जब महारानी बनी थी वैक्सीन की “ब्रांड एम्बेसडर”

0

कोरोना की वजह से हर रोज सैकड़ों लोग काल के गाल में समा रहे हैं. इसकी वैक्सीन तो आ गयी लेकिन इसकी विश्वसनीयता को लेकर लोग संशय में हैं. कोरोना का खतरा होने के बावजूद वैक्सीनेशन से घबरा रहे हैं. भारत के लोगों का यकीन पक्का करने के लिए खुद देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वैक्सीन लगवाया. लेकिन यह पहला मौका नहीं जब भारत में किसी शासक ने वैक्सीन के प्रति जनता का भरोजा जीतने के लिए खुद या अपने परिवार के सदस्य को रोड माडल के तौर पर पेश किया हो. आइए आपको बताते हैं 200 साल पुरानी वह कहानी जब मैसूर के वाडियार राजवंश की रानी देवजमनी ने चेचक के वैक्सीन के प्रचार के लिए खुद को आगे किया था. 

यह भी पढ़ें : बनारस से आई Good News, चार गुना बढ़ा रिकवरी रेट

शुरू हुई रोल माडल की तलाश

बात तब की है जब दो सौ साल पहले भारत में चेचक बड़ी संख्या में लोगो की जान ले रहा था. उससे बचने के लिए वैक्सीन का इजाद हो चुका था लेकिन उस पर भारत के लोग यकीन नहीं कर रहे थे. इसकी सबसे बड़ी वजह थी कि वैक्सीनेशन अंग्रेजों के जरिए होना था. वर्ष 1800 में चेचक का इलाज काफ़ी नया था. एक साल पहले अंग्रेज़ डॉक्टर एडवर्ड जेनर ने इसकी खोज की थी. ईस्ट इंडिया कंपनी दुनिया के सबसे पहले टीके को भारत लेकर आई.

इस योजना में ब्रितानी सर्जन, भारतीय टीकाकर्मी, टीका बनाने वाली कंपनी के मालिक और मित्र शासक शामिल थे. इन मित्र शासकों में सबसे ऊपर वाडियार वंश का नाम आता है जिन्हें ब्रितानियों ने तीस साल के देश निकाले के बाद वापस राज गद्दी पर बिठाया था. भारत में इसे टीके को काफ़ी संदेह के साथ देखा जाता था. कुछ जगहों पर इस टीके के ख़िलाफ़ खुला प्रतिरोध भी देखने को मिला. टीका हर तरह के जाति, धर्म, लिंग और नस्ल के लोगों से एकदूसरे में ट्रांसफ़र हो रहा था जो हिन्दुओं मेंपवित्रताकी विचारधारा से मेल नहीं खाता. इन सारी समस्याओं से निपटने का इससे बेहतर तरीका क्या हो सकता था कि हिन्दू राजवंश की मदद ली जाये जिनकी सत्ता की ताकत उनकी वंशावली या उनके ख़ून से जुड़ी है.

रानी देवजमनी को लगा टीका

वर्ष 1805 में जब देवजमनी पहली बार कृष्णराज वाडियार तृतीय से शादी के लिए मैसूर के शाही दरबार में पहुँचीं तब उन दोनों की उम्र 12 साल थी. कृष्णराज वाडियार तृतीय दक्षिण भारत के एक राज्य से नयेनये शासक बने थे. पर देवजमनी को जल्द ही पता चल गया था कि उन्हें एक बड़े और महत्वपूर्ण काम के लिए चुना गया है.  ये काम चेचक के टीके का प्रसार और प्रचार करना था. लोगों में चेचक के टीके का प्रचारप्रसार करने के लिए और उन्हें इसके इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित करने के मक़सद से ईस्ट इंडिया कंपनी ने देवजमनी की भूमिका को एक पेंटिंग के रूप में उतारा. उन्होंने इस तस्वीर में अपने हाथ से साड़ी को हटाया हुआ है, ताकि वे दिखा सकें कि उन्हें टीका कहाँ लगाया गया. साथ में खड़ी महिला राजा की पहली पत्नी हैं जिनका नाम भी देवजमनी था.

इस राजनीतिक क़दम का श्रेय राजा की दादी लक्ष्मी अम्मानी को जाता है जिन्होंने अपने पति को चेचक की वजह से खो दिया था. पेंटिंग में लक्ष्मी अम्मानी भी हैं, जिनका इस तस्वीर में होना इस बात का प्रतीक है कि वाडियार राजवंश इस टीकाकरण के समर्थन में था.  थॉमस हिकी एक ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने वाडियार राजवंश और दरबार के दूसरे शाही सदस्यों की और भी तस्वीरें बनाई हैं.

यह पेंटिंग शायद इसीलिए बन पाई क्योंकि वे (लक्ष्मी अम्मानी) निर्णायक भूमिका में थीं. उस समय राजा और रानियाँ, दोनों ही इस तस्वीर को मना करने के लिए बहुत छोटे रहे होंगे. समय के साथ यह तस्वीर ब्रिटेन पहुँच गई और लोगों की नज़रों से दूर हो गई. यह वापस 1991 में एक प्रदर्शनी में संज्ञान में आयी.  इसे गुमनामी से निकालकर दुनिया के पहले कुछइम्युनाइज़ेशन कैंपेनयानी टीकाकरण अभियानों के रूप में इसकी पहचान बनाई.

फिर तो सबको हो गया यकीन

जुलाई 1806 के वाडियार शाही दरबार के रिकॉर्ड से यह पता चलता है कि जो लोग उस दौर में टीका लगवाने के लिए आगे आये थे, उन पर देवजमनी के टीकाकरण का काफ़ी प्रभाव पड़ा था. यानी यह माना गया कि जब रानी ने टीका लगवा लिया, तो वो भी ऐसा कर सकते हैं. जैसेजैसे लोगों को इस टीकाकरण की प्रक्रिया के फ़ायदों के बारे में पता चलता गया, वैसेवैसे लोग इसे अपनाते गए और बहुत सारे टीकादार वैरीओलेशन प्रक्रिया से टीकाकरण की ओर जाने लगे.

1807 तक भारत में दस लाख से ज़्यादा टीके लग चुके थे. भारत में वाडियार रानी तक पहुँचने वाले टीके की यात्रा एक ब्रितानी नौकर की तीन साल की बच्ची से शुरू हुई जिसका नाम एना डस्टहॉल था. भारत में इस बच्ची को 14 जून 1802 को सफलतापूर्वक चेचक का टीका दिया गया था. भारतीय उपमहाद्वीप में लगने वाले सारे टीके इसी बच्ची से शुरू हुए. एना के टीकाकरण के एक सप्ताह बाद, उनकी बाँह से पस निकालकर पाँच और बच्चों को चेचक का टीका दिया गया. इसके बाद टीका पूरे भारत में लगाया जाने लगा और हैदराबाद, कोच्चि, चिंगलेपट और मद्रास से होते हुए यह मैसूर के शाही दरबार में पहुँचा. इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि रानी देवजमनी को टीका किस प्रकार लगाया गया था.

 

[better-ads type=”banner” banner=”100781″ campaign=”none” count=”2″ columns=”1″ orderby=”rand” order=”ASC” align=”center” show-caption=”1″][/better-ads]

 

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More