तंजील की मौत आतंकी साजिश?

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नोएडा। खबरिया चैनलों की एक खबर ने हमारी सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ा दी है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) से जुड़े डीएसपी तंजील अहमद की 21 गोलियां बरसा कर उनकी हत्या कर दी गई। तंजील की हत्या मामूली नहीं हो सकती है। इस हत्या ने हमारी सुरक्षा व्यवस्था और सुरक्षा तंत्र को सोचने पर मजबूर कर दिया है। तंजील अहमद कोई मामूली अधिकारी नहीं थे। उन पर देश की सुरक्षा जांच की अहम जिम्मेदारी और जबाबदेही थी। 

वह एक जांबाज अफसर थे। पठानकोट एयरबेस पर आतंकी हमले की जांच कर रही एनआईए की टीम में उनकी भूमिका अहम थी। जांच अफसरों में वह प्रमुख थे। हाल में पाकिस्तान से आई जेआईटी जांच दल के अधिकारियों से बातचीत करने वालों में एनआईए की टीम में वह शामिल बताए गए हैं।

पश्चिम बंगाल के बर्धवान विस्फोट और नकली नोटों के जांच की जिम्मेदारी भी उन्हें सौंपी गई थी। दिल्ली की आतंकी घटनाओं का खुलासा करने में भी तंजील ने खासी भूमिका निभाई थी। इस तरह एक अफसर का हमारे बीच से जाना हमारे लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल है।

तंजील अहम छह साल पूर्व बीएसएफ में रहे। उनकी कार्य क्षमता को देखते हुए उन्हें राष्ट्रीय जांच एजेंसी में शामिल किया गया। उनकी काबलियत को देखते हुए सुरक्षा एजेंसी ने कई जांच और जिम्मेदारियां सौंपी।

गौरतलब है कि डीएसपी की हत्या रात में उस वक्त की गई जब वे अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ बिजन्नौर में अपने पैतृक सहसेपुर से आए थे। वहां से शनिवार को अपनी भांजी की शादी में शिरकत करने परिवार के साथ गए थे। रात में शादी समारोह से गांव लौट रहे थे। यह हत्या विजन्नौर जिले के सहसपुर स्योरा थाना क्षेत्र में हुई। निश्चित तौर पर इस हत्या के पीछे बड़ा षड़यंत्र लगता है। क्योंकि जिस स्थान पर डीएसपी तंजील को गोली मारी गई वहां सड़क टूटी हुई है। अहम के दोस्त ने आतंकी साजिश होने की आशंका जताई है।

हमलावरों ने जानबुझ कर यह स्थान चुना था, क्योंकि सड़क टूटने के कारण जैसे ही उन्होंने अपनी गाड़ी धीमी की मौका पाते ही बाइक सवार हमलावरों ने उन्हें गोलियां मार दी। परिजनों का दावा है कि डीएसपी का गांव और रिश्ते में किसी से कोई आपसी दुश्मनी नहीं थी।

इसके साथ ही परिजनों और करीबियों ने आतंकी साजिश की आशंका जताई है। हालांकि एनआईए के डीआईजी संजीव कुमार सिंह ने घटना पर केवल ध्यान केंद्रीत किया है। आतंकी हाथ होने के सवाल में उन्होंने कुछ नहीं बोला है।

यूपी के बड़े अधिकारी भी अभी इस पर मौन हैं क्योंकि यह जांच का विषय है। जांच के बाद ही यह पता चलेगा कि डीएसपी की हत्या आपसी रंजिश में हुई या फिर इसमें आतंकी साजिश थी। क्योंकि घटना रात 12: 45 के बाद हुई है।

मीडिया रिपोर्टों में यह खुलासा हुआ है कि नाइन एमएम पिस्टल से उन्हें गोली मारी गई। जबकि समान्य लोग इस पिस्टल का उपयोग नहीं कर सकते हैं। इसका प्रयोग केवल देश की सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े लोग ही करते हैं। ऐसी स्थिति में सवाल उठता है कि आम लोगों की पहुंच तक वह पिस्टल कैसे पहुंची? हमलावरों की कार्यशैली से यह साबित होता है कि डीएसपी की हत्या के पीछे बड़ी साजिश थी। उनकी हत्या के लिए पूरी प्लानिंग और मर्डर मैप तैयार कर लिया गया था। यह भी पता कर लिया गया था कि वह अवकाश पर घर जा रहे हैं।

डीएसपी और उनकी गतिविधियां तीसरी आंख की निगरानी में थी। जिस तरह 21 गोलियां बरसा कर अधिकारी की जान ली गई है कि उससे यह साफ लगता है कि आतंकी घटना से भी इनकार भी नहीं किया जा सकता है।

इस पिस्टल से एक बार में तेरह राउंड गोलिया बरसाई जा सकती हैं। हालांकि घटना के बाद केंद्रीय सुरक्षा और जांच एजेंसी एनआईए से जुड़े अधिकारी घटना स्थल पर पहुंच गए हैं।

यूपी की एसटीएफ, एटीएस और राज्य के बड़े अधिकारियों ने भी घटना को चुनौती के रुप में लिया है। अगर इस घटना में आतंकी साजिश का हाथ साबित होता है तो हमारे लिए यह बड़ी चुनौती की बात होगी। इससे यह साबित हो जाएगा कि आंतकियों के हाथ हमारी सुरक्षा एजेंसियों से काफी लंबे हैं। क्योंकि हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े एक अधिकारी के पल-पल की हरकत को आतंकी अपनी निगरानी में रख रहे थे और हमें भनक तक नहीं लगी।

हमारे बीच से एक जांबाज अफसर चला गया। इस घटना के बाद सुरक्षा खामियों को लेकर कई सवाल हवा में तैर रहे हैं, जिसका जबाब हमारे पास नहीं है। अहम सवाल यह है कि डीएसपी तंजील अहमद कोई मामूली आदमी नहीं थे। उनकी तैनाती राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी से जुड़ी थी।

देश में बढ़ती आतंकवादी घटनाओं को देखते हुए इन एजेंसियों और इससे जुड़े लोगों की सुरक्षा का सवाल अहम हो गया है। इस हत्या के पीछे का कारण क्या है यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा। लेकिन तंजील की सुरक्षा के प्रति इतनी लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए थी। क्योंकि वे एक जांच टीम में शामिल थे। देश की सुरक्षा से जुड़े कई अहम जांचों की उन पर जिम्मेदारी रही। ऐसी स्थिति में आईएनए और देश की सरकार को ऐसे अधिकारियों की सुरक्षा को लेकर खास एतिहात बरतनी चाहिए थी। समारोह से अकेले तंजील का जाना उचित नहीं था। उन्हें निजी सुरक्षा मुहैया करायी जानी चाहिए थी।

केंद्रीय सरकार और जांच एजेंसी आईएनए को इस घटना से सबक लेना होगा। डीएसपी जिस समय रात को लौट रहे थे अगर उनके साथ राज्य पुलिस की सुरक्षा उपलब्ध होती तो आज इस तरह की वारदात को रोका जा सकता था। लेकिन दुर्भाग्य से हम इस घटना को रोक नहीं पाए।

निश्चित तौर पर इसके पीछे हमारी नाकामी या भूल कही जा सकती है। अगर इस घटना में आतंकी साजिश का हाथ साबित हो जाता है तो हमारे लिए यह बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि हाल में पाकिस्तान की जेआईटी पठानकोट हमले की जांच के लिए भारत आई थी और टीम के वापस लौटते ही हमारे एक अधिकारी की हत्या आतंकी साजिश की बड़ी सफलता कही जा सकती है। क्योंकि इसके पीछे कोई न कोई बड़ी साजिश काम कर रही थी, जो डीएसपी की हर-एक गतिविधि पर खास निगाह गड़ाए थी। अगर ऐसा नहीं है तो फिर डीएसपी की हत्या क्यों की गई। हत्या के पीछे मुख्य कारण क्या है। इसका खुलासा होना चाहिए।

घटना को अंजाम देने के पीछे तंजील अहमद से जुड़ा कोई करीबी हो सकता है जो हत्यारों को उनकी एक-एक गतिविधि की जानकारी उपलब्ध करा रहा था। घटना की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंपी जानी चाहिए। इस साजिश के पीछे किसका हाथ है इसका खुलासा हो और वह चेहरा देश के सामने आए जिसने इतनी घिनौनी साजिश रची है।

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