेपाल एक हिन्दू राष्ट्र था. धर्मनिरपेक्षता की घोषणा नेपाल के अधिक समावेशी और बहुलवादी समाज की खोज का प्रतीक थी. हालांकि, 80 प्रतिशत से अधिक नेपाली हिंदू हैं. यहां के कई लोग मानते हैं कि उनके देश को राज्य स्तर पर आधिकारिक तौर पर हिंदू पहचान अपनाना चाहिए.
भ्रष्टाचार, चीन से बढ़ती नजदीकियों के कारण विरोध
प्रदर्शनकारियों ने राजशाही समाप्त होने के बाद से राष्ट्रीय शासन के प्रति अपना असंतोष व्यक्त किया और राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव की इच्छा व्यक्त की. उन्होंने सरकार और राजनीतिक दलों पर भ्रष्टाचार और विफल शासन का आरोप लगाया. इसके चलते राजशाही की बहाली और नेपाल को हिंदू राज्य के रूप में स्थापित करने की मांग की. प्रदर्शनकारियों का गुस्सा चीन के खिलाफ भी था. प्रदर्शनकारियों ने नेपाल की सरकार पर भी आरोप लगाया कि वह चीन से प्रभावित हैं. लोगों का आरोप है कि नेपाल सरकार ने हवाई अड्डे और राजमार्ग चीन को बेच दिए हैं. देश में चीन के बढ़ते हस्तक्षेप से नेपाल का एक वर्ग लंबे वक्त से नाराज चल रहा है.
इन वजहों से हो रहे प्रदर्शन
-नेपाल सरकार ने 50 करोड़ डॉलर की अमेरिकी मदद का एमसीसी बिल संसद में पेश किया है.
-नेपाल में चीन की दखल तेजी से बढ़ी है.
-हिंदू राष्ट्र और राजशाही की मांग उठ रही है.
-लोकतंत्र की जगह राजतंत्र की वापसी की मांग की जा रही है.
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