कब गांधी परिवार में हुआ था चुनावी युद्ध, जानें…
Loksabha chunav 2024: यूपी की रजनीति ( politics) को थोड़ा समझने वाले जानते है कि अमेठी ( amethi) आज़ादी के बाद से कांग्रेस ( congress) का गढ़ रहा है. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव ( loksabhachunav2024 ) में इस सिलसिले को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ( smriti irani ) ने तोडा. आज की युवा पीढ़ी को यह जानकर हैरानी होगी की कभी अमेठी में गाँधी VS गाँधी परिवार में चुनाव हुआ था. जी, हां वह साल था 1984 जब लोकसभा चुनाव में राजीव गाँधी के सामने मेनका गाँधी अमेठी से मैदान में उतर गई थी.
पारिवारिक कलह…
बता दें कि इंदिरा गाँधी संजय की मौत के बाद अपने दूसरे बेटे राजीव को राजनीति में वो जगह देना चाहती थी जो संजय की थी, लेकिन अचानक 1982 में जब इंदिरा लंदन से वापस आई तो उनके घी का महल काफी गरम हो चुका था. बताया जाता है कि वह संजय की पत्नी मेनका गाँधी से नाराज हो गई थी. क्योंकि मेनका ने संजय के भरोसमंद अकबर अहमद के सहयोग से लखनऊ में एक जनसभा की थी. इसके जरिए मेनका ने सक्रिय राजनीति में आने का ऐलान कर दिया था. वह संजय गांधी की खाली जगह को खुद भरना चाहती थीं जबकि सास इंदिरा गांधी राजीव को तैयार कर रही थीं. पूरी फाइट संजय गांधी के निर्वाचन क्षेत्र और नेहरू-गांधी परिवार के गढ़ अमेठी को लेकर थी.
राजीव से साथ उतरी सोनिया –
लोकसभा चुनाव 1984 में राजीव को लगा कि मेनका को चुनाव में हराना इतना आसान नहीं है. क्यूंकि वह समय था जब अमेठी में महिला वोटरों की संख्या अधिक थी.तब राजीव गाँधी ने अपनी माता इंदिरा गाँधी के साथ चुनावी मैदान में प्रचार करने के लिए उतरे. इस दौरान उनकी पत्नी सोनिया ने भी उनका साथ दिया और साड़ी में जमीन पर उतरीं. उन्होंने अपनी टूटी-फूटी हिंदी में तब भाषण भी करना शुरू किया. हालांकि 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद चीजें तेजी से बदलीं. राजीव गांधी अंतरिम पीएम बने और दिसंबर के चुनाव में उनके साथ जनता की सहानुभूति हो गई.
मेनका ने राजीव पर साधा निशाना-
बता दें कि चुनाव में हार के बाद भी मेनका ने हार नहीं मानी और अब उनका सामना एक प्रधानमंत्री से था. इतना ही नहीं वह जनसभाओं में कहने लगी कि राजीव प्रधानमंत्री के तौर पर देश चला रहे हैं, लेकिन उनके पास अमेठी के लिए समय नहीं होगा. एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मेनका ने श्रीमती गांधी का उदाहरण दिया था. कहतीं कि जब उनके (इंदिरा) पति की मौत हो गई तो वह अपने पति के क्षेत्र रायबरेली गईं. जनता ने उन्हें वोट दिया, तरक्की हुई लेकिन जब वह पीएम बन गईं तो रायबरेली पीछे छूट गया.
अमेठी में भी ऐसा ही होगा. यह कहते हुए मेनका ने कहा था कि राजीव जी आप देश देखिए, अमेठी को मेनका के लिए छोड़ दीजिए. हालाँकि कि लोग कहते है कि कांग्रेस की लहर में राजीव गांधी अमेठी में जीत मिली और पार्टी को 404 सीटें मिलीं. अमेठी में राजीव ने मेनका गांधी को 3 लाख से ज्यादा वोटों से हराया. मेनका की जमानत जब्त हो गई. इसके बाद उन्होंने अमेठी से कभी चुनाव नहीं लड़ा.
राजीव VS मेनका …
गौरतलब है कि 1981 में संजय ( sanjay gandhi) की मौत के बाद हुए उपचुनाव में राजीव गाँधी ( rajeev gandhi ) अमेठी से जीत गए थे लेकिन संजय की पत्नी मेनका खुश नहीं थी. वैसे कहा जाता है कि इंदिरा हमेशा संजय को अपना उत्तराधिकारी समझती थी. क्यूंकि संजय को राजनीति की बेहद अच्छी समझ थी. जबकि राजीव अपनी फ्लाइंग लाइफ से ही खुश थे. हालाँकि संजय की मौत के बाद जब इंदिरा ने राजीव को आगे किया तो यह मेनका को पसंद नहीं आया.
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1982 में छोड़ दिया था इंदिरा का साथ..
कहते है कि साल 1982 मार्च के महीने में मेनका गाँधी अपनी सास इंदिरा का घर रात में छोड़ क्र चली गई थी उसके बाद कभी भी वापस नहीं लौटी. उस समय उनके साथ वरुण गाँधी थे जिनके उम्र महज २ साल की थी. जिसके बाद से मेनका की राजनीति महत्वाकांक्षा स्पष्ट हो गई थी. वहीँ, राजीव के उपचुनाव जीतने के बाद वह अमेठी में चुनावी प्रचार के लिए मैदान में उतरी और राष्ट्रीय संजय मंच बनाया और 1984 में राजीव के खिलाफ चुनाव का फैसला किया.