इस्लाम में क्यों जरूरी है हज, जाने कब से हुई थी इसकी शुरूआत…
हज….मुस्लिम धर्म की सबसे पाक माने वाली जगहों में से एक है। मुस्लिम धर्म में माना गया है कि, अल्लाह के हर बंदे को जिंदगी में एक बार हज जरूर जाना चाहिए । लेकिन अब बड़ा सवाल यह उठता है कि, ऐसी मान्यता क्यों है ? आपको बता दें कि, सऊदी अरब के पवित्र मक्का शहर में धुल हिज्जा महीने में हर साल इस यात्रा की शुरूआत की जाती है, धुल मुस्लिम कैलेंडर के आखिरी महीने को बोला जाता है। हज पांच दिन की एक धार्मिक यात्रा है, जो सऊदी अरब के मक्का शहर में होती है। आइए आज विस्तार से समझते है आखिर क्या है हज…..
कैसे की जाती है हज यात्रा ?
हज करने वाले को हाजी कहते हैं. हाजी धुल-हिज्जा के सातवें दिन मक्का पहुंचते हैं। हज यात्रा के पहले चरण में हाजी इहराम बांधते हैं। यह एक सिला हुआ कपड़ा होता है, जिसे शरीर पर लपेटते हैं। इस दौरान सफेद कपड़ा पहनना जरूरी है। हालांकि, महिलाएं अपनी पसंद का कोई भी सादा कपड़ा पहन सकती है। लेकिन हिजाब के नियमों का पालन करना जरूरी है।
हज के पहले दिन हाजी तवाफ (परिक्रमा) करते हैं. तवाफ करते हुए हाजी सात बार काबा के चक्कर काटते हैं। इसके बाद सफा और मरवा नाम की दो पहाड़ियों के बीच सात बार चक्कर लगाए जाते हैं। ऐसा कहते हैं कि पैगंबर इब्राहिम की पत्नी हाजिरा अपने बेटे इस्माइल के लिए पानी की तलाश में सात बार सफा और मरवा की पहाड़ियों के बीच चली थीं। इसके बाद हाजी मक्का से आठ किलोमीटर दूर मीना शहर इकट्ठा होते हैं। यहां पर वे रात में नमाज अदा करते हैं। हज के दूसरे दिन हाजी माउंट अराफात पहुंचते हैं, जहां वो अल्लाह से अपने गुनाह माफ करने की दुआ करते हैं. फिर वे मुजदलिफा के मैदानी इलाकों में इकट्ठा होते हैं। वहां पर खुले में दुआ करते हुए पूरी एक रात ठहरते हैं।
क्या है शैतान को पत्थर मारने की परंपरा ?
यात्रा के तीसरे दिन हाजी जमारात पर पत्थर फेंकने के लिए दोबारा मीना लौटते है। आपको बता दें कि, जमारात तीन पत्थरों का एक स्ट्रक्चर होता है। इसको शैतान या जानवरों की बलि का प्रतीक माना गया है। ऐसे में यह दिन विश्व के बाकी मुस्लिम के लिए यह दिन ईद का पहला दिन होता है,जिसके बाद हाजी अपने बाल बनवा लेते है या कटवा देते है।इसके बाद के दिनों में हाजी मक्का में दोबारा तवाफ और सई करते हैं और फिर जमारत लौटते हैं। मक्का से रवाना होने से पहले सभी हाजियों को हज यात्रा पूरी करने के लिए आखिरी बार तवाफ करनी पड़ती है।
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इस्लाम के 5 स्तंभ
तौहीद- खुदा को एक मानना और उसकी ही इबादत करना
सलात- हर दिन पांच वक्त नमाज
जकात- अपनी कमाई का कुछ हिस्सा लोगों में दान करना
रोजा- साल में एक माह उपवास रखना
हज- जिंदगी में कम से काम एक बार तीर्थ यात्रा पर जाना
तौहीद, नमाज और रोजा और हर मुसलमान के लिए फर्ज यानी जरूरी होता है। लेकिन जकात और हज के मामले में थोड़ी है । ये दोनों चीजें उन लोगों के लिए जरूरी है जिनके पास पैसा हो या वे आर्थिक रूप से संपन्न हों।
ऐसे हुई थी हज की शुरूआत
मुस्लिम धर्म के अनुसार, अल्लाह नें पैगंबर मोहम्मद को आदेश दिया था कि, काबा को वैसे ही बनाए जैसे वो पहले हुआ करता था। जहां पर सिर्फ अल्लाह की इबादत हो सकें, इसके अलावा कुछ भी नहीं । साल 628 ई. में प्रोफेट मोहम्मद ने अपने 1400 उम्मतियों के साथ एक यात्रा शुरू की थी, इस यात्रा के जरिए प्रोफेट मोहम्मद ने पैगंबर इब्राहीम की परंपरा को स्थापित किया। जिसके बाद हज यात्रा की शुरूआत हुई , इसके अलावा मुस्लिम धर्म में एक मान्यता है कि, हज यात्रा करने से पिछले सारे पाप कट जाते है। मुसलमान हर साल इसे दोहराते हैं। हज पांच दिन में पूरा होता है, यह ईद उल-उजहा यानी बकरीद के साथ पूरा होता है।
इस कारण से मनाई जाती है ईद-अल-अजहा?
ईद अल अजहा का त्यौहार हज यात्रा के आखिरी दिन को मनाया जाता है। इसे मुस्लिम कैलेंडर का सबसे बडा त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। ईद अल अजहा के दिन जानवर की बलि देने और उसके मांस का एक हिस्सा गरीबों में बांटने की परंपरा होती है।यह परंपरा पैगंबर इब्राहिम की याद में निभाई जाती है।