वाराणसीः एसएन बोस के ऐतिहासिक शोध से आधुनिक विज्ञान पर ये पड़ा प्रभाव
वाराणसीः काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विज्ञान संस्थान में एस.एन. बोस के 1924 में प्रकाशित प्रसिद्ध शोध पत्र की 100 वर्ष के उपलक्ष्य में एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया. इस आयोजन में प्रो. उमाकांत रापोल और प्रो. पार्थ घोष जैसे प्रतिष्ठित वक्ताओं ने बोस के कार्यों के आधुनिक विज्ञान पर प्रभाव के बारे में गहन विचार प्रस्तुत किए.
प्रो. उमाकांत रापोल ने “वर्तमान विज्ञान पर बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी का प्रभाव” विषय पर अपने व्याख्यान में बोस-आइंस्टीन संघनन (BEC), एक पदार्थ की अवस्था के बारे में विस्तार से बताया. इसे एस.एन. बोस के कार्य और अल्बर्ट आइंस्टीन के सहयोग से भविष्यवाणी की गई थी. उन्होंने बताया कि कैसे बोस-आइंस्टीन सांख्यिकी ने हमारे क्वांटम प्रणालियों के ज्ञान को क्रांतिकारी रूप से बदल दिया और इसके आधुनिक विज्ञान में अनुप्रयोगों को रेखांकित किया.
कई क्षेत्रों में प्रदान की महत्वपूर्ण उपलब्धियां
प्रो. रापोल ने जोर देकर कहा कि प्रयोगशालाओं में BEC की वास्तविकता ने क्वांटम सिमुलेशन, सटीक मापन, और अति-संवेदनशील सेंसरों के विकास जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्रदान की हैं. उन्होंने BEC की क्वांटम जगत को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका को विस्तार से समझाया और कैसे यह तकनीकी और मौलिक भौतिकी के नए क्षेत्रों को प्रेरित करता रहा है.
प्रो. पार्थ घोष, जो एस.एन. बोस के अंतिम पीएचडी छात्र और विज्ञान संचार के एक प्रमुख हस्ती हैं, ने “बोस की कहानी, फोटोन स्पिन और अभेद्यता” पर अपने व्याख्यान में प्रो. एस.एन. बोस के साथ अपने व्यक्तिगत अनुभव साझा किए. उन्होंने बोस के जीवन और योगदानों को याद किया. बताया कि क्वांटम सिद्धांत के विकास के पीछे का प्रयास किस प्रकार बोसोन स्थितियों को समझने का मार्ग प्रशस्त करता है.
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बोस-आइंस्टीन संघनन के क्षेत्र में मिले कई नोबेल पुरस्कार
प्रो. घोष ने इस बात पर जोर दिया कि बोस के अग्रणी कार्यों के कारण बोस-आइंस्टीन संघनन के क्षेत्र में कई नोबेल पुरस्कार मिले हैं और यह कार्य क्वांटम भौतिकी के लिए एक आधारशिला बना हुआ है, विशेष रूप से क्वांटम संगणना और क्वांटम यांत्रिकी के क्षेत्रों में.
प्रो. घोष ने बोस के फोटोन स्पिन और अभेद्यता की अवधारणा पर किए गए क्रांतिकारी कार्य पर भी चर्चा की, जो बोसोन जैसी क्वांटम कणों को समझने के लिए मौलिक है.
उन्होंने साझा किया कि बोस के सिद्धांतों के व्यापक प्रभाव हैं, जिनमें बोस-आइंस्टीन सिद्धांतों का उपयोग करके गुरुत्वाकर्षण त्वरण की सटीक माप, जो सुरंगों की पहचान के लिए महत्वपूर्ण हो सकती है. डॉ. चंद्रशेखर पति त्रिपाठी ने इस आयोजन का संचालन किया और वक्ताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया. विज्ञान संकाय के डीन प्रो. एस.एम. सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया.