‘इंडिया’ नाम रखने पर जिन्ना को क्यों थी आपत्ति ?

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इंडिया बनाम भारत आखिर क्या होना चाहिए अपने देश का नाम ? आज से कुछ समय पहले तक तो ये दोनों ही नाम हमारे देश की पहचान थे, लेकिन सियासत के ठेकेदार जो न करें वो कम है। इसी के चलते इन दिनों इंडिया बनाम भारत का मुद्दा गरमाया हुआ है। इस विवाद की शुरूआत हुई जी20 के रात्रिभोज के आमंत्रण से जब जी20 सम्मेलन के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की तरफ से अतिथियों को आमंत्रण भेजा गया तो, उस आमंत्रण पत्र में परंपरागत ‘प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया’ के बजाए ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ लिखा गया था। इस बात पर आपत्ति जताते हुए विपक्ष ने सरकार पर देश का नाम बदलने का आरोप लगाया। ऐसे इस विवाद में किसी ने भारत का सपोर्ट किया तो किसी ने इंडिया का विरोध, लेकिन अब सवाल ये था कि, सही है क्या ?

इसको लेकर जब इतिहास के पन्ने पलटे गए तो, मालूम हुआ कि, भारत से पाकिस्तान को अलग करने वाले मोहम्मद अली जिन्ना को भी ‘इंडिया’ शब्द से आपत्ति थी, उनकी मानें तो हमारे देश का नाम इंडिया के बजाए कुछ और होना चाहिए। लेकिन इसकी वजह क्या थी, आइए इसे विस्तार से समझते है।

‘इंडिया’ नाम देख जिन्ना ने लौटाया माउंटबेटन का आमंत्रण

साल 1947 में देश आजाद होने के बाद भारत से कटकर पाकिस्तान बनाया गया। ऐसे में भारत के पहले गवर्नर जनरल लुईस माउंटबेटन को चुना गया था, आजादी से पहले वायसराय हुआ करते थे। वहीं, पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बने मोहम्मद अली जिन्ना थे। रेनर ग्रोट और टिलमैन रोडर की किताब ‘कंस्टीट्यूशनलिज्म इन इस्लामिक कंट्रीजः बिटवीन अपहीवल एंड कंटीन्यूटी’ में एक किस्सा है, जिसमें जिन्ना के ‘इंडिया’ नाम का विरोध करने का जिक्र है।

इसको लेकर एक किस्सा मिलता है कि, आजादी के बाद साल 1947 में लंदन में भारतीय कला पर एक एग्जिबिशन का आयोजन किया गया था। इस एग्जिबिशन में भारत और पाकिस्तान के कलाकारों को बुलाया गया था। माउंटबेटन ने जिन्ना को भी इस एग्जिबिशन में इनवाइट किया। लेकिन जिन्ना ने इस इन्विटेशन को पहले इसलिए ठुकरा दिया, क्योंकि इस पर ‘इंडिया’ लिखा था। जिन्ना ने इन्विटेशन को ठुकराते हुए माउंटबेटन को लिखा, ‘ये अफसोस की बात है कि कुछ रहस्यमयी कारणों से हिंदुस्तान ने ‘इंडिया’ शब्द को अपनाया है। ये भ्रामक है और इसका इरादा भ्रम पैदा करना है।’

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जिन्ना ने सुझाया कि एग्जिबिशन में ‘पाकिस्तान और इंडिया की प्रदर्शनी’ की बजाय ‘पाकिस्तान और हिंदुस्तान की प्रदर्शनी’ लिखा जाए। हालांकि, माउंटबेटन को ये मंजूर नहीं था। आखिरकार जिन्ना ने इस इन्विटेशन को एक्सेप्ट कर लिया। इतना ही नहीं, इसी किताब में ये भी जिक्र है कि आजादी से पहले मुस्लिम लीग ने ‘यूनियन ऑफ इंडिया’ नाम पर आपत्ति जताई थी। हालांकि, इस बारे में बहुत ज्यादा जानकारी मौजूद नहीं है।

क्या थी इसकी वजह?

ऐसा माना जाता है कि जिन्ना और माउंटबेटन एक-दूसरे को पसंद नहीं करते थे। इतिहासकार जॉन की के मुताबिक, ‘जिन्ना को लगता था कि भारत या पाकिस्तान कोई भी ब्रिटिश टाइटल ‘इंडिया’ को नहीं अपनाएगा। पर उनकी ये गलतफहमी तब दूर हुई जब माउंटबेटन ने जवाहरलाल नेहरू की देश का नाम ‘इंडिया’ रखने की मांग को मान लिया. जब जिन्ना को ये बात पता चली तो वो बहुत नाराज हो गए थे’

हालांकि, इतिहासकारों का ये भी मानना है कि ‘इंडिया’ नाम के विरोध की वजह कुछ और भी थी। दरअसल, जिन्ना शुरू से ही अपने देश का नाम ‘पाकिस्तान’ रखना चाहते थे। जॉन की के अनुसार, जिन्ना चाहते थे बंटवारा धार्मिक आधार पर हुआ है और इस बात को और साफ करने के लिए ‘हिंदुस्तान’ नाम रखा जाए.कुछ इतिहासकार तो ये भी मानते हैं कि जिन्ना का विरोध ये दिखाता है कि वो चाहते थे कि देश के बंटवारे के बाद भारत एक कमजोर संघ बने। पाकिस्तानी-अमेरिकी मूल की इतिहासकार आयशा जलाल ने लिखा था कि जिन्ना की टिप्पणियां बताती हैं कि वो ‘यूनियन ऑफ इंडिया’ का भी विरोध करते थे।

कैसे बना था पाकिस्तान?

सीधे तौर पर देखें तो, हिन्दू और मुस्लिमों के अलग – अलग देश हो यह विचार कवि मुहम्मद इकबाल का था। साल 1930 में मुस्लिम लीग के अधिवेशन में बोलते हुए इकबाल ने कहा था कि, अगर द्विराष्ट्र सिद्धांत को स्वीकार कर लिया जाता है तो इससे भारत की सांप्रदायिक समस्या का स्थायी समाधान हो जाएगा। हालांकि, भारत के बंटवारे और मुसलमानों के लिए अलग मुल्क ‘पाकिस्तान’ बनाने का विचार पहली बार कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के छात्र चौधरी रहमत अली के मन में आया था। रहमत अली का मानना था कि ब्रिटिश भारत में जहां-जहां मुसलमानों की आबादी ज्यादा है, उसे अलग राष्ट्र बना देना चाहिए।’

इसको लेकर रहमत अली ने कहा था कि, हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र या जातियां हैं. दोनों का धर्म, संस्कृति, परंपराएं, साहित्य, कानून… सबकुछ अलग-अलग है। हिंदू और मुसलमान आपस में बैठकर खाते नहीं हैं और यहां तक कि शादी भी नहीं करते है। हमारा खाना और पहनावा भी अलग है, इसके बाद ही 23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में जिन्ना ने कहा था, ‘हिंदू और मुसलमान, जिनकी धार्मिक सोच, सामाजिक रीति-रिवाज, साहित्य और दर्शन अलग-अलग हैं।

ऐसी दो जातियों को एक राज्य में इकट्ठे बांधने से, जिसमें एक अल्पसंख्यक हो और दूसरा बहुसंख्यक, असंतोष ही बढ़ेगा और राष्ट्र नष्ट हो जाएगा।’आखिरकार, अंग्रेजों को मुस्लिम लीग की इस मांग के आगे झुकना पड़ा। जुलाई 1947 में सिरिल रेडक्लिफ को भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा रेखा खींचने का काम सौंपा गया। बंटवारे के बाद बने नए मुल्क का नाम पाकिस्तान ही रखा गया, जिसका मतलब ‘पाक जमीन’ होता है।

संविधान में है ‘इंडिया’ और ‘भारत’ का जिक्र

विभाजन के दो साल बाद संविधान सभा की फिर बैठक हुई। इस दौरान जब संविधान सभा में संविधान के मसौदे पर बहस हुई तो कई लोगों ने देश का नाम हिन्दुस्तान किए जाने पर भी जोर दिया, मगर इससे माना नहीं गया। जब संविधान तैयार हुआ तो इसमें दो शब्द अंग्रेजी में ‘इंडिया’ और हिंदी में ‘भारत’ का इस्तेमाल किया गया है। इन दोनों नामों का जिक्र संविधान के अनुच्छेद एक में हैं, जिसका अभी तक संशोधन नहीं किया गया है।

क्या इंडिया अब भारत हो जाएगा?

आज से पहले साल 2020 में भी इंडिया को भारत में बदलने की मांग उठाई गयी थी। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाख़िल की गई थी, याचिकाकर्ता ने कोर्ट से कहा था कि, ‘इंडिया’ नाम ग्रीक भाषा के ‘इंडिक’ शब्द से बना है। इस नाम को संविधान से हटाया जाना चाहिए याचिकाकर्ता ने अदालत से यह भी अनुरोध किया था कि अदालत सरकार को आदेश दे कि संविधान के अनुच्छेद एक में संशोधन करके ‘इंडिया’ का नाम बदलकर सिर्फ़ भारत रखा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को ख़ारिज करते हुए इस मामले में दख़ल देने से इनकार करते हुए कहा था कि, संविधान में पहले से ही भारत नाम दर्ज है। संविधान में लिखा है “इंडिया दैट इज़ भारत” (यानी इंडिया जो भारत है)।

आज कल इंडिया में एक बार फिर ये बहस ज़ोरों से चल रही है। इसकी शुरुआत उस समय हुई, जब भारत में जी20 शिखर सम्मेलन के मौक़े पर भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की ओर से भेजे गए रात्रिभोज के निमंत्रण पर ‘प्रेज़िडेंट ऑफ़ इंडिया’ की जगह ‘प्रेज़िडेंट ऑफ़ भारत’ लिखा गया। फ़िलहाल, नाम के मुद्दे पर यह विवाद इंडिया में राजनीतिक तनाव पैदा करने की वजह बन रहा है। अभी यह देखा जाना बाक़ी है कि इस बार यह ऊंट किस करवट बैठेगा।

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