500 बटुकों ने माता-पिता व समाज की जिम्मेदारियों का लिया संकल्प

माता अन्नपूर्णा के आंगन श्रीअन्नपूर्णा ऋषिकुल के यज्ञशाला में हुआ सामूहिक यज्ञोपवित संस्कार का आयोजन

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नाथों के नाथ काशी विश्वनाथ को अन्न की भीक्षा देनेवाली माता अन्नपूर्णा के दरबार में सोमवार को 500 बटुकों का सामूहिक यज्ञोपवित संस्कार कराया गया. सम्पूर्ण विधि विधान से आयोजित यज्ञोपवित संस्कार में मुंडन, कर्णभेद, गायत्री दीक्षा, उपनयन और वेदारम्भ संस्कार आदि से सम्पन्न कराया गया. संस्कार कार्यक्रम का आयोजन श्रीअन्नपूर्णा ऋषिकुल के यज्ञशाला में किया गया था. इस मौके पर अन्नपूर्णा मंदिर के महंत शंकर पूरी ने कहाकि यज्ञोपवीत संस्कार से आंतरिक, बाह्य, नैतिक विकास और चारित्रिक विकास होता है.

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यज्ञोपवीत संस्कार के पारम्परिक रस्मों के अनुसार बटुकों ने अपने माता-पिता सहित परिवारजनों से भिक्षा प्राप्त करने और काशी के लिए दौड़ लगाने की रस्मों का निर्वहन किया.शिवपुर स्थित अन्नपूर्णा ऋषिकुल प्रांगण में बटुकों का यज्ञोपवीत संस्कार आचार्य, पंडित और पुरोहितों की देखरेख में हुआ. यज्ञोपवीत संस्कार के दौरान वेदपाठी पंड़ितों के सामूहिक मंत्रोच्चारण के बीच भगवान गणेश, षोडश मातृका, ब्रह्मा, नवग्रह और वेद माता गायत्री का पूजन हुआ. अग्नि देवता का आवाहन किया गया. बटुकों ने मंत्रोच्चार के बीच हवन में आहुतियां दीं. यज्ञाचार्य की ओर से नव विप्रजनों को यज्ञोपवीत एवं गुरु मंत्र दिया गया. यज्ञोपवीत संस्कार की पारंपरिक रस्मों के अनुसार बटुकों ने अपने माता-पिता सहित परिवारजनों से भिक्षा प्राप्त की और उससे जुड़े सभी रस्मों का निर्वहन किया.

परिजन, रिश्तेदारों ने बटुकों को दिया आशीर्वाद 

मुख्य न्यासी महंत शंकर पूरी, अन्य गणमान्य लोगों के अलावा बटुकों के परिजन, रिश्तेदारों ने बटुकों को आशीर्वाद दिया. साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में सफलता हासिल करने के लिए शुभकामनाएं दीं. इस अवसर पर महंत ने बताया कि ग्रंथों के अध्ययन से पहले संस्कार जरूरी है. जनेऊ को उपवीत, यज्ञ सूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मणिबंध और ब्रह्मसूत्र के नाम से भी जाना जाता है, हमारी भारतीय संस्कृति में यज्ञोपवीत संस्कार 16 संस्कारों के अंतर्गत एक अनिवार्य संस्कार है. हमारे संस्कृत विद्यालय में यज्ञोपवीत संस्कार अति अनिवार्य इसलिए है क्योंकि यहां वेद पाठ, धर्म ग्रंथ, पौराणिक ग्रंथ, सनातन धर्म ग्रंथो का सांगोपांग अध्ययन कराया जाता है. संबंधित अध्ययन के निमित्त जो मूलभूत आवश्यकताएं होती हैं. नियम और विधि के तहत यज्ञोपवीत संस्कार भी अनिवार्य अंग है. बटुक अपने कंधे पर यज्ञोपवीत रखकर ज्ञान, माता-पिता और समाज की तीन जिम्मेदारियां भी लेता है.

वर्ष 2007 से हो रहा सामूहिक उपनयन संस्कार

मंदिर के प्रबंधक काशी मिश्रा ने बताया कि वर्ष 2007 में सामूहिक यज्ञोपवित संस्कार माता अन्नपूर्णा के प्रांगण में होती चली आ रही है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य काशी के धरोहर को जीवंत रखना है. लगभग ढाई हजार लोग इस धार्मिक आयोजन के साक्षी बने और भोग प्रसाद ग्रहण किया. बटुकों के मंगलमय जीवन की कामना की. इस महोत्सव में मुख्य रूप से उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, राजस्थान, दिल्ली और नेपाल के लोगों ने भाग लिया. यज्ञोपवीत संस्कार के दौरान महिलाओं ने मांगलिक गीत गाए. सांयकाल आशीर्वाद गोष्ठी हुआ. इसमें वक्ताओं ने अपने – अपने विचार व्यक्त किये. कहाकि- उपनयन संस्कार से बटुकों का आंतरिक,नैतिक चारित्रिक विकास से जुड़ा हुआ है. अध्यक्षता पूर्व मंत्री श्रीनीलकंठ तिवारी ने और कार्यक्रम संयोजक व संचालन प्रो. रामनारायण द्विवेदी ने किया. विशेष सहयोग में ऋषिकुल के प्राचार्य आशुतोष मिश्रा, प्रदीप श्रीवास्तव, धीरेन्द्र सिंह, राकेश तोमर समेत मंदिर परिवार रहा.

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