क्या है ग्रीन डेथ? जानें इंसानो के मरने के बाद कैसे बनाई जाती है पेड़-पौधों के लिए खाद
न्यूयॉर्क अमेरिका का छठा राज्य बन गया है, जहां ग्रीन डेथ की इजाजत मिल गई है. इसमें इंसानों को मरने के बाद खाद में बदल दिया जाएगा और उसका इस्तेमाल पेड़-पौधों में किया जाता है. इसे टेरामेशन या नेचुरल ऑर्गेनिक रिडक्शन भी कहा जाता है. इस प्रोसेस में इंसान की बॉडी को दफनाने या जलाने का काम नहीं किया जाएगा. ग्रीन डेथ को सिर्फ अमेरिका में ही नहीं मंजूरी मिल रही है. स्वीडन में मानव खाद को पहले ही मंजूरी मिली हुई है.
क्या है मानव खाद…
मानव खाद बनाने के तरीके को अमेरिका और स्वीडन में मंजूरी मिली है. दरअसल ग्रीन डेथ इंसान को मिट्टी मे बदलने की प्राकृतिक तरीका है. इसमें इंसान के शरीर को प्राकृतिक तरीके से गलाकर उसका खाद बनाया जाएगा और उसका इस्तेमाल पेड़-पौधों को उगाने या खेती-बाड़ी में किया जाएगा.
कैसे आया मानव खाद का आइडिया…
रीकंपोज दुनिया की पहली ह्यूमन कंपोस्टिंग फ्यूनरल होम है. इसके संस्थापक और सीईओ कैटरीना स्पेड को ये विचार पहली बार साल 2013 में उस वक्त आया था, जब वो ग्रेजुएशन कर रहे थे. पढ़ाई पूरी करने के बाद स्पेड ने वॉशिंगटन में इसे वैध करने के लिए मृदा वैज्ञानिकों, लॉबिस्ट्स और इंवेस्टर्स के साथ काम किया. साल 2019 में वॉशिंगटन में मानव खाद को मंजूरी मिल गई.
कैसे बनाया जाता है मानव खाद…
मानव खाद बनाने का पूरा प्रोसेस होता है. इंसान की बॉडी को खाद बनाने के लिए उसे धातु के कॉफिन में रखते हैं. डेड बॉडी को 8 फुट लंबे और चार फुट ऊंचे स्टील के सिलेंडरनुमा बॉक्स में रखा जाता है. बॉडी के नीचे लकड़ी, पुआल और अल्फाल्फा वनस्पति रखा जाता है. इस घास के बैक्टीरिया बॉडी को तेजी से डिकंपोज करते हैं. 30 दिनों के भीतर पूरा शरीर खाद में बदल जाता है. इसके बाद मानव खाद को बॉक्स से निकाला जाता है. लेकिन अभी भी बैक्टीरिया जैसा खतरा रहता है. इसलिए इसे 2 से 6 हफ्ते तक के लिए सुरक्षित रखा जाता है. इसके बाद इस मानव खाद का इस्तेमाल किया जा सकता है.
ग्रीन डेथ में क्या बचता है…
हर एक मानव शरीर से एक घन मिट्टी या 36 बैग बनता है. रीकंपोज वेबसाइट के मुताबिक हड्डी से लेकर दांत तक डिकंपोज हो जाता है. लेकिन नॉन-ऑर्गेनिक मटेरियल जैसे प्रोस्थेटिक्स खाद नहीं बदलता है, जिसे सिलेंडर से निकाल लिया जाता है. ये भी कहा जाता है कि इस प्रोसेस के तहत सभी बॉडी को डिकंपोज नहीं किया जा सकता है. लेप की गई बॉडी डिकंपोज नहीं होती है. अगर किसी को तपेदिक जैसी बीमारी थी, तो उसकी बॉडी के लिए ग्रीन डेथ प्रोसेस ठीक नहीं है. इस प्रोसेस में ऐसी किसी भी बॉडी को डिकंपोज नहीं किया जाता है, जिससे मिट्टी को नुकसान हो सकता है.
ग्रीन डेथ के फायदे…
-ग्रीन डेथ का समर्थन करने वालों का कहना है कि ये प्रोसेस पर्यावरण के ज्यादा अनुकूल है. इसको लेकर ये भी फायदा गिनाया जाता है कि सबसे बड़ा काम दान होता है और इस प्रोसेस में इंसान मरने के बाद भी दान की प्रक्रिया को पूरी करता है और दूसरे जीवन को पोषित करता है.
-इतना ही नहीं, ग्रीन डेथ में दाह संस्कार के मुकाबले कम ऊर्जा का इस्तेमाल होता है. केमिकल एंड इंजीनियरिंग न्यूज के मुताबिक एक शव के दाह संस्कार से हवा में 418 पाउंड कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है. इतना पॉल्यूशन एक पुरानी कार से 370 मील चलने पर होता है. ग्रीन बरियल काउंसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ अमेरिका में हर साल दाह संस्कार पर 1.74 बिलियन पाउंड कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है.
-कैलिफोर्निया का अनुमान है कि हर इंसान अपने अंतिम संस्कार के लिए नेचुरल रिडक्शन को चुनता है तो सिर्फ 10 साल में 2.5 मिलियन मिट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन की कमी की जा सकती है. इतना ही नहीं, मानव खाद मिट्टी और वनस्पति के लिए भी बढ़िया है.
-इसके अलावा मानव खाद प्रक्रिया अंतिम संस्कार के दौरान मौजूद रहने वाले कर्मचारियों की सेहत के लिए भी फायदेमंद है. अगर ज्यादा लोग मानव खाद का विकल्प चुनते हैं तो कर्मचारियों को फॉर्मलाडेहाइड से बचाया जा सकता है. जो दुर्लभ कैंसर का कारण है.
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