आतंकियों की गोली भी नहीं तोड़ पाई जावेद का हौसला

0

श्रीनगर। जिद नाम है उस हौसले का जिसमें नामुमकिन को मुमकिन बनाने का जुनून हो। बिरले ही होते हैं ऐसे  जिद्दी लोग और उनके मजबूत इरादों के सामने दुनिया घुटने टेकने को मजबूर होती है। एक शिक्षक इस बात को बहुत बेहतरीन तरीके से सिखा रहा है कुछ नन्हें मुन्ने देश के भविष्य को। जी हां, बिजबिहाड़ा के रहने वाले जावेद टाक एक निजी इमारत में 100 से अधिक दिव्यांग (विकलांग, गूंगा-बहरा) गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का काम कर रहे हैं।

जावेद के रिश्तेदारों के घर पर 21 मार्च 1997 की रात को आतंकियों ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं। जावेद टाक तब मौके पर मौजूद थे। इस दौरान वह गंभीर रूप से घायल हो गए। तकरीबन एक साल तक अस्पताल में रहने के बाद घर पहुंचे। इसके बाद वर्ष 1999 से 2000 तक वह फिर बीमार रहे। इस बीच वर्ष 2000 में ही जावेद ने संकल्प लिया कि अब वह गरीब बच्चों को पढ़ाएंगे।

वर्ष 2005 में जावेद ने मन बनाया कि वह जिले में इस बात की खोज करेंगे कि और कितने उनके जैसे दिव्यांग लोग हैं। इस दौरान उन्हें 37 लोग ऐसे मिले। उनके साथ उन्होंने बातचीत की। इसके बाद 2007 में एक स्कूल खोला, जो निजी इमारत में संचालित हुई। उन दिनों इंडियन नेवी के चीफ सुरेश मेहता कश्मीर के दौरे पर थे। उस दौरान उन्होंने जावेद के हौसले से प्रभावित होकर स्कूल के लिए एक एंबुलेंस दी, जो 26 सीटों वाली थी।

अभी स्कूल में 113 बच्चे पढ़ने आते हैं। इनमें 62 बच्चे नियमित रुप से स्कूल आते हैं। टाक ने स्कूल का नाम ‘जेबा आपा इंस्टीट्यूट’ रखा है। जावेद टाक ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब ‘मन की बात’ कार्यक्रम में स्कूल का जिक्र किया तो उन्हें अपार खुशी मिली। लेकिन, ‘मन की बात’ उनके ‘मन’ में ही रही। उनका कहना है कि उनके स्कूल को मदद की दरकार है, क्योंकि अभी तक उन्हें किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिली है। हालांकि उन्होंने उम्मीद जताई कि उन्हें सपोर्ट जरुर मिलेगा।

जावेद को अभी तक कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके हैं। इनमें नेशनल अवॉर्ड फॉर वेलफेयर ऑफ डिसएबल पर्सन 2004 शामिल है। 2010 में स्टेट अवॉर्ड फॉर डिफार्म्स एंड एंपावरमेंट मिला। 2009 सिटीजन जर्नलिस्ट अवॉर्ड भी मिला।

जावेद टाक का कहना है कि मैं दिव्यांगों के लिए आखिरी दम तक लड़ूंगा। जो भी समस्याएं आती हैं, उनके साथ खड़ा रहता हूं। उनका कहना है कि उन्हें तब खुशी मिलती है, जब वह उन दिव्यांगों को देखते हैं, जो कभी बोल नहीं पाते थे। अब वह खुद अपना काम करते हैं। हालांकि अभी बहुत कुछ करना है। इसमें राज्य और केंद्र सरकार से मदद की अपील की है।

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. AcceptRead More