आदमी को इंसान करना चाहते थे राहत
शेरों-शायरी की दुनिया में डॉ. राहत इंदौरी का नाम एक ऐसे सितारे की तरह है जिसकी कलम से निकलने वाले अल्फाजों की चमक कभी फीकी नहीं पड़ेगी।
डॉ. राहत ने अपने नाम की सार्थकता को सिद्ध करते हुए हजारों ऐसे शेर लिखे जिनमें सचमुच हमारे दिल को राहत देने की कूबत दिखायी देती है। उर्दू अल्फाजों को करीने से सजा कर उन्हें शेर की शक्ल देने के माहिर डॉ. राहत इंदौरी का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह कोरोना से संक्रमित भी थे। डॉ. राहत से अपनी मुलाकात की यादें ताजा कर रहे हैं पत्रकार हिमांशु शर्मा।
डॉ. राहत इंदौरी को सुनने का मौका तो कई बार मिला पर उनसे रुबरू होने की ख्वाहिश 13 अक्टूबर 2012 को पूरी हुई। डॉ. साहब एक मुशायरे के सिलसिले में बनारस आये हुए थे। उनका इंटरव्यू करना अखबारी जरूरत थी। मुझे इसके लिए मुकर्रर किया गया।
इतने बड़े शायर से सवाल पूछने के लिए आपको कम से कम उनकी जुबान यानि जिस भाषा में वह बातचीत करते हैं उसका जानकार तो होना ही चाहिए। पर यहां मेरा उर्दू का ज्ञान दो चार शब्दों से अधिक नहीं था। खैर, मरता क्या न करता जाने को तैयार हुआ।
हर बात में शेर कहने का खास अंदाज-
मुशायरे के आयोजकों ने डॉ. साहब के ठहरने का इंतजाम लहुराबीर के एक होटल में किया था। मैंने घर से निकलने से पहले जागरण के सीनियर जर्नलिस्ट नुरूल भाई को फोन किया। उन्हें भी डॉ. साहब से मिलना था। उन्होंने बताया कि मैं होटल में हूं आ जाओ।
नुरूल भाई के वहां होने की खबर ने मुझे बड़ी राहत दी। नुरूल भाई उर्दू के जानकार हैं। हम दोनों लोग उनके कमरे में पहुंचे। उस समय डॉ. राहत लंच के लिए तैयार हो रहे थे। पर हम लोगों के आने की सूचना पर वहीं रुक गये और खाना कमरे में ही मंगा लिया। हमसे भी उन्होंने खाने के लिए पूछा। पर हम लोगों ने मना कर दिया। वो हमसे खाने की जिद करने लगे।
उनके बातचीत के तरीके को देख कर ऐसा लगा नहीं कि हम लोग पहली बार उनसे मिल रहे हैं। हर बात में एक शेर कह देने का अंदाज बड़ा खास था। मुझे याद है, उन्होंने किसी बात पर एक शेर पढ़ा जिसकी अंतिम लाइन मेरे जेहन में आज भी जिंदा है।
मेरे अंदर बहुत से आदमी हैं, उन्हें इंसान करना चाहता हूं।
शायर के साथ पेंटर भी-
शायद यह कम लोगों को पता होगा कि डॉ. इंदौरी एक बेहतरीन शायर होने के साथ ही उम्दा पेंटर भी थे। हमने उनसे उनके पेंटिंग के बाबत पूछा तो उन्होंने बताया कि जी हां मैं प्रोफेशनल पेंटर भी था पर अब मैं शायर हूं। पर मैं ये नहीं मानता कि मैंने अपना काम बदला है। हां ये जरूर है कि पहले मैं रंग और कूंची से कागज पर तस्वीरें खींचता था अब कलम से खींच रहा हूं।
अपना आइडियल किसे मानते हैं के सवाल पर उन्होंने कहा था कि मैं तो किसी को अपना आइडियल नहीं मानता लेकिन दो लोग एक मीर और एक गालिब मेरी शायरी के सामने दीवार से खड़े रहते हैं। जब भी कुछ बेहतर लिखने कहने की कोशिश करता हूं तो इन दो दीवारों को अपने सामने पाता हूं। कोशिश है कि कुछ अच्छा लिख लूं ताकि इत्मिनान से मर सकूं।
‘कलम स्याही की जगह खून उलटती है’-
डॉ. राहत ने भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता जैसे विषयों पर भी खूब लिखा। जब हमने उनसे इस संदर्भ में पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि देश के हालात इस कदर खराब हैं कि कुछ लिखने की कोशिश करता हूं तो कलम स्याही की जगह खून उलटने लगती है। कहा कि भ्रष्टाचार आज इंतेहाई दौर में है।
उन्होंने यहां तक कहा कि सौदा यहीं पर होता है हिन्दुस्तान का, ससंद भवन में आग लगा देनी चाहिए। इसके बाद मुझ पर मुकदमे चलाये गये। पर मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मुझे अपने देश के मौजूदा हालात पर तकलीफ होती है और उसी का दर्द अल्फाजों के शक्ल में सामने आता है।
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