महजबीं से मोहम्मद अली, अब जीने को मोहताज…

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कुदरत के करिश्मे भी बड़े अजीब ओ गरीब हैं. मेहरबान हुई तो दुनिया की तमाम नेमतों से झोली भर दी और जरा सी नाखुश हुई तो जिंदगी को अजाब बना दिया. जिंदगी के 18 सालों तक महजबीं और अब मोहम्मद अली कुदरत के कुछ इसी नाराजगी का कहर झेल रहा है. ऊपर वाला इससे कुछ इस कदर नाराज है कि उसने इसे जिंदगी तो दी लेकिन उसमें मोहताजी का जहर भी घोल दिया. हर रात करवटों में गुजरती है तो हर सुबह एक टीस लेकर आती है. ऐसा क्यों हैं?, कौन है ये महजबीं या मोहम्मद अली ? बताते हैं आपको आगे…

गोद में आया चांद का टुकड़ा   

बाबतपुर के बसनी में रहने वाले नसीरूद्दीन के आंगन में तकरीबन 50 साल पहले किलकारी गूंजी. उस वक्त के इंतजामात के बीच उनकी पत्नी तरन्नुम की डिलिवरी हुई. उस वक्त वहां मौजूद महिलाओं व नाउन ने बताया कि उन्हें खूबसूरत बेटी हुई. घर में यह पहला बच्चा था तो सभी बहुत खुश थे. महिलाओं ने बधाइयां गाईं और मिठाइयां भी बटीं. मां-बाप ने प्यार से बेटी का नाम रखा महजबीं. इस नाम के मतलब के मुताबिक ही बेटी उनके लिए चांद के टुकड़े से कम नहीं थी. पांच साल बाद नसीरूद्दीन के घर में बेटा हुआ इसका नाम उन्होंने रखा एजाज. बुनकरी करने वाले नसीरूद्दीन का परिवार अब पूरा हो गया था. वो जमकर मेहनत करते, अच्छी कमाई करते और पत्नी के साथ बच्चों की परवरिश में कोई कसर नहीं रखी.

खुशियों को लगी नजर

अगले दो-तीन सालों तक नसीरूद्दीन के घर में सब कुछ अच्छा चलता रहा लेकिन उनकी खुशियों को किसी की नजर लग गयी. तीन साल का होने पर पता चला कि बेटा एजाज सुन और बोल नहीं सकता है. कई हकीम, डाक्टर के पास गए लेकिन रुपये खर्च होने के अलावा कोई फायदा नहीं हुआ. मायूस तो जरूर हुए लेकिन हौसला नहीं हारे और बच्चों की परवरिश करते रहे. खासतौर पर महजबीं का हर शौक पूरा करते थे. उसके लिए सुंदर कपड़े खरीदते, उसका नाक, कान छिदवाकर सोने की बालियां भी पहनाई. बच्चों को पढ़ने के लिए मदरसा भी भेजने लगे. थोड़ी उदासी के साथ जिंदगी आगे बढ़ती रही.

परिवार पर टूटा कहर

महजबीं धीरे-धीरे बड़ी होने लगी. उसके आसपास की तमाम हमउम्र लड़कियां उसकी सहेलियां थीं. उनके साथ खेलकूद और मस्ती में उसका दिन गुजर जाता. रिवाज के मुताबिक जहां जरूरी हो वहां पर्दा भी करने लगी. 12-13 साल की उम्र में जब दूसरी लड़कियों के शारीरिक बनावट में बदलाव होने लगा उस वक्त महजबीं के साथ एसा कुछ नहीं हुआ. कई साल बीतने के बाद भी उसमें लड़कियों वाले कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे. जब महजबीं ने 18 साल की उम्र में जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो पिता ने उसकी शादी के लिए लड़कों की तलाश भी शुरू कर दी. तब उसकी मां तरन्नुम ने नसीरूद्दीन के सामने मेहजबीन की अधूरी शारीरिक बनावट की बात रखी. बताया कि उसमें लड़कियों जैसे लक्षण हैं ही नहीं पर लड़कों की तरह दाढ़ी-मूंछ आ रही है. यह जानने के बाद नसीरूद्दीन पर जैसे कहर टूट पड़ा हो.

 

 

बदल गए जिंदगी के मायने

यहीं से महजबीं के लिए जिंदगी के मायने बदल गए. पिता उसे एक लेडीज डाक्टर के पास लेकर गए जिन्होंने मुआयना करने के बाद बताया कि महजबीं लड़की नहीं है बल्कि उसे कुछ आपरेशन करके लड़का बनाया जा सकता है लेकिन यह आपरेशन अमेरिका में ही हो सकता है. परिवार इसका खर्च नहीं उठा सकता था इसलिए बनारस में ही एक डाक्टर की तलाश की गयी. उसने आश्वासन दिया कि तीन आपरेशन के बाद महजबीं को लड़का बना देगा. दो आपरेशन ही हुए थे कि पिता नसीरूद्दीन का इंतकाल हो गया. परिवार के सामने अब और मुश्किल आ गयी. कई महीनों बाद जैसे-तैसे रुपयों का इंतजाम करके मां ने तीसरा आपरेशन कराया. महजबीं लड़का तो बन गयी लेकिन पूरी तरह से नहीं. उसका नाम बदलकर मोहम्मद अली रख दिया गया.

 

मजाक बन गयी जिंदगी

मोहम्मद अली (पहले मेहजबीन) लड़की से लड़का तो बना लेकिन उसकी जिंदगी संवरने की बजाय मजाक बन गयी. उसने लड़कों की तरह लाइफ स्टाइल जीना शुरू किया पर समाज उसे स्वीकार करने को तैयार नहीं था. लोग लड़कियों की नजर से ही देखते थे. जैसे-तैसे वक्त बीतता रहा अब परिवार की जिम्मेदारी उसके कंधों पर थी. पर कोई काम वगैहर नहीं देता था बल्कि लोग मजाक ही उड़ाते. वह शादी करके परिवार बसाना चाहता था. अपनी शारीरिक कमियों की वजह से खुद न करके छोटे भाई की शादी की. उसके एक बेटे और दो बेटियों की परवरिश का इंतजाम करने के लिए अपने पुश्तैनी काम को आगे बढ़ाते हुए घर में पावरलूम लगवाया और छोटे भाई को उस काम में लगाया. खुद एक परचून की दुकान खोल ली. जैसे-तैसे इससे घर का खर्च निकलने लगा. महीने-साल बीतने लगे, छोटे भाई एजाज का बेटा जवान हुआ तो अपने रिश्तेदार के पास सउदी अरब चला गया कमाने के लिए. अब वह भी परिवार के लिए कुछ रुपयों का इंतजाम कर देता है.

शिकायत खुद से है और उस पर‍वरदिगार से

धीरे-धीरे वक्त आगे बढ़ता रहा लेकिन मोहम्मद अली की जिंदगी उसी तरह से दोहरे कैरेक्टर में उलझी रही. वह इसकी शिकायत किससे करे? कुदरत को जिसने उसकी यह हालत की. अपने मां-बाप को जिन्होंने उसे लड़की ना लड़का या फिर ट्रांसजेंडर, कोई भी रूप पूरा नहीं दिया. मोहम्मेद अली कहता है कि उसे किसी से शिकायत नहीं. उसे शिकायत है तो खुद से या फिर उस परवरदिगार से जिसने उसे ऐसी जिंदगी दी. उसकी मां तरन्नुम को भी इस बात का मलाल है कि उसी के साथ ऊपर वाले ने ऐसा खेल क्योंि खेला. उसकी संतान को इस तरह की जिंदगी क्योंि दी. चेहरे पर मायूसी और लाचारी की लकींरे तरन्नुिम के दर्द को बयां कर रही हैं. हमसे बात करने के लिए वह राजी हुईं और कहा कि उसकी पहली संतान थी. घर की बुजुर्ग महिलाएं यहां तक की तजुर्बे वाली बुजुर्ग नाउन ने भी उसके बच्चेह को बेटी ही बताया था. पर 14 साल की उम्र के बाद जब मेहजबीं (अब मोहम्मद अली) में लडकियों के गुण नहीं दिखे तब वो परेशान हुईं. उन्हें  मोहम्म द अली की जिंदगी को लेकर अफसोस है कि उसका खुद का कोई परिवार नहीं होगा तो इस बात की तसल्ली  भी है कि वही अब उनके और बेजुबान छोटे बेटे एजाज के परिवार की परवरिश कर रहा है.

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