सावन में माता पार्वती को छोड़कर साले सारंगनाथ संग इस मंदिर विराजते हैं महादेव
विश्व की प्राचीनतम नगरी काशी भगवान भोलेनाथ की नगरी है। इसलिए भगवान शंकर के त्रिशूल पर टिकी काशी को ‘अविनाशी’ भी कहा जाता है। अलौकिक और दिव्य काशी के कण-कण में भगवान भोलेनाथ विराजमान हैं। यहां पर काशी विश्वनाथ में खुद भगवान भोलेनाथ विराजमान हैं तो सारनाथ में भगवान भोलेनाथ के साले सारंगनाथ विराजित हैं।
कहा जाता है कि काशी के सारंगनाथ मंदिर में अपने साले सांरगनाथ के साथ विराजमान होकर भगवान शंकर काशीवासियों की पीड़ा हरते हैं। हर साल सावन में भगवान शिव माता पार्वती को छोड़कर सांरगनाथ मंदिर में आते हैं और साले के साथ विराजित होते हैं। अब आप सोच रहें होंगे कि भगवान शंकर की पत्नी माता पार्वती के भाई सारंगनाथ कौन है।
भगवान शिव के साले हैं सारंगनाथ
वैदिक मान्यताओं के अनुसार, सारंगनाथ प्रजापति दक्ष के पुत्र थे। जब बाबा भोलेनाथ और माता सती का विवाह हुआ तो माता सती के भाई सारंगनाथ तपस्या कर रहे थे, जिससे वो विवाह में शामिल नहीं हो पाए थे। तपस्या से लौटने के बाद सारंगनाथ को जब पता चला कि उनकी बहन सती का विवाह अघोरी और श्मशानवासी भगवान भोलेनाथ के साथ हुआ है तो उन्हें बहन की चिंता सताने लगी। बहन की चिंता में सारंगनाथ काफी क्रोधित हो गए थे।
जीजा शिव को धन देने पहुंचे थे काशी
जब सारंगनाथ को सूचना मिली कि भगवान भोलेनाथ माता सती के साथ पृथ्वी पर एक गुप्त नगरी काशी में वास कर रहें हैं। तो सारंगनाथ बहुत-सा धन लेकर काशी पहुंच गए। काशी की सीमा में सारनाथ पहुंचने के बाद थकान के कारण सारंगनाथ को नींद आ गई। सपने में सारंगनाथ ने सपने में देखा कि काशी नगरी सोने की बन गई है। सपना टूटने के बाद माता सती के भाई सारंगनाथ को बड़ी ही आत्मग्लानि हुई।
ग्लानि से मुक्ति के लिए की थी तपस्या
आत्मग्लानि की अग्नि में जल रहे सारंगनाथ सारनाथ में ही भगवान भोलेनाथ की घोर तपस्या करने लगे। घोर तपस्या में लीन सारंगनाथ के शरीर से लावे की तरह शरीर से गोंद निकलने लगा। शरीर से लावा निकलने की बिना परवाह किए सारंगनाथ तपस्या में लीन रहें।
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शिवजी ने दिया था संग विराजने का वरदान
सारंगनाथ की घोर तपस्या से भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हुए और साले सारंगनाथ को दर्शन दिया। इसपर सारंगनाथ ने अपने मन में चल रहे विचारों को भगवान भोलेनाथ के सामने प्रकट किया। भगवान भोलेनाथ ने अपने साले सारंगनाथ के एक-एक शंकाओं का समाधान किया और काशी नगरी में चलने का निमंत्रण दिया। सारंगनाथ जिस जगह पर रुके थे, वह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर था। इसलिए उन्होंने भगवान भोलेनाथ से वहीं निवास करने का वर मांग लिया ।भगवान भोलेनाथ ने अपने साले सारंगनाथ के साथ सावन मास भर इसी स्थान पर बसने का वचन भी दिया था। तभी से सावन महीने में सारनाथ के सारंगनाथ मंदिर में साले सारंगनाथ के साथ विराजमान रहते हैं। सावन भर भोलेनाथ काशी वासियों का कष्ट हरते हैं।
सावन में पार्वती से दूर रहते हैं भोलेनाथ
सारंगनाथ को दिए वरदान के अनुसार, सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ को अपने साले सारंगनाथ के साथ सारंगनाथ मंदिर में विराजमान होना पड़ता है। इसलिए शंकर सावन मास भर माता पार्वती से दूर रहते हैं। क्योंकि भगवान शिव को सावन में माता पार्वती को छोड़कर सारंगनाथ मंदिर में विराजने जाना पड़ता है।
सारंगनाथ में स्थापित हैं दो शिवलिंग
सारंगनाथ मंदिर में दो शिवलिंग है एक शिव लिंग का साइज बड़ा है वहीं दूसरी शिव लिंग का साइज छोटा है एक शिवलिंग भगवान भोलेनाथ का और दूसरा शिवलिंग उनके साले सारंग नाथ जी का है। सावन के महीने में दूरदराज से लोग भगवान सारंग नाथ का दर्शन पूजन के लिए काशी आते हैं सावन के सोमवार पर पंचकोशी यात्रा के दौरान कांवरिए सारंग नाथ मंदिर में जल चढ़ाते हैं। सारंगनाथ मंदिर में भगवान भोलेनाथ अपने साले के साथ विराजमान रहकर जगत का कल्याण करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विवाह के बाद कोई जोड़ा भगवान सारंग नाथ मंदिर मैं दर्शन पूजन करता है तो उस जुड़े का ससुराल और मायका पक्ष दोनों ही खुश रहता है। साथ ही उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।
सारंगनाथ में क्यों ठीक होता है चर्म रोग
मान्यता है कि सारंगनाथ मंदिर में दर्शन कर लेने से चर्म रोग ठीक हो जाता है। इसके पीछे धारणा है कि भगवान भोलेनाथ के साले सारंगनाथ ने कठोर तपस्या की थी। तपस्या में सारंगनाथ इस कदर लीन हुए कि उनके शरीर से लावा के रूप में गोंद निकलने लगा था। जब भगवान शिव ने सारंगनाथ को दर्शन दिए तो उनका चर्म रोग ठीक हो गया था। सारंगनाथ की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने सारंगनाथ को वरदान दिया था कि जो भी कुष्ठ रोगी या चर्म रोगी सच्चे मन से यहां दर्शन करेगा करेगा, उसका चर्म रोग ठीक हो जाएगा। इसलिए यहां पर मन्नत पूरी होने के बाद भगवान सारंगनाथ को गोद का प्रसाद भी चढ़ाया जाता है।
सावन भर श्रद्धालुओं से भरा रहता है दरबार
सावन मास में सारंगनाथ मंदिर में दर्शन के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं। पूरे मास यहां श्रद्धालुओं से दरबार भरा रहता है। लोग अपनी मनौतियां मांगने तो आते ही हैं साथ ही शारीरिक कष्टों से मुक्ति के लिए भी खूब चढ़ावें चढ़ते हैं।
शंकराचार्य ने किया था मंदिर का जिर्णोद्धार
आदि गुरु शंकराचार्य ने काशी पहुंचने के बाद भगवान सारंगनाथ के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार काशी पहुंचने के बाद आदि गुरु शंकराचार्य से श्री मंडन मिश्र की पत्नी भारती ने शास्त्रार्थ किया था इस शास्त्रार्थ में शंकराचार्य पराजित हो गए। मंडन मिश्र की पत्नी भारती से पराजित होने के बाद शंकराचार्य ने 3 महीने अज्ञातवास में रहकर अपने शरीर को छोड़कर परकाया प्रवेश की विद्या के द्वारा काम शास्त्र का ज्ञान अर्जन किया। जिसके बाद दोबारा शास्त्रार्थ हुआ जिसमें मंडन मिश्र की पत्नी भारती पराजित हुईं।
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