मजदूरी करने वाले नन्हें हाथों ने ‘ब्लॉगर की दुनिया में मचायी धूम’

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कभी मिट्टी-गारे से सने रहने वाले नन्हे हाथों में कलम क्या आई, कमाल हो गया। इसीलिए तो कलम को सबसे ताकतवर कहा जाता है। कभी ईंट भट्ठे पर काम करने को मजबूर कर दिए गए ये बच्चे आज कमाल के ब्लॉगर बन बैठे हैं। कानपुर के इन बच्चों को यदि समय पर साथ न मिलता, तो ईंट-गारे से पीछा कभी न छूटता। यह साथ दिया यहां काम करने वाले एक सामाजिक संगठन ने। आशा ट्रस्ट नामक यह संगठन बाल मजदूरों के पुनर्वास के लिए काम करता है।

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बच्चों को ईंट भट्ठों से मुक्त करा वे यहां ले आए थे

ऐसे बच्चों को शिक्षा मुहैया कराने के लिए यह संगठन ‘अपना स्कूल’ नाम का एक स्कूल भी चलाता है। इस स्कूल में प्राथमिक स्तर तक शिक्षा दी जाती है। ट्रस्ट के संचालक महेश कुमार बताते हैं कि इन बच्चों को ईंट भट्ठों से मुक्त करा वे यहां ले आए थे। ऐसे बच्चों के लिए स्कूल के साथ ही छात्रवास की सुविधा भी यहां पर है। बच्चे इस छात्रवास को ‘अपना घर’ कह कर पुकारते हैं। महेश ने बताया कि इनमें से कई बच्चे माता-पिता के साथ ईंट भट्ठों पर काम करने को मजबूर थे। प्राथमिक शिक्षा पूरी करने पर बच्चों को आगे की शिक्षा के लिए अन्य स्कूलों में दाखिला दिलाया जाता है।

ये हुनर दुनिया को भी दिखाया जाए…

महेश ने बताया कि एक दिन विचार आया कि इन बच्चों की रचनात्मकता को टटोला जाए। टास्क देकर ब्लैक बोर्ड पर कुछ न कुछ लिखने को कहा गया। किसी ने कोई शब्द लिखा, किसी ने घटना। यही क्रम हर रोज होता। 6-7 माह का समय बीता, तो बच्चों की लिखी ये छोटी-छोटी बातें कहानी और कविता का रूप लेते दिखने लगीं। हमें लगा कि इस प्रतिभा को बढ़ावा देना चाहिए। मेरे कुछ मित्र, जो साहित्य में रुचि रखते हैं, इन बच्चों का हौसला बढ़ाने लगे। देखते ही देखते बच्चे कमाल की रचनाएं लिखने लग गए। हमने सोचा कि इनका ये हुनर दुनिया को भी दिखाया जाए।

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करीब डेढ़ लाख पाठक इनकी रचनाओं को नियमित तौर पर पढ़ रहे हैं

इसके लिए सजग नाम से एक ब्लॉग शुरू किया। इन बच्चों को ब्लॉग पर लिखने, पोस्ट और अपडेट करने जैसी बुनियादी बातें सिखा दीं। बच्चों ने जब ब्लॉग पर रचनाएं पोस्ट करनी शुरू कीं, तो पढ़ने वाले हैरत में पढ़ गए। आज करीब डेढ़ लाख पाठक इनकी रचनाओं को नियमित तौर पर पढ़ रहे हैं। अब तक ब्लॉग पर 1100 कविता-कहानियां अपलोड हो चुकी हैं। पढ़ने वालों में देसी-विदेसी सभी तरह के पाठक हैं। ब्लॉग के 2.45 लाख पेज पढ़े जा चुके हैं। यह सिलसिला महज नौ बच्चों ने शुरू किया था। एक दूसरे से प्रेरणा ले और सीख-सीख कर आज आशा ट्रस्ट के 50 से अधिक बच्चे ब्लॉगर बन बैठे हैं। कविता-कहानियां लिखना और फिर उन्हें ब्लॉग पर अपलोड करना इन्हें खूब भाता है।

विधाओं में अपना हुनर दिखा सकते हैं

महेश ने बताया कि इन बच्चों के हुनर को निखारने और इनका हौसला बढ़ाने के लिए आइआइटी कानपुर के तमाम प्रोफेसर यहां आते हैं। इन बच्चों को मार्गदर्शन देते हैं। बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ किन-किन विधाओं में अपना हुनर दिखा सकते हैं, उन्हें इस संबंध में सजग करते हैं।

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