क्या विधायकों, सांसदों की खरीद-फरोख्त रुकेगी?
चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने बड़ा बयान दिया है जिसपर गौर किया जाना चाहिये।
उन्होंने कहा कि आजकल हर हाल में चुनाव जीतने का चलन बढ़ गया है। रावत ने कहा कि लोकतंत्र तब फलता-फूलता है जब चुनाव पारदर्शी, निष्पक्ष और मुक्त हों। लेकिन, ऐसा लगता है कि स्वार्थी आदमी सबसे ज्यादा जोर इस बात पर देता है कि उसे हर हाल में जीत हासिल करनी है और खुद को नैतिक आग्रहों से मुक्त रखता है।
अगर उनका आशय हाल के दिनों में कई राज्यों में हुए विधायकों के दलबदल पर है तो उनकी बातों से लोग इत्तफाक रखेंगे।
बीते दिनों कांग्रेस ने गुजरात में उनके विधायकों की खरीद-फरोख्त और कथित अपहरण का मुद्दा राज्यसभा में उठाया था। कांग्रेस के मधुसूदन मिस्त्री ने कहा था कि राज्य में उनकी पार्टी के विधायकों की खरीद-फरोख्त की कोशिश की जा रही है। सदन में कांग्रेस के उप नेता आनंद शर्मा ने कहा था कि गुजरात में शासन तंत्र का दुरूपयोग किया जा रहा है। कांग्रेस विधायकों के परिवारों को डराया धमकाया जा रहा है।
इसी तरह तमिलनाडु विधानसभा में भी बीते दिनों जबरदस्त हंगामा हुआ था। विपक्षी दल द्रमुक के कई सदस्यों को उस समय सदन से बाहर निकाल दिया गया था। वे लोग मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी द्वारा विश्वासमत हासिल किए जाने से पहले अन्नाद्रमुक विधायकों की कथित खरीद-फरोख्त का मुद्दा उठाने का प्रयास कर रहे थे।
आपको ज्ञात होगा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो ने झारखंड में मार्च, 2012 में हुए राज्यसभा चुनावों में विधायकों की खरीद-फरोख्त के मामले में राज्य के चार विधायकों, उनके रिश्तेदारों और अनेक अन्य लोगों के 17 ठिकानों पर छापेमारी की थी। ये छापे दिल्ली, गुड़गांव, कोलकाता, भुवनेश्वर, रांची, दुमका, साहिबगंज और गोड्डा में कुल सत्रह ठिकानों पर मारे गये।
इन घटनाओें से पता चलता है कि चुनाव तंत्र में कितना जबरदस्त भ्रष्टाचार फैला हुआ है।
चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने इसी संदर्भ में राजनीतिक दलों पर सीधा हमला किया और कहा कि विधायकों की खरीद-फरोख्त करना, उन्हें धमकाना एक चतुर चुनावी मैनेजमेंट माना जाता है। किसी को अपनी ओर करने के लिए पैसे का लालच देना, राज्य तंत्र का उपयोग करना, ये सब चुनाव जीतने का हिस्सा बन गया है।
वे एसोसिएशन आॅफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम ‘कंसल्टेशन आॅन इलेक्टोरल एंड पोलिटिकल रिफॉर्म्स’ में बोलते हुए कहा,‘चुनाव जीतने वाले ने कोई पाप नहीं किया होता क्योंकि चुनाव जीतते ही उसके सारे पाप धुल जाते हैं राजनीति में अब ये ‘सामान्य स्वभाव’ बन चुका है। इस सबसे मुक्ति के लिए सभी राजनीतिक दलों, राजनेताओं, मीडिया और समाज के अन्य लोगों को बेहतर चुनाव के लिए योगदान देना चाहिए।’
चुनाव आयुक्त की ये बातें जनता ही नहीं राजनीतिक दलों के लिए भी एक चेतावनी समान ही है।