भारत में घरेलू नौकर होते दुर्व्यवहार के शिकार

0

राष्ट्रीय राजधानी से सटे नोएडा में एक उच्च वर्गीय सोसाइटी में घरेलू नौकरों को लेकर उपजे विवाद के बीच तृप्ति लाहिड़ी की किताब ‘मेड इन इंडिया’ देश में घरेलू नौकरों से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर संवेदनशील तरीके से सोचने पर विवश करती है। लाहिड़ी अपनी इस पुस्तक में कहती हैं कि उदारीकरण के अगले दशक में देश में घरेलू नौकरों की संख्या में 120 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। इस असंगठित क्षेत्र में कार्यबल का दो तिहाई हिस्सा महिलाएं भरती हैं और उनमें से अधिकतर झारखंड, पश्चिम बंगाल और असम जैसे देश के पिछड़े इलाकों से आती हैं।

इनमें से भी अधिकतर अल्पायु में ही काम शुरू कर देती हैं और उन्हें सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन से भी कम वेतन दिया जाता है।

इन्हें नौकरी देने वाले लोगों में देश के धनाढ्य वर्ग से लेकर नव धनाढ्य होते हैं, जिनमें से अधिकतर अभी भी मालिक और नौकर के बीच के पारंपरिक अंतर में विश्वास करते हैं।

गृह सहायिका के रूप में काम करने वाली इन महिलाओं के साथ गाली-गलौज, मानसिक, शारीरिक एवं यौन शोषण सामान्य सी बात है। मालिक और मुस्लिम घरेलू नौकरानी के बीच इसी तरह के एक विवाद ने 12 जुलाई को नोएडा की सोसाइटी में दंगे जैसे हालात पैदा कर दिए थे।

डिजिटल मीडिया ‘क्वार्ट्ज’ की एशिया ब्यूरो चीफ लाहिड़ी अपनी पुस्तक में वास्तविक जीवन की कहानियों के जरिए घरेलू नौकरों की दशा-दिशा को बड़ी ही प्रामाणिकता के साथ पेश करती हैं तथा ब्रोकरों और एजेंटों के कारोबार का विस्तार से ब्यौरा पेश करती हैं।

लाहिड़ी के अनुसार, भारत में घरेलू नौकरों के लिए न्याय हासिल कर पाना बेहद मुश्किल है। पुस्तक में लाहिड़ी ने बतौर घरेलू नौकर अपने खुद के अनुभव को भी बयां किया है। इसके अलावा पुस्तक में उनका साक्षात्कार भी है।

साक्षात्कार के कुछ अंश :

प्रश्न : आप लिखती हैं कि भारत में हमेशा से किसी न किसी रूप में नौकरों का अस्तित्व रहा है। तो यह बताइए कि पिछली एक शताब्दी में इस क्षेत्र का क्या रुझान रहा है?

1931 की जनगणना में देश की 27 लाख आबादी को ‘नौकर’ के रूप में चिह्नित किया गया है। वहीं 1971 में हुई जनगणना में यह संख्या घटकर महज 67,000 रह गई।

लेकिन 1991 से 2001 के बीच अचानक घरेलू नौकरों की संख्या में 120 फीसदी की अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गई। घर से बाहर निकलकर काम करने वाली महिलाओं की संख्या में भी तेज वृद्धि हुई।

जनगणना के अनुसार, 2001 से 2011 के बीच देश में घरेलू नौकर के तौर पर काम करने वाली 15-59 आयुवर्ग की महिलाओं की संख्या में 70 फीसदी की वृद्धि हुई। 2001 में जहां देश में महिला घरेलू नौकरों की संख्या 1.47 करोड़ थी, वहीं 2011 में यह संख्या बढ़कर 2.5 करोड़ हो गई।

प्रश्न : भारत में घरेलू महिला नौकर प्रति सप्ताह करीब 35 घंटे काम करती हैं, जबकि पुरुष घरेलू नौकर उनसे 15 फीसदी कम काम करते हैं, जो किसी भी देश में महिला-पुरुष के बीच काम का सबसे खराब अनुपात है। इससे आपको देश में घरेलू नौकरों के संबंध में क्या पता चलता है?

मेरे लिए यह आंकड़े भारत में महिला और पुरुष के बीच के अंतर को व्यक्त करने वाला है। 21वीं शताब्दी के पहले दशक में जहां आधिकारिक आंकड़े कार्यबल में महिलाओं की संख्या घटने की बात कर रहे थे, वहीं अन्य आधिकारिक अध्ययनों में सामने आया कि इस दौरान महिलाएं बड़ी संख्या में बिना वेतन के घरेलू कामों में लगी हुई थीं।

प्रश्न : 80 के दशक की अपेक्षा अब कहीं अधिक लोग शिक्षित हैं। महिलाएं भी तेजी से शिक्षित हुई हैं। लेकिन इसके बावजूद घरेलू नौकरों का क्षेत्र इतना तेज क्यों विकसित हुआ?

ऐसा शहरी आबादी के अमीर होने और शहरों में महिलाओं के अधिक संख्या में काम करने के चलते हुआ। स्कूल जाने वाली लड़कियों की संख्या भी तेजी से बढ़ी। ऐसे में अगर वे उच्च शिक्षा लेना चाहती हैं और शिक्षा हासिल कर नौकरियों में जाती हैं, तो उन्हें घरेलू कामकाज के लिए मदद की जरूरत होगी।

प्रश्न : कुछ स्टार्टअप और संगठनों ने घरेलू नौकरों के इस क्षेत्र को संगठित करने की कोशिशें की हैं, लेकिन आप अपनी पुस्तक में कहती हैं कि इस क्षेत्र के सांगठनीकरण की कोशिशें खास सफल नहीं हुर्इं। इसमें क्या अड़चनें आर्इं?

दो सबसे बड़ी अड़चनें हैं। लोग अपने आस-पास के लोगों द्वारा घरेलू नौकरों को दिए जाने वाले वेतन को ही सही मानते हैं। इसलिए उन्हें घरेलू नौकरों को अधिक वेतन देने के लिए राजी करना बेहद मुश्किल होता है। अगर वे इसके लिए राजी भी होते हैं तो उसी अनुपात में ढेरों काम लेना चाहते हैं। इसके अलावा गरीबी से परेशान होकर काम की तलाश में नए-नए आए व्यक्तियों द्वारा कम वेतन पर काम करने पर राजी होने के चलते भी सांगठनिक तौर पर अधिक वेतन की मांग करना संभव नहीं हो पा रहा।

(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित परोपकारी मंच इंडिया स्पेंड के साथ एक करार के तहत)

(अन्य खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें। आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं।)

 

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More