जानें कौन थीं भोपाल की आखिरी हिंदू महारानी कमलापति, जिनके नाम पर होगा हबीबगंज रेलवे स्टेशन ?

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित देश के पहले वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन हबीबगंज का नाम रानी कमलापति के नाम से जाना जाएगा। मध्य प्रदेश जनसंपर्क के मुताबिक, हबीबगंज रेलवे स्टेशन का निर्माण 1905 में किया गया था।

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मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित देश के पहले वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन हबीबगंज का नाम रानी कमलापति के नाम से जाना जाएगा। मध्य प्रदेश जनसंपर्क के मुताबिक, हबीबगंज रेलवे स्टेशन का निर्माण 1905 में किया गया था। उस वक्त इस स्टेशन का नाम शाहपुर हुआ करता था। वर्ष 1979 में इसका नाम बदलकर हबीबगंज कर दिया गया। अब करीब 42 साल बाद फिर से हबीबगंज से नाम बदलकर रानी कमलापति स्टेशन कर दिया गया है। ऐसे में आइए जानते हैं आखिर रानी कमलापति कौन थीं

रानी कमलापति:

इतिहास के पन्नों को पलटने से ज्ञात होता है कि 1600 से सन् 1715 तक गिन्नौरगढ़ किले पर गोंड राजाओं का आधिपत्य् रहा तथा भोपाल पर भी उन्हीं का शासन था। गोंड राजा निज़ाम शाह की सात पत्नियाँ थीं, जिनमें कमलापति सबसे सुंदर थीं। उनकी इच्छा से तालाब के तट पर एक महल का निर्माण किया गया, जो सन् 1702 में पूर्ण हुआ, जिसे आज रानी कमलापति महल के नाम से जाना जाता है। आज इसके अवशेष छोटे और बड़े तालाब के पार्क में देखे जाते हैं। ईसवी सन् 1989 से भारतीय पुरातत्व विभाग ने इस महल को अपने संरक्षण में ले लिया। इसमें एक छोटी चित्र प्रदर्शनी भी है।

सन् 1715 में अंतिम गौंड राजा नरसिंह देवड़ा रहे:

गोंड समुदाय का राजवंश गिन्नौरगढ़ से बाड़ी तक फैला हुआ था। उनका साम्राज्य गढ़ा कटंगा (मंडला) 52 गढ़ के आधिपत्य में था। रायसेन किला ईस्वी सन् 1362 से 1419 तक 57 वर्ष राजा रायसिंह के आधिपत्य में था। यह किला इनके द्वारा बनवाया गया था। ईस्वी 14वीं में जगदीशपुर (इस्लाम नगर) में गोंड राजाओं का आधिपत्य रहा। इस महल को भी गोंड राजाओं के द्वारा बनवाया गया था। सन् 1715 में अंतिम गौंड राजा नरसिंह देवड़ा रहे। भोपाल शाही ईस्वी 476 से 533 लगभग 60 वर्षों तक इनका शासन रहा। गोंड समाज के प्रथम धर्मगुरू पारी कुपार लिंगो बाबा ने पाँच देव सगा समाज वाले के लिये बैरागढ़ का स्थान निश्चित किया था। तभी से गोंडवाना समाज के लोग बैरागढ़ से हजारों किलोमीटर की दूरी पर निवास करने के बावजूद भी बैरागढ़ में बड़ा देव की पूजा-अर्चना करने आते हैं। यह गोंडों का सबसे बड़ा देव-स्थल है।

राजकुमारी कमलापति बचपन से ही कमल की तरह बहुत सुंदर थी:

बाड़ी जिला रायसेन का अंतिम शासक चैन सिंह 16वी ईस्वीं में रहा। ईसवी 16वी सदी में सलकनपुर जिला सीहोर रियासत के राजा कृपाल सिंह सरौतिया थे। उनके शासन काल में वहाँ की प्रजा बहुत खुश और समपन्न थी। उनके यहाँ एक खूबसूरत कन्या का जन्म हुआ। वह बचपन से ही कमल की तरह बहुत सुंदर थी। उसकी सुंदरता को देखते हुए उसका नाम कमलापति रखा गया। वह बचपन से ही बहुत बुद्धिमान और साहसी थी और शिक्षा, घुड़सवारी, मल्लयुद्ध, तीर-कमान चलाने में उसे महारत हासिल थी। वह अनेक कलाओं में पारंगत होकर कुशल प्रशिक्षण प्राप्त कर सेनापति बनी। वह अपने पिता के सैन्य बल के साथ और अपने महिला साथी दल के साथ युद्धों में शत्रुओं से लोहा लेती थी। पड़ोसी राज्य अकसर खेत, खलिहान, धन-सम्पत्ति लूटने के लिए आक्रमण किया करते थे और सलकनपुर राज्य की देख-रेख करने की पूरी जिम्मेदारी राजा कृपाल सिंह सरौतिया और उनकी बेटी राजकुमारी कमलापति की थी, जो आक्रमणकारियों से लोहा लेकर अपने राज्य की रक्षा करती रही।

रानी कमलापति का विवाह:

राजकुमारी धीरे-धीरे बड़ी होने लगी और उसकी खूबसूरती की चर्चा चारों दिशाओं में होने लगी। इसी सलकनपुर राज्य में बाड़ी किले के जमींदार का लड़का चैन सिंह जो राजा कृपाल सिंह सरौतिया का भांजा लगता था, वह राजकुमारी कमलापति से विवाह करने की इच्छा रखता था। लेकिन उस छोटे से गाँव के जमीदार से राजकुमारी कमलापति ने शादी करने से मना कर दिया। 16वीं सदी में भोपाल से 55 किलो मी. दूर 750 गाँवों को मिलाकर गिन्नौरगढ़ राज्य बनाया गया, जो देहलावाड़ी के पास आता है। इसके राजा सुराज सिंह शाह (सलाम) थे। इनके पुत्र निजामशाह थे, जो बहुत बहादुर, निडर तथा हर कार्य-क्षेत्र में निपुण थे। उन्हीं से रानी कमलापति का विवाह हुआ।

राजा निजामशाह को भोजन में जहर देकर धोखे से कर दी हत्या:

राजा निजाम शाह ने रानी कमलापति के प्रेम स्वरूप ईस्वी 1700 में भोपाल में सात मंजिला महल का निर्माण करवाया, जो लखौरी ईंट और मिट्टी से बनवाया गया था। यह सात मंजिला महल अपनी भव्यता, सुंदरता और खूबसूरती से लिए प्रसिद्ध था। रानी कमलापति का वैवाहिक जीवन काफी खुशहाल व्यतीत हो रहा था। वह अपना वैवाहिक जीवन हँसी-खुशी के साथ राजा निजामशाह के साथ व्यतीत कर रही थी। उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम नवल शाह था। बाड़ी किले के जमींदार का लड़का चैन सिंह राजा निजामशाह का भतीजा था। वह राजकुमारी कमलापति की शादी होने के बावजूद भी अभी उससे विवाह करने की इच्छा रखता था। उसने अनेक बार राजा निजामशाह को मारने की कोशिश की, जिसमें वह असफल रहा। एक दिन प्रेम पूर्वक उसने राजा निजामशाह को भोजन पर आमंत्रित किया और भोजन में जहर देकर उनकी धोखे से हत्या कर दी।

गिन्नौरगढ़ के किले पर हमला:

राजा निजामशाह की मौत की खबर से पूरे गिन्नौरगढ़ में खलबली हो गई। चैनसिंह ने रानी कमलापति को अकेले जानकर उन्हें पाने की नीयत से गिन्नौरगढ़ के किले पर हमला कर दिया। रानी कमलापति ने उस समय अपने कुछ वफादारों और 12 वर्षीय बेटे नवलशाह के साथ भोपाल में बने इस महल में छुप जाने का निर्णय लिया, जो उस समय सुरक्षा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण था। कुछ दिन भोपाल में समय बिताने के बाद रानी कमलापति को पता चला कि भोपाल की सीमा के पास कुछ अफगानी आकर रूके हुए हैं, जिन्होंने जगदीशपुर (इस्लाम नगर) पर आक्रमण कर उसे अपने कब्जे में ले लिया था। इन अफगानों का सरदार दोस्त मोहम्मद खान था, जो पैसा लेकर किसी की तरफ से भी युद्ध लड़ता था। लोक मान्यता है कि रानी कमलापति ने दोस्त मोहम्मद को एक लाख मुहरें देकर चैनसिंह पर हमला करने को कहा।

दोस्त मोहम्मद खान का नापाक इरादा:

दोस्त मोहम्मद ने गिन्नौरगढ़ के किले पर हमला कर दिया जिसमें चैनसिंह मारा गया और किले को हड़प लिया गया। रानी कमलापति को अपने छोटे बेटे की परवरिश की चिंता थी इसीलिए उन्होंने दोस्त मोहम्मद के इस कदम पर कोई आपत्ति नहीं जताई। दोस्त मोहम्मद अब सम्पूर्ण भोपाल की रियासत पर कब्जा करना चाहता था। उसने रानी कमलापति को अपने हरम (धर्म) में शामिल होने और शादी करने का प्रस्ताव रखा। वह वास्तव में रानी को अपने हरम में रखना चाहता था। दोस्त मोहम्मद खान के इस नापाक इरादे को देखते हुए रानी कमलापति का 14 वर्षीय बेटा नवल शाह अपने 100 लड़ाकों के साथ लाल घाटी में युद्ध करने चला गया। इस घमासान युद्ध में दोस्त मोहम्मद खान ने नवल शाह को मार दिया। इस स्थान पर इतना खून बहा कि यहाँ की जमीन लाल हो गई और इसी कारण इसे लाल घाटी कहा जाने लगा। इस युद्ध में रानी कमलापति के 2 लड़के बच गये थे, जो किसी तरह अपनी जान बचाते हुए मनुआभान की पहाड़ी पर पहुँच गये। उन्होंने वहाँ से रानी कमलापति को काला धुंआ कर संकेत किया कि ‘हम युद्ध हार गये हैं और आपकी जान को खतरा है।’

जल-समाधि:

रानी कमलापति ने विषम परिस्थति को देखते हुए अपनी इज्जत को बचाने के लिए बड़े तालाब बाँध का सँकरा रास्ता खुलवाया जिससे बड़े तालाब का पानी रिसकर दूसरी तरफ आने लगा। इसे आज छोटा तालाब के रूप में जाना जाता हैं। इसमें रानी कमलापति ने महल की समस्त धन-दौलत, जेवरात, आभूषण डालकर स्वयं जल-समाधि ले ली। दोस्त मोहम्मद खान जब तक अपनी सेना को साथ लेकर लाल घाटी से इस किले तक पहुँचा उतनी देर में सब कुछ खत्म हो गया था। दोस्त मोहम्मद खान को न रानी कमलापति मिली और न ही धन-दौलत। जीते जी उन्होंने भोपाल पर परधर्मी को नहीं बैठने दिया। स्रोतों के अनुसार रानी कमलापति ने सन् 1723 में अपनी जीवन-लीला खत्म की थी। उनकी मृत्यु के बाद दोस्त मोहम्मद खान के साथ ही नवाबों का दौर शुरू हुआ और भोपाल में नवाबों का राज्य हुआ।

अदम्य साहस के साथ अपनी अस्मिता, धर्म और संस्कृति को बचाया:

नारी अस्मिता और अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए रानी कमलापति ने जल-समाधि लेकर इतिहास में अमिट स्थान बनाया है। उनका यह कदम उसी जौहर परंपरा का पालन था, जिसमें हमारी नारी शक्ति ने अदम्य साहस के साथ अपनी अस्मिता, धर्म और संस्कृति को बचाया है। उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए रानी कमलापति ने भी जीवित रहते अपनी नारी गरिमा को विधर्मियों से बचा लिया और पीढ़ियों के लिए यह प्रेरणा प्रदान की कि अपने धर्म की रक्षा के लिए किसी को भी बलिदान देने से पीछे नहीं हटना चाहिए।

[लेख साभार: मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (M.P.) का ब्लॉग]

 

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