पूर्व बीजेपी विधायक की ‘कविता से कोहराम’
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक पूर्व विधायक की कविताओं के संग्रह ‘सुधीर सुक्ता’ ने राज्य के प्रभावशाली गौड़ सारस्वत ब्राह्मण (जीएसबी) समुदाय पर तीखे बाण छोड़े हैं, जिसके बाद यहां विवाद छिड़ गया है। कविताओं के जरिये गोवा के समाज में अप्रत्यक्ष तौर पर, लेकिन सर्वव्याप्त जाति-व्यवस्था पर तंज कसा गया है।
प्रतिष्ठित एवं पुरस्कार प्राप्त लेखक एवं कवि विष्णु वाघ को पिछले साल गंभीर रूप से दिल का दौरा पड़ा था और वह अब भी बीमारी से जूझ रहे हैं। उनके कविता संग्रह को हाल ही में राज्य सम्मान के लिए चुना गया, जिसके बाद इस मुद्दे पर विवाद शुरू हो गया है। इसे अपूरबाई प्रकाशन ने साल 2013 में छापा था।
निर्णायक मंडल के सदस्य कवि संजीव वेरेंकर ने कविता संग्रह को गोवा कोंकणी एकेडमी अवॉर्ड के लिए चुने जाने पर आपत्ति जताई है और दलील दी है कि सरकार को ऐसे किसी साहित्य का समर्थन नहीं करना चाहिए, जो किसी एक तथाकथित उच्च जाति पर वार करता हो और महिलाओं का अपमान करता हो।
तीन सदस्यीय निर्णायक मंडल, जिसमें निल्बा खांडेकर, सोनाली चोदांकर और स्वयं वेरेंकर हैं, के फैसले की औपचारिक घोषणा से पहले इसे लीक करने के अपने निर्णय को उचित ठहराते हुए उन्होंने कहा कि हालांकि कवियों और लेखकों को लिखने की स्वतंत्रता होती है और वे अपने लेखन में ‘अशिष्ट’ भाषा तक का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन सरकार को ऐसे किसी भी लेखन को राज्य सम्मान के लिए समर्थन नहीं देना चाहिए।
वेरेंकर ने कहा, “मैं मानता हूं कि परिणाम (वाघ को विजेता घोषित करना) लीक करना गलत है, लेकिन मेरा इरादा बिल्कुल सही है। कविताओं में किसी एक खास समुदाय की आलोचना की गई है और इससे साम्प्रदायिक तनाव पैदा हो सकता है। कवि स्वतंत्र होते हैं और वे कुछ भी लिख सकते हैं, उन पर किसी तरह की बंदिशें नहीं होनी चाहिए, लेकिन एक सरकारी उपक्रम होने के नाते हमें किसी ऐसे लेखन का समर्थन नहीं करना चाहिए, जो ‘असभ्य, अशिष्ट या अश्लील हो।”
वाघ जाति-उन्मुख समाज व्यवस्था और दक्षिणपंथी राजनीति के आलोचक रहे हैं और उनकी यह सोच उनके साहित्य से परिलक्षित होती रही है। उदाहरण के लिए ‘सुधीर सुक्ता’ संग्रह की एक कविता ‘फर्क’ में गोवा की तथाकथित उच्चजाति गौड़ सारस्वत ब्राह्मण के खिलाफ चिंता जताई गई है।
उदाहरण के लिए वह लिखते हैं : वे मछली खाते हैं/ हम भी मछली खाते हैं/ वे शराब पीते हैं/ हम भी शराब पीते हैं/ वे संबंध बनाते हैं/ हम भी संबंध बनाते हैं/ वे नहाते हैं/ हम भी नहाते हैं/ वे नहाकर पवित्र हो जाते हैं/ लेकिन हम तब भी अपवित्र रहते हैं/अन्यथा, वे कैसे गर्भगृह में पहुंच कर भगवान को छू लेते?/और हम/बाहर से ही बस एक झलक देख पाते../हममें और उनमें अंतर है।
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यहां उल्लेखनीय है कि गोवा के प्रख्यात मंदिरों के गर्भगृहों में गैर-ब्राह्मण समुदाय के लोगों को प्रवेश की अनुमति प्रबंधन द्वारा नहीं दिए जाने से कई बार जीएसबी समुदाय के खिलाफ लोगों का गुस्सा भड़का है, जो हालांकि संख्या में कम हैं, लेकिन राज्य की राजनीति, प्रशासन, व्यवसाय, साहित्य और अकादमी में इनका दबदबा है और ये महत्वपूर्ण पदों पर हैं।
संयोगवश, मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर ने ही साल 2013 में ‘सुधीर सुक्ता’ का विमोचन किया था, जो स्वयं भी जीएसबी समुदाय से आते हैं।वेरेंकर का कहना है कि इस कविता संग्रह में ‘असभ्यता’ के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है।वह कहते हैं, “इसमें महिलाओं और सारस्वत ब्राह्मण समुदाय को गालियां दी गई हैं। साहित्य में भी यदि आप अशिष्ट भाषा का इस्तेमाल करते हैं तो इसका भी संदर्भ अवश्य होना चाहिए।”
वेरेंकर को कविता संग्रह की जिस दूसरी कविता पर आपत्ति है, वह पृष्ठ संख्या 152 की ‘संधी’ (अवसर) है, जो एक निचली जाति के युवक और उसकी उच्च जाति वर्ग की उसकी प्रेमिका के बीच यौन संबंधों पर हुई बातचीत को लेकर है।कविता संग्रह की प्रकाशक हेमा नाईक, जो खुद भी साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता हैं, का कहना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लेखकों एवं कवियों को अपनी चिंताओं व भावनाओं को व्यक्त करने की स्वतंत्रता देती है।
उन्होंने इस बात से इनकार किया कि ‘सुधीर सुक्ता’ में किसी खास जाति को लेकर तंज कसा गया है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि सदियों से निचली जातियों का उच्च जाति द्वारा दमन व शोषण एक तथ्य है।उन्होंने सवालिया लहजे में कहा, “यह उनकी निजी राय है। वह जो चाहते हैं, लिखने के लिए स्वतंत्र हैं। इस आरोप का कोई आधार नहीं है कि किताब में किसी खास जाति को निशाना बनाया गया है। लेकिन क्या यह सच नहीं है कि ऊंची जातियां पीढ़ियों से निचली जातियों का उत्पीड़न करती आ रही हैं?
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नाईक के अपूरबाई प्रकाशन ने पिछले तीन दशक से ज्यादा समय में 100 से ज्यादा शीर्षकों का प्रकाशन किया है।हालांकि गोवा कोंकणी एकेडमी के अध्यक्ष प्रकाश वज्रीकर ने कहा कि विजेता का नाम अब भी ‘लिफाफे में बंद’ है, लेकिन इस विवाद की वजह से जीएसबी समुदाय में भारी नाराजगी है।विवाद के सामने आने के बाद मशहूर लेखक उदय भांबरे ने कहा, “यदि सम्मान किसी ऐसी चीज को दिया जा रहा है, जो समाज के लिए खतरा है तो इसका साफ मतलब यह है कि यह इसे बढ़ावा देने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।”
हालांकि दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स में रिसर्च स्कॉलर कौस्तुभ नाईक इससे अलग राय रखते हैं।वाघ को निशाना बनाने वालों की आलोचना करते हुए नाईक ने कहा कि ये कविताएं पद्मश्री अलंकरण से नवाजे गए महाराष्ट्र के क्रांतिकारी दलित कवि दिवंगत नामदेव ढसाल के साहित्य को ही प्रदर्शित करती हैं।
नाईक ने कहा, “सम्मान मिले या ना मिले, इससे गोवा के सर्वाधिक प्रभावी आधुनिक कवियों में से एक के रूप में वाघ का कद कम नहीं होगा। कविताओं की प्रकृति ढसाल की कविताओं से मिलती-जुलती है और यह ब्राह्मणवादी सोच को पूरी तरह नकारती है।”
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