क्यों चर्चा में रहते हैं बागेश्वर धाम के आचार्य, 9 साल की उम्र में पलटी थी पं धीरेंद्र शास्त्री की कहानी

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बागेश्वर धाम सरकार के पंडित धीरेंद्र शास्त्री आए दिन कोई ऐसा कारनामा कर देते हैं, जिससे वह सुर्खियों में बने रहते हैं। मध्यप्रदेश में जन्में पं धीरेंद्र शास्त्री एक बार फिर चर्चा में आ गए जब, बिहार में हनुमान कथा कर रहे हैं। इस बीच मंत्री लालू के बड़े बेटे तेज प्रताब ने धीरेंद्र शास्त्री को धमकी दे डाली। मगर धमकी के बाद भी धीरेंद्र शास्त्री की कथा सभा में 10 लाख से भी ज्यादा लोगों की भीड़ इक्ट्ठा हो गई। जिससे धीरेंद्र शास्त्री ने दिव्य दरबार कैंसिल कर दिया। जिसपर काफी बवाल हुआ, तो धीरेंद्र शास्त्री ने अगले ही दिन दरबार में एक भक्त की चिट्टी पढ़ कर सभी को चौंका दिया।

बिहार में दरबार लगाते हुए पं धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री

लखनऊ : कौन है 27 वर्षीय पं धीरेंद्र शास्त्री ? जो 9 साल की उम्र में बागेश्वर धाम सरकार के आचार्य बन गए। साल 2003 से पं धीरेंद्र शास्त्री बागेश्वर धाम सरकार की सेवा कर रहे हैं। लोग धीरेंद्र शास्त्री को हनुमानजी का अवतार भी मानते हैं। जबकि, खुद धीरेंद्र शास्त्री खुद को हनुमान भक्त बताते हैं। मगर, हर कोई धीरेंद्र शास्त्री के दिव्य चमत्कारों से वाकिफ़ है, मगर ऐसा क्या हुआ जिससे धीरेंद्र शास्त्री की पूरी जिंदगी बदल गई। जिस घर में कभी खाने के लिए भी घर-घर भिक्षा मांगनी पड़ती थी, वह 9 साल का लड़का अचानक इतना बड़ा आचार्य कैसे बना ?

बागेश्वर धाम के पीठेश्वर पं धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की तस्वीरें

9 साल की उम्र में दादाजी से सीखा था कथावाचन

पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री शास्त्री जी का जन्म 4 जुलाई 1996 में छतरपुर के ही गढ़ा गांव में हुआ था। इनके पिता रामकृपाल गर्ग भी गांव में पूजा पाठ का काम करते थे। वहीं मां एक घरेलू महिला हैं। धीरेंद्र शास्त्री भी अपने पिता के साथ कथा वाचक का काम करते हैं। धीरेन्द्र शास्त्री जी ने अपने दादाजी भगवान दास गर्ग से रामकथा सीखी थी। वह अपने दादाजी को ही अपना गुरु भी मानते हैं। महज 9 साल की उम्र में ही बालक धीरेंद्र शास्त्री ने राम कथा कहना शुरू कर दिया। फिर देखते ही यह बालक कथावाचक पंडित धीरेंद्र शास्त्री बन गये। कथावाचन के दौरान अपने दरबार में धीरेंद्र शास्त्री चमत्कारों की बौछार लगा देते हैं।

बागेश्वर धाम में बालाजी की सेवा करते हुए पं धीरेंद्र शास्त्री

धीरेंद्र शास्त्री की 3-4 पीढ़ियां रह चुकी हैं पुजारी

मध्यप्रदेश राज्य में छतरपुर के पास एक जगह है गढ़ा। यहीं पर बागेश्वर धाम है। यहां बालाजी हनुमान जी का मंदिर है। बागेश्वर धाम में हनुमान जी का मंदिर वर्षों पुराना है। इस मंदिर में धीरेन्द्र शास्त्री जी की पिछली 3-4 पीढ़ियां पुजारी का काम कर चुकी हैं। इनके दादाजी भगवान दास गर्ग ने हनुमान मंदिर (बागेश्वर धाम) का पुनर्निर्माण करवाया था। हर मंगलवार को बालाजी हनुमान जी के दर्शन को भारी भीड़ उमड़ती है। धीरे-धीरे इस दरबार को लोग बागेश्वर धाम सरकार के नाम से पुकारने लगे। ये मंदिर सैकड़ों साल पुराना बताया जाता है।

माता जी के साथ पं धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री

11 साल की उम्र में बने बागेश्वर धाम के पीठाधीश

साल 2003 से अब तक बागेश्वर धाम की बागडोर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के पास है। पं. धीरेंद्र का जन्म 1996 में छतरपुर (मध्य प्रदेश) जिले के गड़ागंज गांव में हुआ था। इनका पूरा परिवार अभी भी गड़ागंज में ही रहता है। पं. धीरेंद्र शास्त्री के दादा पं. भगवान दास गर्ग भी इस मंदिर के पुजारी रहे। कहा जाता है कि पं. धीरेंद्र का बचपन काफी कठिनाई में बीता। जब वह छोटे थे तो परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि एक वक्त का ही भोजन मिल पाता था। पं. धीरेंद्र शास्त्री के पिता का नाम रामकृपाल गर्ग और मां सरोज गर्ग है। धीरेंद्र के छोटे भाई शालिग्राम गर्ग जी महाराज हैं। वह भी बालाजी बागेश्वर धाम को समर्पित हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पं. धीरेंद्र शास्त्री ने 11 साल की उम्र से ही बालाजी बागेश्वर धाम में पूजा पाठ शुरू कर दी थी। पं. धीरेंद्र शास्त्री के दादा ने चित्रकूट के निर्मोही अखाड़े से दीक्षा ली थी। इसके बाद वह गड़ागंज पहुंचे थे।

दरबार में अंधविश्वास या चमत्कार ?

बागेश्वर धाम प्रमुख पं. धीरेंद्र शास्त्री हमेशा एक छोटी गदा लेकर चलते हैं। उनका कहना है कि इससे उन्हें हनुमान जी की शक्तियां मिलती रहती हैं। वह हनुमान जी की आराधना करने के लिए लोगों को प्रेरित भी करते हैं। पं. धीरेंद्र शास्त्री कहते हैं कि वह किसी तरह का कोई चमत्कार नहीं करते हैं। वह तो सिर्फ बालाजी हनुमानजी के सामने लोगों की अर्जियां लगाते हैं। जिसे बालाजी स्वीकार कर लेते हैं। इससे आम लोगों को फायदा होता है। अंधविश्वास का विवाद सामने आने के बाद भी पं. धीरेंद्र शास्त्री ने सफाई पेश की। उन्होंने कहा कि वह अपने दरबार में किसी को बुलाते नहीं हैं। लोग खुद की मर्जी से आते हैं। वह तो सिर्फ लोगों की अर्जियों को भगवान के सामने रखते हैं। बाकी सबकुछ भगवान की तरफ से ही होता है।

 

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