Vishwakarma Puja 2023 : विश्वकर्मा पूजा आज, सुबह का छूट गया है शुभ मुहूर्त, तो इस समय में कर ले पूजा ..
आज देशभर में विश्वकर्मा पूजा मनायी जा रही है, यह पूजा कन्या संक्रांति के मौके पर मनायी जाती है। इसे विश्वकर्मा दिवस या विश्वकर्मा जयंती के नाम से जाना जाता है, विश्वकर्मा को निर्माण एवं सृजन का देवता माना गया है। ऐसा माना जाता है कि, भगवान विश्वकर्मा ने सृष्टि की रचना की है वे ब्रह्मा जी के सातवें पुत्र थे, इसके अलावा भगवान विश्वकर्मा में 12 आदित्यों और ऋग्वेद में भी इनका उल्लेख किया गया है। यह पर्व हिन्दू धर्म में बहुत विशेष माना गया है, इस मौके पर लोग अपने कारखानों और वाहनों की पूजा करते हैं ।
पूजा का महत्व
भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का पहला इंजीनियर माना जाता है। ऐसा कहते हैं कि विश्वकर्मा पूजा के दिन घर, दुकान या फैक्ट्रियों में लोहे, वाहन और मशीनों की पूजा की जाती है। भगवान विश्वकर्मा की अनुकंपा से ये मशीनें जल्दी खराब नहीं होती हैं। कार्य, कारोबार में उन्नति आती है। भारत के कई हिस्सों में विश्वकर्मा पूजा बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है।
विश्वकर्मा पूजा विधि
भगवान विश्वकर्मा की पूजा और यज्ञ विशेष विधि-विधान से होता है. इस दिन सवेरे-सवेरे स्नानादि के बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें और भगवान विश्वकर्मा का ध्यान करें. फिर पूजा स्थल को साफ करें. गंगाजल छिड़क कर पूजा स्थान को पवित्र करें. एक चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं. पीले कपड़े पर लाल रंग के कुमकुम से स्वास्तिक चिह्न बनाएं. भगवान श्री गणेश का ध्यान करते हुए उन्हें प्रणाम करें. इसके बाद स्वास्तिक पर चावल और फूल अर्पित करें, फिर उस चौकी पर भगवान विष्णु और भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा स्थापित करें
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एक चौरस दीपक जलाकर चौकी पर रखें. भगवान विश्वकर्मा जी के माथे पर तिलक लगाएं और पूजा आरंभ करें. भगवान को पुष्प, सुपारी, फल और मिठाई अर्पित करें. इसके बाद अपनी नौकरी-व्यापार में तरक्की की कामना करें. पूजा के दौरान भगवान विश्वकर्मा के मंत्रों का जाप भी करें. ”ॐ आधार शक्तपे नम:, ओम कूमयि नम:, ओम अनन्तम नम:, पृथिव्यै” मंत्र का जाप करें. इसके बाद भगवान विश्वकर्मा की आरती उतारें और दूसरे लोगों में प्रसाद वितरित करें.
शुभ मुहूर्त
आज विश्वकर्मा पूजा के दो शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। ऐसे में पहला मुहूर्त आज सुबह 7 बजकर 50 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 26 मिनट तक पूजा का मुहूर्त है। इसके बाद दोपहर 1 बजकर 58 मिनट से दोपहर 3 बजकर 30 मिनट तक पूजा का मुहूर्त रहेगा।
भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति कैसे हुई
पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि, सृष्टि के प्रारंभ में सबसे पहले नारायण अर्थात साक्षात भगवान विष्णु सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए थे, उन्ही की नाभि कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे । बताया यह भी जाता है कि, धर्म की ‘वस्तु’ नामक स्त्री से उत्पन्न ‘वास्तु’ सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव की ‘अंगिरसी’ नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए। पिता की भांति विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बन।