किसान पृष्ठभूमि के कथाकार हैं शिवप्रसाद सिंह

शिवप्रसाद सिंह किसान पृष्ठभूमि के कथाकार हैं. उनके कथा साहित्य में बनारस की जो विशिष्ट उपस्थिति देखी जा सकती है, वैसी सामाजिक - साहित्यिक विचारधारा अब लगभग नहीं मिलती.शिवप्रसाद सिंह किसान पृष्ठभूमि के कथाकार हैं. उनके कथा साहित्य में बनारस की जो विशिष्ट उपस्थिति देखी जा सकती है, वैसी सामाजिक - साहित्यिक विचारधारा अब लगभग नहीं मिलती.

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कवि आलोचक प्रो.आशीष त्रिपाठी ने कहा है कि शिवप्रसाद सिंह किसान पृष्ठभूमि के कथाकार हैं. उनके कथा साहित्य में बनारस की जो विशिष्ट उपस्थिति देखी जा सकती है, वैसी सामाजिक – साहित्यिक विचारधारा अब लगभग नहीं मिलती. वे नैतिकता और मानवीय आभा के कथाकार हैं. शिवप्रसाद सिंह का संपूर्ण मूल्यांकन अभी तक नहीं हो पाया है.

वहीं वरिष्ठ आलोचक प्रो.अवधेश प्रधान ने कहा कि शिवप्रसाद सिंह बड़े फलक के लेखक हैं. उपन्यास ‘अलग – अलग वैतरणी’ में उन्होंने तत्कालीन भारतीय परिवेश तथा गांवों में प्रवेश कर शहर का चित्रण किया है. उनके लेखन में स्त्री का स्वतंत्र व्यक्तित्व दिखता है.उक्त विद्वान काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में ‘स्मृतियों में शिवप्रसाद सिंह’ शीर्षक गोष्ठी शिवप्रसाद सिंह स्मृति न्यास और सामाजिक विज्ञान संकाय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित समारोह में बोल रहे थे.

कार्यक्रम में शिवप्रसाद सिंह पर आधारित पुस्तक ‘स्मृतियों में शिवप्रसाद सिंह’ का लोकार्पण किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता सामाजिक विज्ञान संकाय की अधिष्ठाता प्रो. बिन्दा परांजपे ने की. मुख्य अतिथि हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. वशिष्ठ अनूप रहे. साहित्यकार बलराज पांडे ने स्वागत वक्तव्य दिया तथा डॉ.प्रभात मिश्र ने संचालन किया.

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अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो. बिन्दा परांजपे ने कहा, “शिवप्रसाद सिंह का कथा साहित्य पढ़ते हुए फूलों की सुगंध को महसूस किया जा सकता है. उनके लेखन में इतिहास के विशिष्ट कालखंड को देखा जा सकता है. उनमें भाषा की गहरी समझदारी थी. उनके लेखन में इतिहास और साहित्य का मेल है.

सिनेमाई गीतों और लोक गीतों का किया अनूठा प्रयोग

मुख्य अतिथि प्रो.वशिष्ठ अनूप ने कहा, “शिवप्रसाद सिंह विलक्षण प्रतिभा के धनी साहित्यकार हैं. हिन्दी में उनकी छवि गंभीर अध्येता की है. उन्होंने कथा में सिनेमाई गीतों और लोक गीतों का अनूठा प्रयोग किया. ” स्वागत वक्तव्य देते हुए कवि – कथाकार प्रो.बलराज पांडे ने कहा, “शिवप्रसाद सिंह लोहिया के विचार से प्रभावित थे. वे कथा में प्रेमचंद की परंपरा के कथाकार हैं. उनकी कहानियों में भारतीय किसान, ग्राम कथा और हाशिए के समाज की केंद्रीय उपस्थिति है. सूरपूर्व ब्रजभाषा पर उनका शोध अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है.”

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‘स्मृतियों में शिवप्रसाद सिंह ‘ पुस्तक के संपादक डॉ.मांधाता राय ने पुस्तक की परिकल्पना और प्रक्रिया के बारे में बताया. साहित्यकार रामसुधार सिंह, उमेश प्रसाद सिंह,रामजी प्रसाद भैरव और डॉ.नरेंद्र सिंह ने शिवप्रसाद सिंह पर संस्मरण एवं विचार व्यक्त किया.

इनकी रही विशेष उपस्थिति

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय का कुलगीत शमयिता पांजा और बागेश्वरी बेहरा ने प्रस्तुत किया. कार्यक्रम में डॉ. सच्चिदानंद राय, डॉ. संतोष कुमार सिंह, डॉ. रामाज्ञा राय, प्रो. नीरज खरे, प्रो. कृष्ण मोहन, कवि प्रकाश उदय, डॉ. संजय गौतम, डॉ. अनुराधा सिंह, डॉ.मीरा सिंह, डॉ.मोहन सिंह, साहित्यकार वाचस्पति, डॉ. प्रीति त्रिपाठी आदि विशेष रूप से उपस्थित थे.

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