कैलेंडर तो हम सभी देखते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि भारत का अपना एक आधिकारिक,शक संवत राष्ट्रीय कैलेंडर भी है? यह सिर्फ तिथियों को गिनने का जरिया नहीं, बल्कि विज्ञान और परंपरा का एक अनोखा संगम है. तो आखिर यह कैलेंडर ग्रेगोरियन कैलेंडर से अलग कैसे है? इसका इतिहास क्या है? और यह हमारे जीवन में क्या अहमियत रखता है?
कैलेंडर (पंचांग) समय को व्यवस्थित करने की एक प्रणाली है, जिसका उपयोग धार्मिक, सामाजिक और प्रशासनिक कार्यों के लिए किया जाता है. यह मुख्य रूप से सूर्य और चंद्रमा की गति पर आधारित होते हैं.
भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर (Indian National Calendar) शक संवत पर आधारित है, जिसे स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने 22 मार्च 1957 से आधिकारिक रूप से अपनाया. तब से यह सरकारी दस्तावेज़ों, राजपत्र, आकाशवाणी समाचार आदि में ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ उपयोग होता है.
बता दें कि ग्रेगोरियन कैलेंडर आज दुनिया का सबसे व्यापक रूप से अपनाया गया कैलेंडर है. चीन ने आधिकारिक रूप से ग्रेगोरियन कैलेंडर अपनाया, लेकिन पारंपरिक त्योहारों और छुट्टियों के लिए चंद्र-सौर कैलेंडर का उपयोग किया जाता है.
डॉ. मेघनाद साहा और भारतीय पंचांग सुधार
स्वतंत्रता के बाद महान वैज्ञानिक डॉ. मेघनाद साहा ने भारतीय पंचांग सुधार समिति का नेतृत्व किया. इसके तहत भारत सरकार ने 22 मार्च 1957 से आधिकारिक रूप से अपनाया, ताकि देश में एकरूपता लाई जा सके. तब से यह सरकारी दस्तावेज़ों, राजपत्र, आकाशवाणी समाचार आदि में ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ उपयोग होता है.
डॉ. साहा ने सुझाव दिया कि दुनिया के सभी कैलेंडरों को एक वैश्विक कैलेंडर में समाहित किया जाना चाहिए, ताकि विभिन्न सभ्यताओं की गणनाओं में एकरूपता लाई जा सके.
भारत का शक संवत राष्ट्रीय कैलेंडर वैज्ञानिक रूप से सौर गणना प्रणाली पर आधारित है. इसे सरकारी दस्तावेजों और समाचारों में प्राथमिकता दी गई है, जबकि धार्मिक आयोजनों में विक्रम संवत और अन्य पंचांगों का उपयोग किया जाता है.
इस कैलेंडर में चैत्र पहला महीना होता है और इसके महीने चंद्र-सौर पंचांग से लिए गए हैं. यह सौर गणना पर आधारित है और इसकी तिथियां स्थायी रूप से ग्रेगोरियन कैलेंडर से मेल खाती हैं. इसके वर्ष की गणना ग्रेगोरियन कैलेंडर से 78 वर्ष पीछे होती है.
कैसे मिला शक संवत नाम
शक संवत, जिसे शालिवाहन शक भी कहा जाता है, भारत में उपयोग होने वाली एक ऐतिहासिक पंचांग प्रणाली है. शक संवत को “शक काल” या “शक युग” भी कहा जाता है. इसका नामकरण “शकों” से जुड़ा हुआ है, जो प्राचीन भारत में एक मध्य एशियाई समुदाय था. इसे शकों पर विजय के उपलक्ष्य में शुरू किया गया माना जाता है. इतिहासकारों के अनुसार, शक संवत की शुरुआत 78 ईस्वी में हुई थी, जब कुषाण सम्राट कनिष्क ने इसे अपनाया, लेकिन ऐतिहासिक रूप से इसकी सही उत्पत्ति को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं.
शक कौन थे?
मध्य एशिया के घुमंतू योद्धा,शक जिनके बारे में इतिहासकारों के मतभेद हैं. इन्हें उत्तरी चीन के झिंजियांग प्रांत का निवासी माना जाता है. जब इन्हें वहां से खदेड़ा गया, तो ये मध्य एशिया पहुंचे और स्किथियन जाति के रूप में पहचाने गए. मध्य एशिया से निष्कासन के बाद शकों ने भारत पर आक्रमण किया और विशाल भूभाग पर अधिकार कर लिया. शुंग वंश के कमजोर पड़ने के बाद शकों ने भारत में अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी.
भारत में शक राजवंश का अंत
सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर भारत को उनसे मुक्त कराया. इसी विजय के उपलक्ष्य में ईसा पूर्व 57 में विक्रम संवत की स्थापना हुई. बाद में शालिवाहन वंश ने भी शकों को हराया, और अंततः चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने उनके शासन का पूरी तरह अंत कर दिया.
राष्ट्रीय कैलेंडर का उपयोग
भारत सरकार ने इसे निम्नलिखित आधिकारिक कार्यों के लिए लागू किया:
- भारत का राजपत्र
- आकाशवाणी द्वारा समाचार प्रसारण
- भारत सरकार द्वारा जारी कैलेंडर
- जनता को संबोधित सरकारी सूचनाएं
- सामान्यत: 1 चैत्र, 22 मार्च को आता है और लीप वर्ष में यह 21 मार्च को पड़ता है.
कैलेंडर प्रणाली का विकास
भारतीय पंचांग: विक्रम संवत और शक संवत
विक्रम संवत: 56 ईसा पूर्व में राजा विक्रमादित्य द्वारा शुरू किया गया.
शक संवत: 78 ईस्वी में कनिष्क के शासनकाल में शुरू हुआ.
भारतीय कैलेंडर प्रणाली
भारत में सौर और चंद्र आधारित कैलेंडर दोनों प्रचलित हैं.
शक संवत का कैलेंडर (सौर वर्ष आधारित)
लीप वर्ष में चैत्र 31 दिन का होता है और यह 21 मार्च से शुरू होता है.
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