इंटरकास्ट मैरिज पर SC का बड़ा फैसला, ‘जाति-सम्मान’ के आगे नहीं झुक सकते जीवन-साथी चुनने वाले युवा’

0

संविधान-निर्माता बी.आर. अम्बेडकर का मानना था कि जाति की बंदिश तोड़ने का निदान अंतर-विवाह है। उनके इसी विचार को दोहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अपने जीवन साथी का चयन करने वाले युवा लड़के और लड़कियां जाति-सम्मान या सामुदायिक सोच की अवधारणा के आगे नहीं झुक सकते।

जस्टिस संजय किशन कौल और हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने कहा कि शिक्षित युवा लड़के और लड़कियां आज समाज के उन मानदंडों से इतर होकर अपने जीवन साथी चुन रहे हैं जिसमें जाति और समुदाय की प्रमुख भूमिका होती थी।

पीठ ने इसे एक प्रगतिशील दृष्टिकोण बताया और कहा कि इससे अंतर-विवाह द्वारा उत्पन्न जाति और सामुदायिक तनाव में कमी आ सकती है।

यह भी कहा कि हम इस न्यायालय के पहले के न्यायिक फैसलों से और दृढ़ हो गए हैं जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि जब दो वयस्क व्यक्ति शादी के बंधन में बंधना चाहते हैं तो परिवार, समुदाय या खानदान की सहमति आवश्यक नहीं है। उन दोनों की सहमति को प्रमुखता दी जानी चाहिए।

पीठ ने कहा कि विवाह की अंतरंगता गोपनीयता में अंतर्निहित होती है जिसमें धर्म, आस्था का भी उन पर कम ही फर्क पड़ता है। संविधान के अनुच्छेद 21 में एक वयस्क व्यक्ति को अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार प्रदत्त है।

इस मामले में सुनाया फैसला-

मुख्यमंत्री

गौरतलब है कि कुछ अर्सा पहले कर्नाटक में एक व्यक्ति ने थाने में अपनी बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। उस लड़की ने अपने पिता को सूचित किए बगैर अपनी मर्जी से उत्तर भारत में रहने वाले एक व्यक्ति से शादी कर ली।

इस घटना की जानकारी मिलने के बाद जांच अधिकारी ने लड़की से थाने में हाजिर होकर अपना बयान दर्ज कराने के लिए कहा ताकि मामले को रफा-दफा किया जा सके। साथ ही अधिकारी ने उसे इस बात की भी ताकीद कि अगर उस लड़की ने थाने आकर अपना बयान दर्ज नहीं कराया तो उसके पति के खिलाफ अपहरण का मामला भी दर्ज किया जा सकता है।

पुलिस द्वारा गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दिए जाने के बाद दंपति ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई। अधिकारी द्वारा लड़की को कार्रवाई की चेतावनी दिए जाने के कारण कोर्ट ने उसे फटकार लगाई।

कोर्ट ने सुनाया फैसला-

couple

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति की पसंद गरिमा का एक अटूट हिस्सा है और गरिमा के लिए यह नहीं सोचा जा सकता है कि पसंद का क्षरण कहां है।

कोर्ट ने कहा कि इस तरह के अधिकार या पसंद ‘जाति-सम्मान’ या ‘सामुदायिक सोच’ की अवधारणा के आगे नहीं झुक सकते।

लड़की के पिता द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी को खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि कोर्ट अपेक्षा करता है कि अगले आठ हफ्तों में इस तरह के सामाजिक संवेदनशील मामलों को कैसे निपटाया जाए – इस पर कुछ दिशानिर्देश और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएं।

पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि लड़की के परिवार को शादी को स्वीकार करना चाहिए और दंपति के साथ सामाजिक संपर्क को फिर से स्थापित करना चाहिए। जाति और समुदाय की आड़ में बच्चे और दामाद को अलग करना शायद ही एक वांछनीय सामाजिक कवायद होगी।

यह भी पढ़ें: Video : भोजपुरी का सबसे हॉट सीन, अकेले में ही देखें

यह भी पढ़ें: हमेशा जवां दिखने के लिए अपनाएं ये टिप्स, हर कोई होगा दीवाना

[better-ads type=”banner” banner=”104009″ campaign=”none” count=”2″ columns=”1″ orderby=”rand” order=”ASC” align=”center” show-caption=”1″][/better-ads]

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं। अगर आप डेलीहंट या शेयरचैट इस्तेमाल करते हैं तो हमसे जुड़ें।)

 

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More