‘वेर्थर इफेक्ट’ हो सकती है कोटा में बढ़ती सुसाइड का कारण, जानें क्या है…..
बीते 8 महीनों में आत्महत्या के 22 मामले कोटा से सामने आये है । बीते मंगलवार 15 अगस्त को भी महावीर नगर इलाके में रहकर इंजीनियरिंग में एडमिशन लेने के लिए ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जाम एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी करने वाले एक छात्र ने आत्महत्या जैसा बडा कदम उठा लिया, लेकिन ये कहानी मात्र इस मालवीय नगर में रहकर तैयारी करने वाले एक छात्र की नहीं है ये कहानी है बीते 8 महीनों में आत्महत्या कर रहे 22 या उससे भी ज्यादा के छात्रो की है । सवाल यह है कि, लगातार कोटा से आती इन आत्महत्याओं के पीछे की वजह क्या है ?
इस सवाल की पड़ताल करते हुए कई सारे कंटेट सोशल मीडिया पर मिले जिनमें अलग – अलग तरह के कारणों का उल्लेख किया गया था, इसके साथ ही कई मनोवैज्ञानिकों के शोध में अलग – अलग कारणों का भी उल्लेख मिला, लेकिन एक थ्य़ोरी जो वाकई में लगा की आत्महत्या बढते मामलों पर सही बैठ रही थी। वो थ्योरी है , ‘वेर्थर इफेक्ट’ जिसकी वजह से आत्महत्या के मामले में बढत का अनुमान लगाया जा सकता है ।
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दरअसल, हाल में ही नेटफ्लिक्स में ’13 रीज़न्स व्हाइ’ नाम की एक सीरीज रिलीज की गयी थी। यह सीरीज एक काल्पनिक घटना पर आधारित फिल्म है, इस सीरिज में एक टीनेजर लड़का अपने हालातों से तंग आकर आत्महत्या कर लेती है। उसकी मौत के बाद उसके पास से 13 मीडिया रिकॉर्डिंग मिलते है जिनमें वो अपनी मौत की पूरी कहानी को कहती है । इस कथा को सीरीज में बहुत विस्तार से चित्रित किया गया है, ऐसे मे बताया जाता है कि, इस सीरीज के बाद अमेरिका में टीनेजर लड़कियों के आत्महत्या के मामले में बढत देखी गयी ।
ऐसे काम करता है वेर्थर इफेक्ट
ऐसे में यह सीरीज एक मात्र उदाहरण नहीं जिसकी वजह से आत्महत्या के मामले बढे है, इसको लेकर मनोचिकित्सा के शोध में ‘वेर्थर इफेक्ट’ नाम से टर्म का उल्लेख किया गया है । इस टर्म के हिसाब से जब आत्महत्या की घटनाओं को विस्तृत तौर पर पहुंचाया जाता है तो, ऐसे में आत्महत्या हो या कोई भी घटना हो उसके मामले बढने लगते है।
सुसाइड प्रिवेंशन पॉलिसी पर शोध करने वाले एक वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्रिवेदी बढते आत्महत्या के मामलों को लेकर कहते है कि, ‘ कोटा में जिस तरह आत्महत्या की घटनाओं का पैटर्न देखने को मिल रहा है, उसमें यह कहना अनुचित नहीं होगा कि इसमें कहीं न कहीं वेर्थर इफेक्ट काम कर रहा है. इन घटनाओं पर सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म जैसे व्हाट्सऐप, फेसबुक, इंस्टाग्राम से लेकर मेन स्ट्रीम मीडिया खबरें दिखा रहा है. वो सुसाइड प्रिवेंशन के पैमाने पर खरी नहीं उतर रहीं’
क्या है वेर्थर इफेक्ट टर्म ?
NCBI के शोध में वेर्थर इफेक्ट टर्म नाम के इस शब्द की उत्पत्ति मिलती है । बताया जाता है कि, साल 1774 के उपन्यास ‘द सॉरोज़ ऑफ यंग वेर्थर’ से वेर्थर इफेक्ट टर्म की उत्पत्ति मानी जाती है। दरअसल , इस पुस्तक में एक प्रेम प्रसंग पर आधारित कथा का चित्रण किया गया है। इस उपन्यास में वेर्थर नाम का लडका जो एक ऐसी महिला से प्यार हो जाता है जिससे वह शादी नहीं कर सकता है। वह उसकी कास्ट से ऊंची भी है और उसकी सगाई भी हो चुकी है । ऐसे में इन सब हालतों से हारकर वेर्थर आत्महत्या कर लेता है ।
बताया जाता है , यूरोप में इस उपन्यास के रिलीज होने के बाद से ही आत्महत्याओं का जैसे एक सिलसिला चल पड़ा था। इन मामलो में कई ऐसे मामले थे जिनमें इस किताब के खिलाफ पुख्ता सबूत मिले। कहते है कि, इस किताब की वजह से आत्महत्या करने वालों में से कुछ ने वेर्थर की तरह ही कपड़े पहने हुए भी मिले है, इतना ही नहीं कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होने वेर्थर की तरह ही अपनी जान लेने के लिए पिस्तौल का इस्तेमाल किया था। इस घटना के कुछ साल बाद ही ‘वेर्थर इफेक्ट टर्म’ के साथ इस तरह के कंटेंट के प्रस्तुतीकरण का आत्महत्या के केसेज में प्रभाव पर विश्लेषण किया।
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ये हैं आत्महत्या के बढ़ते मामलों के पीछे की वजह
इसी प्रकार ‘वेर्थर इफेक्ट’ के प्रभाव के चलते ही कोटा में भी आत्महत्या के मामले लगातार सामने आ रहे है। क्योकि बीते 8 माह में हुई तकरीबन 22 आत्महत्या की घटनाओ का विस्तृत तौर पर समाचार पत्र और सोशल मीडिया के जरिये भी किया जा रहा है । जिसकी वजह से मानसिक ट्रामा से गुजर रहे छात्र – छात्राएं भारी संख्या में ऐसे कदम उठा रहे है , ऐसे में जरूरी है कि, आप पोस्ट और चीजें साझा करते समय सचेत और सावधान रहे, ताकि आपकी पोस्ट किसी की मौत का कारण न बन जाए।
देश में आत्महत्या के आंकडे
साल 2021 की एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, आत्महत्या से जान लेने वालों की संख्या का आंकड़ा लगभग 8 लाख दर्ज किया गया, जिसमें से 20 प्रतिशत भारतीय लोग शामिल है। भारत में 20 प्रतिशत लोगों ने खुद की जान ली है। 2021 में 1 लाख 64 हजार भारतीयों ने आत्महत्या का रास्ता अपनाया था।