अमीर क्यों नहीं बन रहे भारत के मिडिल क्लास, ये है असली वजह!

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक बार कहा था कि वह भी मिडिल क्लास हैं. आप सोचते हैं कि आप भी मध्यमवर्गीय हैं. चाहे अंबानी हों या टिम कुक, उनका फोकस भी मिडिल क्लास पर है. लेकिन ये मध्यम वर्ग मध्यम से ऊपर की ओर क्यों नहीं जा पाता. ऐसा नहीं है कि जो मध्यम वर्ग पहले साइकिल से चलता था, वह अब बाइक से नहीं चलता, लेकिन फिर भी उसे कार खरीदने के लिए 10 बार सोचना पड़ता है. आखिर इसकी वजह क्या है आइए जानने की कोशिश करते हैं.

सेंटर फॉर एडवांस्ड स्टडी ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 50 फीसदी भारतीय मानते हैं कि वे मध्यम वर्ग के हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 80 प्रतिशत लोग एक महीने में 5000 से 25000 तक खर्च करते हैं. तो क्या देश की इतनी बड़ी संख्या मध्यम वर्ग में आती है, नहीं ऐसा नहीं है. हम आपको बताते हैं कि असली मध्यम वर्ग कौन है और वह आगे क्यों नहीं बढ़ पा रहा है.

देश में मिडिल क्लास में कितने लोग हैं…

प्यू रिसर्च सेंटर के अध्ययन के मुताबिक, 25 से 50 हजार रुपये महीने कमाने वाले लोग ही असली मध्यम वर्ग हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक इस सीमा में सिर्फ 3 फीसदी लोग ही हैं. जो भारत की कुल जनसंख्या के हिसाब से 4 करोड़ के करीब हैं. जबकि देश की 95 प्रतिशत आबादी निम्न मध्यम वर्ग की श्रेणी में आती है. दूसरी ओर, उच्च वर्ग में केवल 2 प्रतिशत लोग ही शासन करते हैं.

टैक्स देने में बिचौलिए सबसे आगे हैं…

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष में 17 जून 2023 तक देश का नेट डायरेक्टर टैक्स कलेक्शन 11.18 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 3.80 लाख करोड़ रुपये रहा. इन आंकड़ों के मुताबिक, देश का डायरेक्टर टैक्स कलेक्शन रिकॉर्ड स्तर पर रहा. यानी सरकारी खजाने में खूब पैसा बरसा. वही प्यू रिसर्च सेंटर के अध्ययन के अनुसार, देश के 95% लोग निम्न मध्यम वर्ग में आते हैं। मतलब इनका टैक्स से कोई लेना-देना नहीं है. फिर यहां भी ये 4 करोड़ आबादी टैक्स देने में अव्वल है. टैक्स का सबसे ज्यादा बोझ भी मध्यम वर्ग पर है. बाकी अमीर लोग जितना कमाते हैं उतना कागज पर नहीं दिखाते और मध्यम वर्ग को नुकसान होता है.

ये मध्यम वर्ग अमीर क्यों नहीं हो पा रहा है…

एप्पल के सीईओ टिम कुक से लेकर मुकेश अंबानी तक अपना सामान बेचने के लिए इसी मध्यम वर्ग को निशाना बनाते हैं. हर किसी का ध्यान इन 4 करोड़ लोगों पर ही है, लेकिन फिर भी ये 4 करोड़ लोग अमीर क्यों नहीं बन पाते हैं। आइए इसे एक उदाहरण से समझते हैं. आईटी इंडस्ट्री की बात करें तो 10 साल पहले एक फ्रेशर की सैलरी आमतौर पर 25,000 रुपये होती थी. अब दस साल बाद भी ये सैलरी 5000 रुपए तक बढ़ी है. वहीं, महंगाई के हिसाब से एक आम घर की जरूरत का सामान जो पहले 25 हजार रुपये के आसपास होता था, वह 10 साल बाद अब 45 हजार रुपये का हो गया है। यानी आय 5000 रुपये बढ़ी लेकिन खर्च 20,000 रुपये बढ़ गया.

ये मध्यम वर्ग कब अमीर बन पाएगा…

मुद्रास्फीति की गणना के अनुसार, 45000 का यह वर्तमान खर्च 10 वर्षों के बाद बढ़कर 80000 हो जाता है. जबकि आय 30 से 36000 रुपये तक बढ़ जाती है. अगर आय और व्यय का यह अनुपात इसी दर से बढ़ता गया तो 10 साल बाद भी 3% लोगों के लिए उन 2% लोगों तक पहुंचना मुश्किल होगा. घर के खर्चों के बाद मध्यम वर्ग की दूसरी सबसे बड़ी समस्या शिक्षा का खर्च है. आइये इसका गणित भी समझ लेते हैं. आज एक अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में ट्यूशन फीस लगभग 50 लाख रुपये है. एक मध्यमवर्गीय व्यक्ति अपने बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए 50 लाख की रकम जमा करता है. लेकिन अगर महंगाई की गणना को समायोजित किया जाए तो दस साल बाद यही फीस 1.5 करोड़ रुपये हो जाएगी. ऐसे में एक मध्यम वर्ग को उस रकम तक पहुंचने के लिए फिर से संघर्ष करना होगा.

स्वास्थ्य भी महत्वपूर्ण है…

घर का खर्च, बच्चों की पढ़ाई के बाद अब बारी आती है स्वास्थय पर खर्चों की. यहां भी मिडिल क्लास पिसता दिखाई देता है. खासकर कोरोना ने मिडिल क्लास को सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई. मिडिल क्लास बस रेट रेस का हिस्सा बनकर रह जाता है. वजह है बढ़ती महंगाई के मुकाबले इनकम का न बढ़ना. प्राइवेट हॉस्पिटल इनकी पहुंच से बाहर होते जा रहे हैं. सरकारी में ये जाना चाहते नहीं. लिहाजा इनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा हॉस्पिटल को चला जाता है.

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