क्यों मनाते हैं सूर्य षष्ठी (लोलार्क छठ), बनारस में लोलार्क कुण्ड की क्या है त्याग प्रथा

काशी में भदैनी स्थित लोलार्क कुण्ड में स्नान करके लोलार्केश्वर महादेव का विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है.

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हिन्दू धर्म में अपनी परम्परा के अनुसार पूर्ण श्रद्धा व भक्तिभाव से मनाने का पर्व है. सूर्यषष्ठी (लोलार्क छठ) भाद्रपद शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान सूर्यदेव का व्रत उपवास रखकर उनको पूजा-आराधना करते हैं. हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में हरितालिका तीज, श्रीगणेश चतुर्थी एवं ऋषि पंचमी के बाद सूर्यषष्ठी (लोलार्क छठ) का विशिष्ट पर्व मनाया जाता है.

भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व

सूर्यषष्ठी पर्व पर भगवान सूर्य की कृपा प्राप्ति के लिए भक्तजन अपनी- अपनी परम्परा के अनुसार भगवान सूर्यदेव की आराधना करते हैं. भाद्रपद शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि 8 सितम्बर, रविवार की सायं 7 बजकर 59 मिनट पर लगी जो कि अगले दिन य 9 सितम्बर सोमवार यानी आज की रात 9 बजकर 54 मिनट तक रहेगी.

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विशाखा नक्षत्र 8 सितम्बर, रविवार को दिन में 3 बजकर 31 मिनट से 9 सितम्बर, सोमवार की सायं 6 बजकर 04 मिनट तक रहेगा. 9 सितम्बर, सोमवार को सूर्य षष्ठी यानि लोलार्क छठ का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन भगवान सूर्य की विधि-विधान से की गई पूजा शीघ्र पुण्य फलदायी होती है.

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पूजा- पाठ करते समय, इन बातों का ध्यान

व्रत करने वालों को सुबह फ्रेश होकर, साफ कपड़े पहनने चाहिए. इसके बाद अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए, फिर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर श्री गणेशजी का ध्यान करते हुए सूर्यषष्ठी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए.

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साथ ही व्रत के दिन सूर्य भगवान से सम्बन्धित सूर्यमन्त्र का जप, श्रीआदित्यहृदय स्तोत्र, आदित्यकवच, श्रीसूर्यसहस्रनाम आदि का पाठ करना चाहिए. इस व्रत से सूर्यग्रह की अनुकूलता मिलती है. निःसन्तान को सन्तान की प्राप्ति होती है, इसके साथ ही त्वचा सम्बन्धी विकारों या रोगों से मुक्ति भी मिलती है.

काशी में लोलार्क छठ का महत्व

काशी में सूर्यषष्ठी को लोलार्क छठ के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन काशी में भदैनी स्थित लोलार्क कुण्ड में स्नान करके लोलार्केश्वर महादेव का विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है. इस दिन निःसन्तान दम्पति सन्तान प्राप्ति के निमित्त धार्मिक नियमानुसार विधि- कुण्ड में स्नान करते हैं.

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अनुष्ठान के विधानपूर्वक संकल्प लेकर लोलार्क अन्तर्गत किसी एक प्रिय वस्तु का त्याग करने का संकल्प लिया जाता है. जिस वस्तु विशेष का त्याग किया जाता है, उसे लोलार्क कुण्ड में छोड़ दिया जाता है. त्याग की हुई वस्तु को मनोकामना पूरा होने के बाद ही धारण किया जाता है या फिर उस वस्तु का आजीवन त्याग कर देते हैं.

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लोलार्क कुण्ड में स्नान करने के पश्चात् धारण किए हुए वस्त्रों को भी कुण्ड पर ही छोड़ दिया जाता है. इसके बाद नए कपड़े पहनकर ही भगवान सूर्यदेव की आराधना की जाती है. व्रतकर्ता को जीवनचर्या में पूर्ण स्वच्छता व सुचिता का पूरा ध्यान रखते हुए भगवान सूर्यदेव के आशीर्वाद से सुख-समृद्धि और खुशहाली मिलती है. इसके साथ ही लोलार्क षष्ठी के दिन इस कुंड में डुबकी लगाने से लोलार्केश्वर महादेव भक्तों की हर मनोकामना को पूरी करते हैं.

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