राम काज किन्हें बिना मोहि कहाँ विश्राम! – शंभूनाथ शुक्ल

स्तक ‘राम फिर लौटे’ ने एक बार फिर झकझोर दिया है

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अयोध्या घटनाक्रम पर हेमंत शर्मा की पुस्तकों की कड़ी में तीसरी किताब आई है, ‘राम फिर लौटे’. इसके पहले ‘अयोध्या का चश्मदीद’ और ‘युद्ध में अयोध्या’ आ चुकी हैं. अयोध्या कांड पर सबसे प्रामाणिक जानकारी हेमंत शर्मा देते हैं, क्योंकि 6 दिसंबर 1992 को वे बाबरी मस्जिद परिसर में थे.वे ठीक उसी स्थान पर थे, जहां राम लला सीकचों में क़ैद थे. जब बाबरी मस्जिद ढहाई गई थी, तब मुझे अफ़सोस हुआ था, कि एक ऐतिहासिक मस्जिद को ढहाना उचित कैसे हो गया! यदि मान भी लिया जाए कि मस्जिद के पहले वहाँ राम जन्म स्थान मंदिर था, तो भी एक भूल को दूसरी भूल से धोया नहीं जा सकता. मेरे इस भ्रम की वज़ह शायद यह भी रहा होगा, कि मैंने आम जन-मानस को ठीक से समझा नहीं. यह मेरी भूल थी. मुझे याद है कि 1991-92 में कानपुर के मशहूर मार्क्सवादी नेता कामरेड सुदर्शन चक्र अचानक से राम भक्त हो चले थे. मैंने उनसे पूछा, यह क्या कर रहे हो आप? तब उनका जवाब था, कि देखो भाई शंभू जब राम और बाबर के बीच तुलना करनी हो तो हम राम के साथ खड़े होंगे. राम हमारे पुरखे हैं, हमारी परंपरा हैं, हमारे रोम-रोम में समाये हैं. उनका जवाब सुन कर मैं हिल गया था.

राम मंदिर निर्माण की गौरवपूर्ण यात्रा को रेखांकित करती पुस्तक 'राम फिर लौटे'  का लोकार्पण | New Book Of Senior Journalist Hemant Sharma Ram Phir Laute  Released In Delhi On 9 Th

हेमंत शर्मा की अयोध्या कड़ी की तीसरी पुस्तक ‘राम फिर लौटे’ ने एक बार फिर झकझोर दिया है. इस पुस्तक में हेमंत ने जिस तरह से 1528 ईस्वी से आज तक की डेट लाइन प्रस्तुत की है, वह उनकी खोजी और शोधपरक दृष्टि का कमाल है. इस डेटलाइन को पढ़ कर उन सब लोगों को वास्तविकता से रू-ब-रू होना पड़ेगा, जो सोचते हैं कि बाबरी मस्जिद विवाद अंग्रेजों का खड़ा हुआ है. कुछ लोगों का कहना है, कि विश्व हिंदू परिषद ने इस विवाद को उत्पन्न किया लेकिन हेमंत ने लिखा है कि 1530 से 1556 के बीच यहाँ दस बार मंदिर-मस्जिद को लेकर युद्ध हुए.इसी बीच स्वामी महेशानंद साधू-संन्यासियों की सेना लेकर लड़े तो रानी जयराज कुमारी ने स्त्री सेना के साथ युद्ध किया. अकबर के समय अर्थात् 1556 से 1605 के बीच बीस बार यहाँ युद्ध मंदिर-मस्जिद के नाम पर हुए. स्वामी बलरामाचार्य तो मंदिर के लिए वीरगति को प्राप्त हुए. तब राजा टोडरमल और बीरबल की राय से मस्जिद के सामने एक चबूतरा बनाया गया. यह हिदायत भी दी गई कि कोई भी इस चबूतरे पर हिंदुओं द्वारा की जा रही पूजा में रुकावट न डाले. औरंगज़ेब के समय यहाँ 30 बार लड़ाइयाँ हुईं.दशमेश ग़ुरु गोविंद सिंह, बाबा वैष्णव दास, कुंवर गोपाल सिंह, ठाकुर जगदंबा सिंह ने मुग़लों से लोहा लिया. इसके बाद का क़िस्सा तो सब को पता है. इसलिए जो लोग राम जन्म स्थान मंदिर तोड़ने की बात महज़ एक कल्पना मानते थे, उनके लिए यह डेट लाइन आँखें खोलने वाली है.

इस पुस्तक में सबूतों के साथ ही उन सारे मुक़दमों का इतिहास है, कारनेगी के शोध का उदाहरण है. उसने लिखा था, कि यह बात बिल्कुल स्पष्ट है, कि ‘मुसलमानों की विजय के वक्त अयोध्या में तीन महत्त्वपूर्ण मंदिर थे. जन्म स्थान मंदिर, स्वर्गद्वार मंदिर और त्रेता का ठाकुर मंदिर खूब प्रसिद्ध थे. पहले पर बाबर ने मस्जिद बनवा दी, उस पर उसका नाम अभी तक ख़ुदा हुआ है. दूसरे पर औरंगज़ेब ने और तीसरे पर उसके परवर्ती ने.’ हेमंत शर्मा ने प्रसिद्ध चीनी यात्री फाहियान के हवाले से लिखा है, कि फाहियान के यात्रा वर्णन में अयोध्या में पाँच जैन तीर्थंकरों का वर्णन मिलता है. जैन मत के 24 में से 22 तीर्थंकर इक्ष्वाकुवंशी थे। इस वंश की राजधानी अयोध्या थी. लेकिन अयोध्या में कभी जैन, बौद्ध या हिंदू मंदिरों के आपसी संघर्ष के प्रमाण नहीं मिलते जबकि गौतम बुद्ध यहाँ कई वर्षों तक रहे. बौद्ध ग्रंथ ‘साकेत’ में भगवान बुद्ध द्वारा यहाँ तपस्या किए जाने का उल्लेख है लेकिन अयोध्या नगरी को हिंदू नगरी मांटोगुमरी मार्टिन ने कहा. मार्टिन यहीं नहीं रुका बल्कि पड़ोस के फ़ैज़ाबाद को उसने मुस्लिम नगरी लिखा है. हेमंत बताते हैं कि फ़ैज़ाबाद के कमिश्नर पैट्रिक कारनेगी ने इसी थ्योरी को आगे बढ़ाया. कारनेगी ने मस्जिद-मंदिर की थ्योरी को आगे रखा.

अयोध्या हिंदुओं में पूज्य है. आज भी हमारे यहाँ कहा जाता है- “काशी बड़ी न मथुरा न तीरथराज प्रयाग. सबसे बड़ी अजुध्या, जहां राम लीन अवतार.” और यह कोई अंग्रेजों ने या विश्व हिंदू परिषद ने नहीं बताया बल्कि हमारे लोक मानस में यह प्रतिष्ठित है. 1608 से 1611 के बीच एक ब्रिटिश यात्री विलियम फ़्रिच भारत आया था. वह यहाँ व्यापार की संभावना तलाश करने आया था. अयोध्या पहुँच कर यहाँ के बारे में उसने लिखा है, कि “भगवान राम से जुड़े भव्य भवन के अब सिर्फ़ अवशेष बचे हैं. इस बिल्डिंग के जो टूटे-फूटे अवशेष रह गए हैं, उन पर अभी भी हिंदू पुजारी श्रीराम की पूजा करते हैं और देश भर से हिंदू यहाँ आ कर दर्शन करते हैं. इसे रामकोट कहा जाता है.”
जो लोग कहते हैं, कि आख़िर राम भक्त कवि तुलसी ने राम जन्म स्थान विध्वंस पर कुछ क्यों नहीं लिखा, इसके जवाब में हेमंत शर्मा ने स्वामी रामभद्राचार्य के हवाले से दोहाशतक का एक वर्णन पेश किया है-

“बाबर बर्बर आइके, कर लिन्हे करवाल।
हने पचारि पचारि जनल, तुलसी काल कराल।।
संबत सर वसु बान भर नभ ग्रीष्म ऋतु अनुमानि।
तुलसी अवधहिं जड़ भवन, अनरथ किये अनखानि।।
राम जन्म मंदिर महिं मंदिरहिं, तोरि मसीत बनाय।
जबहिं बहु हिंदुन हते, तुलसी किन्ही हाय।।
दल्यो मीर बाक़ी अवध, मंदिर राम समाज।।
तुलसी रोवत हृदय अति, त्राहि-त्राहि रघुराज।।

हेमंत ने अपनी इस पुस्तक में बहुत सारे तथ्य रखे हैं. सबसे बड़ा प्रमाण तो बाबरी मस्जिद का वह शिलालेख था, जिसमें बाबर के आदेश पर यहाँ मस्जिद बनाने का उल्लेख मिलता है. इसके अतिरिक्त कई ऐसे सबूतों का ज़िक्र है, जो इस पुस्तक को प्रामाणिक और मंदिर-मस्जिद विवाद की पूरी टाइम लाइन बताते हैं. मौजूदा दौर में अयोध्या विवाद में पहला आपराधिक मुक़दमा एक निहंग सिख फ़क़ीर सिंह खालसा पर दर्ज हुआ. 28 नवंबर 1858 को इस निहंग ने इस इमारत पर क़ब्ज़ा कर लिया और निशान साहब स्थापित किया. यज्ञवेदी बनाई और पूजा पाठ किया. महीनों तक वहाँ भजन-कीर्तन चला.इमारत के बाहर भीतर राम-राम लिखा. इस तरह ब्रिटिश भारत में राम जन्मस्थान को मुक्त कराने की पहली लड़ाई एक सिख ने लड़ी थी.यही नहीं पुरातत्त्वविद् केके मोहम्मद ने 1976-77 के दौरान यहाँ स्कूल ऑफ़ आर्कियोलॉजी के छात्र के नाते खुदाई में हिस्सा लिया था. इस खुदाई में उन्हें प्राचीन मंदिर के 12 ऐसे खम्बे मिले, जिन पर बाबरी मस्जिद का ढाँचा खड़ा था. उन्होंने सप्रमाण कहा, कि बाबरी मस्जिद एक प्राचीन हिंदू मंदिर के मलबे पर खड़ी है. हेमंत ने ‘राम फिर लौटे’ में उन सभी लोगों का उल्लेख किया है, जिनके बूते आज वहाँ मंदिर बना. इन लोगों में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव का नाम भी है. आने वाली 22 जनवरी को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की यहाँ प्राण प्रतिष्ठा होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और आरएसएस की मौजूदगी में यह 500 वर्षों का सतत संघर्ष पूरा होगा. इस पूरे संघर्ष की गाथा को हेमंत शर्मा ने इस पुस्तक में प्रस्तुत किया है.

राम भारतीय संस्कृति और भारतीयता का अनूठा उदाहरण हैं. विश्व में कोई भी देश राम कथा के लुभावने रूप से बचा नहीं. यहाँ तक कि इक़बाल ने भी लिखा है- “है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़” शेष भारत के सभी धर्मों में राम और उनकी अयोध्या दोनों के गुण गाये गये हैं.
हेमंत शर्मा की यह पुस्तक आज के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ी के लिए भी दस्तावेज है. हेमंत ने मात्र 90 दिनों में यह पूरा इतिहास खंगाल डाला. वेद-वेदांग और पुराण पढ़े तब यह किताब अस्तित्त्व में आई. हेमंत बताते हैं, कि पुस्तक उनसे किसी अदृश्य शक्ति ने लिखाई. वे तो बस गणेश जी की तरह लिखते रहे. पर मुझे लगता है कि हेमंत राम कथा में यूँ डूबे जैसे कवि श्याम नारायण पांडेय ने हनुमत स्तुति में लिखा है

“बाहर-भीतर राम-राम ही, राम लीन कपि पुलक-पुलक ,लगे विनय करने कर जोड़े जय रघुनायक, जन सुखदायक, विश्व विधायक
जय जय जय।।”

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