कौन हैं वह भैरव जिनसे बनारस में रहने के लिए लेनी पड़ती हैं इजाजत?

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कहते हैं जो भय से मुक्ति दिलाए वो हैं काल भैरव..जिनके सिर पर भैरव का आशीर्वाद हो उसका स्वयं काल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता. शिव के स्वरूप कहे जाने वाले काल भैरव की उत्पत्ति शिव के कारण ही हुई थी. उनके रौद्र रूप से काल भैरव उत्पन्न हुए. लेकिन क्या आप इनसे जुड़ी एक विशेष बात जानते हैं. वो ये कि अगर आपको काशी में रहना है तो काल भैरव की इजाज़त लेना बहुत ही जरुरी माना जाता है. उनकी इच्छा के बाद ही कोई काशी में निवास कर सकता है. जी हां ये बात बिल्कुल सही है. इन भगवान को काशी का कोतवाल तक कहा जाता है. जो सदियों से काशी यानि वाराणसी की रक्षा कर रहे हैं. कहते हैं कि काशी में रहने से पहले इनकी इजाजत लेनी पड़ती है और उनसे आज्ञा मिलने के बाद ही काशी में रहा जा सकता है.

क्या हैं मान्यता

 

इस पवित्र स्थल की मान्यता अत्यधिक है. इसे भगवान काल भैरव के प्रति श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक माना जाता है. यहां का दर्शन करने वाले श्रद्धालु अपने मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए उनसे कृपा करने की प्रार्थना करते हैं. इस मंदिर की विशेषता यहां की अनूठी पूजा पद्धति और वाराणसी के धार्मिक वातावरण में है. यहां हर रोज विशेष भजन और कीर्तन होते हैं जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ऊर्जा और शांति का अनुभव कराते हैं. इस मंदिर के प्रति लोगों का श्रद्धा और समर्पण वास्तविक रूप से अद्वितीय है और यह भक्तों को उनके प्रति अटूट समर्पण का अनुभव कराता है.

क्या है इतिहास

इस मंदिर का इतिहास बहुत प्राचीन है और इसका महत्त्व वाराणसी की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत में गहराई से समाहित है. इस मंदिर की स्थापना के बारे में निर्णायक जानकारी कम होने के कारण मान्यता है कि इसे बहुत पुराने काल में बनाया गया था. मंदिर में भगवान काल भैरव की पूजा जाती है. यह मंदिर धार्मिकता, आध्यात्मिकता और साहित्य के क्षेत्र में वाराणसी की महत्ता को दर्शाता है और आज भी यहां हर रोज श्रद्धालुओं की भीड़ उपस्थित रहती है.

श्रद्धालुओं की मान्यता

इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की मान्यता है कि वे भगवान काल भैरव की कृपा और आशीर्वाद को प्राप्त करते हैं. उनका विश्वास है कि इस मंदिर में कालभैरव का वास है और वहां उनकी प्रार्थनाएं सुनी जाती हैं. श्रद्धालु यहां अपने जीवन की समस्याओं का समाधान ढूंढने आते हैं. उन्हें लगता है कि इस मंदिर में आने से उनकी समस्याएं हल होती हैं और उन्हें आत्मिक शांति मिलती है. इसलिए, यहां आने वाले श्रद्धालु अपने आध्यात्मिक उत्थान की कामना करते हैं. काल भैरव के दर्शन के लिए आई श्रद्धालु श्वेता तिवारी का कहना हैं वो यहां काफी समय से आ रही हैं और उन्हें यहां आकर बहुत शांति मिलती हैं. इसी क्रम में यश पांडेय ने कहां कि उन्हें इस स्थान पर आकर एक अलौकिक शक्ति का एहसास होता हैं और वो हर हफ्ते यहां दर्शन करने आते हैं.

कैसे हुई थी काल भैरव की उत्पत्ति

कहते हैं एक बार ब्रह्मा जी, विष्णु और महेश तीनों इस बात को लेकर काफी बहस कर रहे थे कि उन तीनों में सबसे श्रेष्ठ कौन है. इसी बहस के दौरान ब्रह्मा जी ने भगवान शिव को लेकर कुछ अपशब्द कह दिए, जिससे शिव शंकर क्रोधित हो उठे. उनके इसी रौद्र रूप से शिव ने काल भैरव की उत्पत्ति की. उत्पन्न होने के बाद ब्रह्मा ने जिस मुख से शिव को अपशब्द कहे थे वो सिर ही कालभैरव ने काट दिया. लेकिन इससे उन्हें ब्रह्म हत्या का पाप लगा. तब शिव ने उन्हें ब्रह्मा हत्या के पाप से बचने के लिए काशी में रहने का सुझाव दिया था.

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यमराज को भी लेनी पड़ती हैं इजाजत

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार काशी में मृत्यु देने से पहले यमराज को काल भैरव से अनुमति लेनी पड़ती है. काल भैरव की अनुमति के बिना काशी में यमराज भी कुछ नहीं कर सकते हैं. जीवन में ग्रहों की स्थिति खराब हो या फिर मेहनत करने के बाद भी सफलता नहीं मिलती हो. ऐसे में काल भैरव का दर्शन करने से सारी बाधा दूर हो जाती है.

Written by – Harsh Srivastva

 

 

 

 

 

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