विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला : डरें नही ! हम आप के लिए मनुष्य रूप में धरती पर अवतार लेगें

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वाराणसी के विश्वप्रसिद्ध रामनगर की रामलीला को मंगलवार को विधिवत आगाज हो गया. कहते हैं कि जब-जब पृथ्वी पर अनाचार बढ़ता है तब-तब प्रभु किसी न किसी रूप में अवतार लेकर अनाचार के दानव का खात्मा करते हैं. हर अन्याय का अंत कभी न कभी हो कर रहता है. फिर रावण तो जन्म लेते ही अन्याय और अत्याचार पर आमादा हो गया. देवताओं से युद्ध उसके बाएं हाथ का खेल था तो यज्ञ विंध्वस उसकी आदत बन गई थी. उसके मेघनाथ और कुम्भकरण जैसे भाई भी उसकी ही सुनते थे. रावण के अत्याचारों से परेशान देवता जब भगवान विष्णु के पास मनुहार ले कर पहुंचे तो अकाशवाणी हुई कि आप डरें नही. हम आपके कल्याण के लिए धरती पर मनुष्य रूप में अवतार लेंगे.

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ब्रह्मा ने रावण को दे दिया अमरत्व का वरदान

रामनगर की रामलीला के प्रथम दिन इन्ही प्रसंगों का मंचन हुआ. पहले दिन का सबसे बड़ा आकर्षण क्षीरसागर की झांकी रही जिसे देखकर लोग भावविह्वल हो गए. काशी की प्राचीन संस्कृति और अक्खड़मिजाजी का मेल मंगलवार की शाम रामनगर की रामलीला के बहाने रामनगर में दिखा. शाम करीब साढ़े पांच बजे रावण जन्म के साथ रामलीला का पारम्परिक शुभारम्भ हुआ. कुंवर अनंत नारायण सिंह की मौजूदगी में रामबाग के मुख्य द्वार पर शुरू हुई लीला में जन्म के बाद रावण यज्ञ करने लगा. यज्ञ सफल होते ही ब्रह्मा ने प्रसन्न होकर उसे अमरत्व का वरदान दे दिया. अमरत्व का वरदान पाते ही अहंकार से चूर रावण ने देवलोक में खलबली मचा दी. कुबेर पर आक्रमण कर उसका पुष्पक विमान छीन लिया. रावण के आतंक से भयभीत होकर देवराज इंद्र देवी-देवताओं के साथ बैकुंठ के लिए पलायन कर गए. रावण के अमरत्व का वरदान हासिल करने के बाद कुंभकर्ण ने छह महीना सोने और एक दिन जागने का वर मांगा. मेघनाद तो इन्द्र को ही पकड़ लाया. इसके बाद उसे इंद्रजीत का अलंकरण मिला. लीला के एक दृश्य में ब्रह्मा जी लंकिनी से कहते हैं कि राक्षसराज रावण लंबे समय तक लंका पर राज करेगा. लेकिन एक दिन ऐसा आएगा, जब एक वानर का तुम लोग अपमान करोगे और वह लंका को जला देगा.

आकाशवाणी : मनु और शतरूपा ने अयोध्या के राजा और रानी रूप में ले लिया है जन्म  

इधर, रावण के आतंक से धरती कांपने लगती है. गाय के वेश में पृथ्वी ब्रह्मा के पास पहुंच कर रावण से मुक्ति दिलाने की गुहार लगाती है. सभी देवता क्षीर सागर में प्रवास कर रहे भगवान विष्णु के पास पहुंच कर रक्षा की गुहार लगाते हैं. तभी अकाशवाणी होती है कि आप लोग डरें नही. आप के कल्याण के लिए हम मनुष्य रुप में धरती पर अवतार लेंगे. मनु और शतरूपा ने इस जन्म में अयोध्या के राजा दशरथ और कौशल्या के रूप में जन्म लिया है. हम उन्ही के यहां अवतार लेंगे. इसी के साथ भव्य क्षीर सागर की झांकी सजती है और आरती होती है. इस नयनाभिराम भव्य झांकी के दर्शन के लिए घनघोर बारिश के बीच लीला प्रेमियों का जैसे सैलाब उमड़ पड़ा था. रामबाग पोखरे के चारों तरफ केवल और केवल लीला प्रेमी ही दिख रहे थे. हाथ में टेढ़ी-मेढ़ी डिजाइन वाली छड़ियां, छाते, कुरता-धोती, अंगौछा धारण किए, मानस की पोथी लिए लोगों ने झांकी और लीला का अवलोकन किया. इसी के साथ प्रथम दिन की लीला को विराम दिया गया.

बाघम्बरी से नही निकली शाही सवारी

वाराणसी के रामनगर की रामलीला के पहले दिन इन्द्रदेव भी काफी खुश दिखे. बीती रात से हो रही रुक रुक कर बरसात ने एकबारगी तो लीला होने न होने की अटकलों को हवा दे दी थी. लेकिन संयोग अच्छा था कि लीला शुरू होने से आधे घण्टे पहले बरसात थम गई और लीला शुरू हो पाई. इधर परंपरागत शाही सवारी का अंदाज कुछ फीका सा रहा. कुंवर अनंत नारायण की शाही सवारी बाघम्बरी बग्घी से नही निकली. कुंवर कार से ही लीला स्थल पहुंचे. किले से वे जैसे ही बाहर निकले लोगों ने हर हर महादेव के उद्घोष से उनका अभिवादन किया. किले के मुख्यद्वार के ऊपर खड़े ताशा वादकों ने ताशा बजाकर उनके निकलने की सूचना लोगों को दी. काफिले में सबसे आगे-आगे नगाड़ा बजाता घुड़सवार उसके पीछे बनारस स्टेट का ध्वज लिए घुड़सवार चल रहा था. किले से लेकर रामलीला स्थल रामबाग तक रास्ते में खड़े लोगों ने हर हर महादेव का उद्घोष किया. रामबाग पर पहुंचकर कुंवर अनंत नारायण हाथी पर सवार हुए. यहां परम्परागत ढंग से 36 वाहिनीं पीएसी की एक सशस्त्र टुकड़ी ने उन्हें सलामी दी. इसके बाद रामयणियों ने मंगल भवन अमंगल हारी के स्वर लगाए और रामलीला का विधिवत श्रीगणेश हुआ.

रावण के न पहुंचने पर 20 मिनट देर से शुरू हुई रामलीला

वाराणसी रामलीला के पहले दिन रावण बने पात्र के समय से न पहुँच पाने के कारण लीला लगभग 20 मिनट देर से शुरू हुई। कुंवर को दी जाने वाली सलामी की प्रक्रिया शाम पांच बज कर छह मिनट तक पूरी कर ली गई थी। इसके बाद पता चला कि रावण की भूमिका निभाने वाला पात्र लीला स्थल पहुँचा ही नही था। लगभग 20 मिनट के बाद जब वे रामबाग पहुँचे तब जाकर लीला शुरू हो सकी। इस दौरान कुंवर अनंत नारायण समेत सभी लीला प्रेमियों को इंतज़ार करना पड़ा।

सूतक काल के कारण लीला से विरत है मुख्य व्यास रघुनाथ दत्त का परिवार

रामलीला के पहले दिन मुख्य स्वरूपों को पहनाए जाने वाले मुकुटों का पूजन किया गया. धोती और गंजी पहने मुख्य स्वरूपों को आसन पर बिठा कर उनके समक्ष मुकुट रख कर पूजा की गई. इसके बाद मुख्य स्वरूपों का श्रृंगार शुरू किया. दोपहर एक बजे से स्वरूपों का श्रृंगार हुआ. मुख्य व्यास की अनुपस्थिति में उनके सहयोगी रहे सम्पत राम के निर्देशन में श्रृंगार किया गया. लगभग चार घण्टे में मुख्य स्वरूपों का श्रृंगार पूरा हुआ. उसके बाद वे बग्घी से रामबाग पहुंचे. श्रृंगार में संपत राम के पुत्र और पुत्रो रमेश, शिवम, पवन आदि ने सहयोग किया. बता दें कि मुख्य व्यास रघुनाथ दत्त का बीते दिनों निधन हो जाने के कारण उनका परिवार सूतक के चलते रामलीला के कार्यों से विरत है. इसलिए उनके सहयोगी संपत राम को फिलहाल यह जिम्मेदारी सौंपी गई है.

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