अरे “साहिब” इन गरीबों को घर पहुंचाइए, इनके सब्र की परीक्षा मत लीजिए!

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कुछ समय पहले एक फिल्म आयी थी। उनमें अनिल कपूर एक छोटे डॉन के किरदार में थे। बात-बात पर बी पॉजीटिव- बी पॉजीटिव (सकारात्मक रहिए) कहते थे। एक बार हीरो ने झुंझला कर उनसे पूछा कि ये आखिर बी पॉजीटिव का माजरा क्या है? तो अनिल कपूर ने बताया कि उनका ब्लड ग्रुप है। मेरा भी ब्लड ग्रुप बी पॉजीटिव है।

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मैं भी अनिल कपूर के उस किरदार की तरह बी पॉजीटिव होना चाहता हूं। मतलब सकारात्मक रहना चाहता हूं। मेरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि वो आधा ही सही “भरा हुआ गिलास” देखते हैं। खाली गिलास नहीं देखते। मैं भी चाहता हूं कि अपने घर में बैठ कर सुरक्षित महसूस करूं। और जिस तरह इस देश का एक बड़ा मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, इस आपातकाल में, गरीबों के टैक्स से निर्मित सरकारी बंगले में बैठ कर सुकून के साथ रामायण देखता है… उसी तरह मैं भी कम से कम अपने पैसे से बनाए मकान में बैठ कर अपनी कोई पसंदीदा फिल्म देख लूं। और बी पॉजीटिव रह सकूं।

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लेकिन यकीन मानिए दिल्ली और देश भर में लाखों लोगों का जो हुजूम घर जाने के लिए अपनी जान दांव पर रख कर उतरा है, उसे देख कर मैं बी पॉजीटिव नहीं रह पा रहा हूं। मैं उद्वेलित हूं। इन सभी लोगों की बेबसी और पीड़ा देख कर मुझे रोना आ रहा है और मैं इन सबकी जान की सलामती को लेकर बेहद चिंतित हूं। मेरा मन कर रहा है कि मैं इस देश के प्रधानमंत्री से पूछूं कि आखिर वो और उनकी ऐतिहासिक टीम… बीते तीन महीने से कर क्या रही थी कि इतनी बड़ी विपदा आंखों के सामने खड़ी हो गई है? इतनी अफरा-तफरी, इतनी अराजकता सड़कों पर मची है?

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यहां कुछ लोग बार-बार ये बोल रहे हैं कि राज्य सरकारें फेल हो गई हैं। संघी ब्रिगेड बड़ी बेशर्मी से मैदान में उतर गया है। इस ब्रिगेड के सभी सिपहसालार और प्यादें बड़े निर्लज्ज तरीके से ये पूछ रहे हैं कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार क्या कर रही है? बिहार की नीतीश कुमार सरकार क्या कर रही है? उत्तर प्रदेश की योगी सरकार क्या कर रही है? पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार क्या कर रही है? और कुछ अति क्रांतिकारी टाइप के संघी लौंडे यह भी पूछ रहे हैं कि आम आदमी क्या कर रहा है?

मतलब सारा दोष आम आदमी का है और राज्य सरकारों का है। यानी जो भी सवाल पूछ रहा है उसे चुप रहना चाहिए। कम से कम इनके आका नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर सवाल नहीं उठाना चाहिए। अगर सवाल पूछने की बहुत ही चूल उठी है तो प्रदेश सरकारों से सवाल पूछ लिया जाए।

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इन सभी संघी लौंडों से इतना ही कहना है कि लॉक डाउन का फैसला किसका था? क्या यह फैसला सोच-विचार करके और तैयारियों के साथ लिया गया था? क्या सत्ता तंत्र के बरक्स किसी व्यक्ति या फिर व्यक्तियों के समूह को खड़ा किया जा सकता है? अगर आम आदमी को ही “युद्ध लड़ना” होगा तो फिर टैक्स का भुगतान करने की क्या जरूरत है? फिर इस सरकार, इस विधायिका, इतनी बड़ी सेना, इस कार्यपालिका और इस न्यायिक तंत्र की क्या जरूरत है? क्यों नहीं सब पर ताला लगा दिया जाए?

[bs-quote quote=”यह लेखक के अपने विचार हैं, यह लेखक के फेसबुक वॉल से लिया गया है।” style=”style-13″ align=”left” author_name=”समरेंद्र सिंह” author_job=”वरिष्ठ पत्रकार” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/03/samrendra-singh.jpg” author_link=”https://www.facebook.com/SamarendraOfficial?__tn__=%2Cd*F*F-R&eid=ARDkmR7D9eUEPBttdcNj4Y8Gy8VX4SN6BqTP8ZRbEq6W7nYTbC6prMpk9ZcTYZBZARVeTf94JNN3X-Mx&tn-str=*F”][/bs-quote]

आखिर में इतना ही कि बी पॉजीटिव का नारा फिर बुलंद कर लीजिएगा। अभी आप सभी अपने साहिब, अपने आका और इस देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहिए कि वो देश की सड़कों पर अपने परिवार के साथ उतरे गरीब लोगों को सही सलामत घर पहुंचाने का बंदोबस्त करें। वरना गरीबों के सब्र का बांध टूट गया तो साहिब के लिए इस आक्रोशित जन सैलाब को संभालना मुश्किल हो जाएगा।

 

 

 

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