पीलीभीत फर्जी एनकाउंटर: 47 पुलिसवालों को उम्रकैद की सजा

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नई दिल्ली। 25 साल पहले उत्तर प्रदेश के पीलीभीत फर्जी मुठभेड़ केस में सीबीआर्इ की विशेष अदालत ने सोमवार को सभी 47 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। एक अप्रैल को कोर्ट ने मुठभेड़ को फर्जी करार देते हुए इस मामले में 47 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया था।

गौर हो कि सिख तीर्थ यात्री बिहार में पटना साहिब और महाराष्ट्र में हुजूर साहिब के दर्शन कर वापस लौट रहे थे, तभी पीलीभीत के पास उन्हें पुलिस ने बस से उतारा और तीन अलग-अलग जंगलों में ले जाकर गोली मार दी थी।

पुलिस ने कहा था कि उसने 10 आतंकवादियों को एनकाउंटर में मार गिराया, लेकिन जब यह पता चला कि वे सिख तीर्थ यात्री थे तो हंगामा खड़ा गया। इस मामले में 57 पुलिसकर्मियों को आरोपी बनाया गया था, लेकिन मामले की जांच के दौरान 10 पुलिस वालों की मौत हो गई। ऐसा कहा गया कि इन हत्याओं का मकसद आतंकियों को मारने पर मिलने वाला पुरस्कार था।

29 जून 1991 को यूपी के सितार गंज से 25 सिख तीर्थयात्रियों का जत्था पटना साहिब, हुजूर साहिब और और नानकमत्ता साहिब के दर्शन के लिए निकला था। 13 जुलाई को उसे पीलीभीत आना था, लेकिन 12 जुलाई को ही पीलीभीत से पहले 60-70 पुलिस वालों ने उनकी बस को घेर लिया और उन्हें उतार लिया।

बस में 13 पुरुष, महिलाएं और तीन बच्चे थे। पुलिस ने महिलाओं, बच्चों और दो बुजुर्ग पुरुषों को छोड़ दिया, लेकिन 11 पुरुषों को वे अपने साथ ले गए।

पहले केस सिविल पुलिस के पास था, लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सीबीआई जांच शुरू हुई। सीबीआई ने 178 गवाह बनाए, 207 दस्तावेज सबूत के लिए लगाए और पुलिसकर्मियों के हथियार, कारतूस और 101 दूसरी चीजें सबूत के तौर पर पेश कीं।

आखिरकार सीबीआई ने अदालत में यह साबित कर दिया कि पुलिस ने अपना “गुड वर्क” दिखाने के लिए तीर्थ यात्रियों को आतंकवादी बता कर मार डाला।

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