अहमद पटेल की जीत के कई मायने

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भाजपा के चाणक्य अमित शाह के मुकाबले कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल की जीत के कई सियासी मायने हैं। इसका इस साल के अंत में गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी असर पड़ेगा।

कई कारणों से बैकफुट पर चल रही भाजपा के मुकाबले फिलहाल कहीं नहीं दिख रही कांग्रेस को सियासी बढ़त मिलेगी। आगामी गुजरात विधानसभा चुनाव दिलचस्प होने जा रहा है।

दरअसल अहमद कांग्रेस की पर्दे के पीछे की ताकत हैं, इसलिए हराने में भाजपा जुटी रही है।
अहमद पटेल ने अंतिम बॉल पर छक्का मारकर मैच जीतने का लक्ष्य पाने जैसा रोमांच पैदा कर ही दिया। इसने कांग्रेस नेतृत्व सहित देश की जनता की धड़कनें बढ़ा दी थीं। पटेल की जीत की स्थिति में कांग्रेस अब केंद्र सरकार और भाजपा पर हमला तेज करेगी।

67 साल के अहमद पटेल कांग्रेस के शीर्ष परिवार की तीन पीढ़ियों को सियासी मंत्र पढ़ाते रहे हैं।सीधे चुनाव से परहेज कर विधानसभा के रास्ते पांचवीं बार राज्यसभा में जाने का इस बार का प्रयास उनके सियासी जीवन की सबसे बड़ी चुनौती बन गया था। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से उनकी सियासी अदावत ने उन्हें चक्रव्यूह में अच्छी तरह फंसाया पर वे जैसे तैसे निकल गये। यह रास चुनाव उनके भावी सियासी जीवन का भी रास्ता तय करेगा। जीत गये इसलिए कद बरकरार रहेगा, हार जाते तो हाशिए पर चले जाते।

पटेल को 2004 व 2009 के लोस चुनावों में संप्रग की जीत का अहम रणनीतिकार माना जाता है। कांग्रेस व संप्रग की अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार के नाते वे मनमोहन सरकार के कई अहम फैसलों में निर्णायक भूमिका निभाते थे। उनकी भूमिका कांग्रेस संगठन से लेकर सरकार तक सबसे ताकतवर नेता के रूप में थी। नियुक्तियों, पदोन्नतियों से लेकर फाइलों पर फैसलों तक में उनका सिक्का चलता था। वे कांग्रेस के कुछेक नेताओं में हैं, जिनकी गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों (राजीव, सोनिया व अब राहुल) से अत्यंत करीबी रही।

पटेल 1977 में 26 साल की उम्र में गुजरात के भरुच से लोस चुनाव जीतकर सबसे युवा सांसद बने थे। तब देश में आपातकाल के खिलाफ आक्रोश से  पनपी जनता पार्टी की लहर चल रही थी। ऐसे में उनका जीतना पार्टी के लिए चौंकाने वाला था। वे 1993 से राज्यसभा सदस्य हैं। उनकी रुचि मंत्री बनने में नहीं बनवाने में रही। मुद्दा उछालने व हवा देने में माहिर पर्दे के पीछे से सियासी रणनीति के मास्टर माइंड पटेल को मुद्दे बनाने व उछालने का महारथी माना जाता है।

जीत गये इसलिए कांग्रेस को लाभ…
-कांग्रेस में अपना कद व वर्चस्व कायम रख पाएंगे।
-गुजरात में इसी साल होने वाले विस चुनाव में भाजपा की मुश्किलें बढ़ेंगी
-राहुल की अध्यक्ष पद पर संभावित ताजपोशी के बाद भी सलाहकार बने रह सकेंगे।

…हार जाते तो शाह का मिशन पूरा होता
-अमित शाह गुजरात में पटेल द्वारा उन पर किए सियासी का बदला ले लेते।
-खास सिपहसालार की हार का झटका कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी लगता।
-गुजरात में कांग्रेस कमजोर होती और बचे-खुचे विधायकों में वाघेला या भाजपा की ओर दौड़ बढ़ती।
-गुजरात विस चुनाव में भाजपा की पांचवीं बार जीत की संभावनाएं पुख्ता नहीं रहतीं।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह व सोनिया गांधी के करीबी अहमद पटेल के बीच अदावत काफी पुरानी है। यह 2010 में तब और परवान चढ़ी जब सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर केस में शाह को जेल जाना पड़ा था। माना जाता है कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने पटेल के इशारे पर शाह को इस मामले में घेरा था। पहले मामला बहुत सीधा सादा था। तीन सीटों पर तीन उम्मीदवार थे। भाजपा की तरफ से अमित शाह और स्मृति ईरानी और कांग्रेस से अहमद पटेल।

लेकिन इसने नया मोड़ लिया, जब कांग्रेस के नेता विपक्ष शंकर सिंह वाघेला ने इस्तीफा दे दिया। उनके साथ छह और कांग्रेस विधायकों ने पार्टी छोड़ी, जिनमें से तीन भाजपा में चले गए। इनमें गुजरात विधानसभा में कांग्रेस के चीफ व्हिप बलवंत सिंह राजपूत भी थे। बलवंत सिंह राजपूत को भाजपा ने राज्यसभा के लिए अपना तीसरा उम्मीदवार बना दिया और यहीं से शतरंज की बिसात पलट गई।

इसी साल नवंबर-दिसंबर में गुजरात में चुनाव होने हैं, जहां कई वजहों से भाजपा बैकफुट पर है। 2019 के लोकसभा चुनावों में भी ये सब चीजें बड़ी अहम हो जाती हैं। इस वजह से इस चुनाव का महत्व बढ़ गया था।

कांग्रेस ने सोमवार को कहा कि वह आश्वस्त हैं कि पार्टी नेता अहमद पटेल गुजरात से राज्यसभा चुनाव जीतेंगे, क्योंकि कांग्रेस के पास बीजेपी से 14 वोट ज्यादा हैं। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा, ‘अहमद पटेल चुनाव जी तेंगे। हमारे पास बीजेपी से 14-15 वोट ज्यादा हैं।’ आजाद राज्यसभा में विपक्ष के नेता भी हैं।

उन्होंने कहा, ‘फिर भी बीजेपी कह रही है कि वह चुनाव जीतेगी। इसका मतलब है कि वह धोखाधड़ी की योजना बना रही है। बीजेपी वोट चुराने का प्रयास कर रही है।’ कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बीजेपी विधायकों को रिश्वत देने की कोशिश में है, जिससे कि वह गुजरात के राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ वोट करें।

बहरहाल अहमद की जीत ने कांग्रेस को एक नयी संजीवनी दे दी है। सिर्फ दशमलव पांच यानी आधी वोट से जीत भी कांग्रेस के लिए बड़ी जीत बन गयी। इसके बहुत मतलब निकलेंगे।

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