1991-23 तक क्या है ज्ञानवापी मस्जिद विवाद? पढ़िए पूरी खबर

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वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर सटी ज्ञानवापी मस्जिद का मामला कोर्ट में है. जिसपर बीतें शुक्रवार 19 मई को सुनवाई हुई. जहां ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पाए गए एक “शिवलिंग” के कार्बन डेटिंग सहित “वैज्ञानिक सर्वेक्षण” को शुक्रवार को टाल दिया है. शीर्ष अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा कार्बन डेटिंग के निर्देश वाले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी और नोटिस जारी किया है. ज्ञानवापी केस की अगली सुनवाई 22 मई को होगी.

मामले की जांच कर रहे तीन जजों की पीठ ने कहा कि हमें इस मामले को बेहद बारीकी से जांच करना होगा. वहीं मस्जिद पक्ष का कहना है कि हमे अपनी बात रखने का पूरा मौका नहीं मिला. जिसपर अब मस्जिद पक्ष अब अपनों आपत्ति को दाखिल करने के लिए अतिरिक्त से की मांग कर रहा है. वहीं दूसरी और मंन्दिर पक्ष ने दाखिल की एक नई याचिका में सम्पूर्ण परिसर के एएसआई सर्वे की मांग की है. पिछले साल इसी इलाके में स्थित वजूखाने में कथित शिवलिंग मिला था. मंदिर पक्ष ने 16 मई को पूरे ज्ञानवापी परिसर का ASI सर्वे करने की याचिका दी थी.

आइए समझते कि क्या है ज्ञानवापी मामला, अब तक इसमें क्या-क्या हुआ

क्या है ज्ञानवापी मामला

वर्ष 1991 में पहली बार वाराणसी के साधु-संतों के द्वारा वराणसी सिविल कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. जिसके अंदर उन्होंने ने मस्जिद क्षेत्र ने पूजा करने की अनुमति मांगी थी. वहीं इस याचिका में पुजारियों ने दावा किया कि 16वीं शताब्दी में मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को गिराकर यहां मस्जिद का निर्माण करवाया गया था.

15 पॉइंट्स में समझे पूरा विवाद…

1991…

-ज्ञानवापी मामला कोर्ट पहुंचा. ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर 1991 में पहली बार अदालत में याचिका दाखिल की गई. वाराणसी के साधु-संतों ने सिविल कोर्ट में याचिका दाखिल करके वहां पूजा करने की मांग की. याचिका में मस्जिद की जमीन हिंदुओं को देने की मांग की गई थी. लेकिन मस्जिद की प्रबंधन समिति ने इसका विरोध किया और दावा किया कि ये उपासना स्थल कानून का उल्लंघन है.

-उपासना स्थल कानून. कांग्रेस की पीवी नरसिम्हा राव की सरकार ने 1991 में उपासना स्थल कानून (विशेष प्रावधान) पास किया. बीजेपी ने इसका विरोध किया लेकिन अयोध्या को अपवाद माने जाने का स्वागत किया और माँग की कि काशी और मथुरा को भी अपवाद माना जाना चाहिए, लेकिन कानून के मुताबिक केवल अयोध्या ही अपवाद है.

2019…

-दिसंबर 2019 में अयोध्या फैसले के करीब एक महीने बाद वाराणसी सिविल कोर्ट में नई याचिका दाखिल करके ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे कराने की मांग की गई.

2020…

-वाराणसी के सिविल कोर्ट से मूल याचिका पर सुनवाई की मांग की गई.

-इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सिविल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाई और फिर इस मामले पर फैसला सुरक्षित रखा.

2021…

-हाई कोर्ट की रोक के बावजूद वाराणसी सिविल कोर्ट ने अप्रैल में मामला दोबारा खोला और मस्जिद के सर्वे की अनुमति दे दी.

-मस्जिद इंतजामिया ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और हाई कोर्ट ने फिर सिविल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगाई और फटकार भी लगाई.

-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में देवी देवताओं की पूजा की मांग को लेकर 18 अगस्त 2021 को राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता शाहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक की ओर की याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया. साथ ही कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की अपील को खारिज कर दिया.

2022…

-अप्रैल में सिविल कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे करने और उसकी वीडियोग्राफ़ी के आदेश दे दिए.

-मस्जिद इंतज़ामिया ने कई तकनीकी पहलुओं के आधार पर इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी, जो खारिज हो गई.

-मई में मस्जिद इंतज़ामिया ज्ञानवापी मस्जिद की वीडियोग्राफ़ी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

-सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने से पहले 16 मई को सर्वे की रिपोर्ट फाइल की गई और वाराणसी सिविल कोर्ट ने मस्जिद के अंदर उस इलाक़े को सील करने का आदेश दिया, जहां शिवलिंग मिलने का दावा किया गया था. वहां नमाज़ पर भी रोक लगा दी गई.

-17 मई को सुप्रीम कोर्ट ने ‘शिवलिंग’ की सुरक्षा वुजूख़ाने को सील करने का आदेश दिया, लेकिन साथ ही मस्जिद में नमाज़ जारी रखने की अनुमति दे दी.

-20 मई को सुप्रीम कोर्ट ने ये मामला वाराणसी की जिला अदालत में भेज दिया, सुप्रीम कोर्ट ने अदालत से यह तय करने को कहा है कि मामले आगे सुनवाई के लायक है या नहीं.

 

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