हिंदी में लिख दिया सब्जी उगाने की तकनीक, मिला सम्मान

आईआईवीआर के वैज्ञानिकों को हिंदी में तकनीकी पुस्तक लेखन पर किया गया सम्मानित

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वाराणसी स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान का सम्मान बढ़ा है. यहां के वैज्ञानिकों ने सब्जी विज्ञान पर आधारित किताब को हिंदी में प्रकाशित किया है. इस अनोखे कार्य के लिए उन्हें सम्मानित किया गया. यह संस्थान सब्जी की नई प्रजातियों के साथ बीज शोधन कार्य के लिए देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में पहचान रखता है. इस संस्थान के वैज्ञानिक को सब्जी विज्ञान की आधुनिक तकनीक पर एक किताब लिखने के लिए मैनेज, हैदराबाद की ओर से पुरस्कृत किया गया है, इससे संस्थान के लोग गौर्वान्वित महसूस कर रहे हैं.

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भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान की पुस्तक “सब्जी विज्ञान की आधुनिक तकनीक“ को हैदराबाद (तेलंगाना) स्थित राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान (मैनेज) के 37वें स्थापना दिवस के अवसर पर मंगलवार को कृषि प्रसार पुस्तक की श्रेणी में प्रथम पुरस्कार मिला. मुख्य अतिथि कुलपति (रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय) ने संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. डी.आर. भारद्वाज को पुरस्कार दिया. इस पुस्तक में संस्थान के अंदर सब्जियों की विकसित नवीनतम किस्में, जैविक खेती, फसल सुरक्षा, जैविक फार्मुलेशन का उपयोग आदि की जानकारी उपलब्ध है. सब्जियों व उसके बीज उत्पादन द्वारा उद्यमीकरण, सब्जियों का गुणवत्तायुक्त अधिक उत्पादन प्राप्त करने की तकनीकी, दियारा कृषि, संरक्षित कृषि, तुड़ाई के बाद प्रबंधन तकनीकी व कम जगह में अधिक उत्पादन के लिए मशरूम उगाने की विधियों के बारे में विस्तृत जानकारी भी किताब में है. यह जानकारी किसानों, छात्रों व कृषि से जुड़े सभी अधिकारियों के लिए उपयोगी साबित होगी. किताब के लेखक डॉ. टी.के. बेहेरा, डॉ. डीआर भारद्वाज, डॉ. रामेश्वर सिंह, डॉ. नीरज सिंह एवं डॉ. रजनीश श्रीवास्तव हैं.

प्रगतिशील किसानों के लिए आईआईवीआर की जिम्मेदारियां

आईआईवीआर में पीजीआर प्रबंधन, सब्जी प्रजनन, आनुवंशिकी और कोशिका-आनुवांशिकी, आणविक प्रजनन, ट्रांसजेनिक, ऊतक संवर्धन, बीज प्रौद्योगिकी, कृषि विज्ञान, मृदा विज्ञान, फसल शरीर क्रिया विज्ञान और जैव रसायन, कटाई उपरांत प्रौद्योगिकी, सांख्यिकी, अर्थशास्त्र और विस्तार, एकीकृत कीट और रोग प्रबंधन, अवशेष विश्लेषण और जैव नियंत्रण पर अच्छी तरह से सुसज्जित प्रयोगशालाएं हैं. जर्मप्लाज्म के बीजों के मध्यम अवधि के भंडारण के लिए जीन-बैंक भी उपलब्ध है. एक अच्छी तरह से विकसित 150 एकड़ का अनुसंधान फार्म और कई ग्लास हाउस, पॉली-हाउस और नेट-हाउस हैं.

अनुसंधान से विकसित हुईं सब्जियों की ये प्रजातियां

बेहतर गुणवत्ता वाले फलों, जैविक और अजैविक तनावों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता वाली उच्च उपज देने वाली किस्मों व संकरों को विकसित करने के प्रयास किए गए हैं. संस्थान ने अब तक 42 किस्में व संकर विकसित किए हैं, जिनमें टमाटर की पांच, बैंगन की चार, भिंडी की 10, मटर की छह, लोबिया की चार, मिर्च, मूली और लौकी की 2-2, फूलगोभी, खरबूजा, कद्दू, करेला और फ्रेंच बीन की 1-1 किस्में शामिल हैं. इन बीजों में एक दर्जन मिर्ची, लाल मूली, पीले टमाटर, गोभी, थ्री डी सेम, कद्दू, लोबिया, लौकी, पेठा, चिकनी तोरई, भिंडी, बैंगन, मटर, आलू, लहसुन, अदरक, प्याज, जैविक शिमला मिर्च आदि कई तरह की सब्जियों की कई वैरायटी तैयार की गईं हैं.

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