कौन हैं बनारस के अतुल, जो बचा रहे हैं आँगन की चहचहाहट
पूरे देश में साल के एक दिन गौरैया की चर्चा होती है। शहरों से विलुप्त हो गयी इस नाजुक चिड़िया को साल में एक दिन नहीं 356 दिन याद करते हैं काशी के नवनीत पांडेय अतुल। नवनीत ने अपने घर में ही गौरैया कालोनी विकसित कर रखी है। गौरैया के संरक्षण के लिए नवनीत व्यग्र फाउंडेशन नामक एक संस्था भी बना रखी है जो लोगों को गौरैया संरक्षण के लिए जागरूक करती है। ये लोगों को उनके जन्मदिन और शादी की वर्षगांठ पर गौरैया का घर गिफ्ट करते हैं।
अतुल बचा रहे हैं गौरैया…
नवनीत पाण्डेय “अतुल” मूल रूप से देवरियां के रहने वाले है और यहां वाराणसी में रहकर करते है. अपने फुर्सत के पलों में वह अपने दोस्तों के साथ बैठ शहर से हलातों पर चर्चा करते है. सबके मन में टीस थी कि कभी प्राकृतिक रूप से बेहद समृद्ध यह शहर कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो रहा है. हरियाली के साथ ही पशु-पक्षी भी यहां से लुप्त हो रहे हैं. खासतौर पर गौरेया तो अब मुश्किल से नजर आती है. सभी इनके लिए कुछ करना चाहते थे. मगर काम की व्यस्तता और योजना के अभाव में कुछ हो नहीं पा रहा था. अतुल के मन में रह-रहकर छह साल पहले की एक घटना ऊभर आती थी. वो ककरमत्ता के एक मल्टीस्टोरी फ्लैट में शिफ्ट हुए थे. उनके पहले जो फैमिली वहां रहती थी उसने अनुरोध किया कि वो हर दिन चिड़यों के लिए दाना-पानी छत पर रखते थे. दाना-पानी की तलाश में हर रोज ढेरों चीड़िया वहां आती हैं इसलिए यह सिलसिला ना टूटे. अतुल ने भी वैसे ही करना जारी रखा. उनके मन में आया कि इसी तरह से शहर के हर घर में चीड़ियों के लिए दाना-पानी का इंतजाम किया जाए तो उन्हें लुप्त होने से बचाया जा सकता है.
फिर तो बन गयी पूरी टीम…
अतुल ने अपने दोस्तों आशुतोष तिवारी, प्रदीप सिंह, बृजेश पटेल, नरेश शर्मा, प्रभात जायसवाल, अमित श्रीवास्तव, पप्पू यादव आदि के सामने अपना यह विचार रखा तो सभी ने उसका स्वागत किया और शहर में गौरेया संरक्षण की मुहीम में साथ हो गए. 9 जून 2018 में सबने मिलकर एक संस्था बनायी जिसका नाम रखा व्यग्र फाउंडेशन. इस नाम के जरिए वो अपनी पर्यावरण संरक्षण की चिंता को भी सबके सामने लाना चाहते थे. संस्था के सदस्यों ने तय किया कि अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, परिचितों के साथ अन्य लोगों को भी अपने मुहीम में जोड़ेंगे. उनका उद्देश्य हर घर में गौरेया के दाना-पानी का इंतजाम करना था. उन्होंने सबसे पहले गौरेया के संरक्षण की बात इसलिए सोची क्योंकि कभी हर घर के आंगन में चहकने वाली यह चीड़िया तेजी से विलुप्त हो रही है.
तोहफे में देते हैं घोसला…
संस्था के सदस्यों ने गौरेया संरक्षण में सबको साथ जोड़ने का नायाब तरीका निकाला. अब वो किसी की भी शादी, बर्थ डे, रिसेप्शन या अन्य कार्यक्रमों में जाते तो ऊपहार स्वरूप प्लाई का बना खूबसूरत घोसला, गौरेया के दो पात्र और ककुनी, बाजरा देते. यह लोगों को खूब पसंद भी आता. अतुल बताते हैं कि पिछले दो सालों में इस तरह उन्होंने हजारों लोगों यह तोहफा दिया है. इसके साथ ही वो कुछ पौधे भी देते हैं ताकि लोग उन्हें अपने घरों के गमले या जहां भी जगह हो वहां लगा सकें और शहर में हरियाली वापस लाने में अपना योगदान कर सकें. इसके अलावा पूरी टीम बकायदा समय-समय पर सामूहिक कार्यक्रमों के जरिए लोगों को गौरेया संरक्षण के प्रति जागरुक कर रही है. नवरात्रि में कन्या पूजन के दौरान संस्था के सदस्य अपने परिचितों के घर जाते हैं और बच्चों को घोसला गिफ्ट करके उनसे गौरेया संरक्षण का संकल्प दिलाते हैं. उनका यह प्रयास शहर की दहलीज को पार करते हुए दूसरे शहरों तक भी पहुंच रहा है. प्रयागराज में अपने अधिवक्ता साथी विक्रम सिंह के सहयोग से वहां भी गौरेया संरक्षण का संदेश दे रहे हैं.
आसानी नहीं इनका काम…
व्यग्र संस्था की ओर से गौरैया संरक्षण के लिए किया जाने वाला काम आसान नहीं है. इसके लिए वो बकायदा मजबूत प्लाई से घोसलों का निर्माण कराते हैं. उन्हें सजाने के साथ उस पर संस्था का नाम लिखा जाता हैं. संस्था के सदस्य इस मुहिम में होने वाला सारा खर्च खुद से वहन करते हैं. सोशल मीडिया की ताकत को महसूस करते हुए व्यग्र संस्था गौरेया संरक्षण के लिए किए जा रहे अपने काम को टिवटर, फेसबुक और अन्य माध्यमों से लोगों के सामने ला रही है. इसका फायदा भी मिला है और दुनियाभर के लोग उनसे जुड़ रहे हैं. तमाम लोगों ने इस काम को आगे बढ़ाने के लिए अपने सहयोग का प्रस्ताव भी दिया है. उनका सहयोग कैसे सार्थक तरीके से लिया जाए यह इस पर संस्था विचार कर रही है.
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