बनारस के होटलों पर चढ़ा है ताला, सड़क पर आ गए 25 हजार परिवार !
वाराणसी। रानी देवी पिछले बीस साल से वाराणसी के एचएचआई होटल में सफाई का काम करती हैं। लॉकडाउन के दौरान पिछले तीन महीने से उन्हें सैलरी नहीं मिल रही है। बच्चों की फीस, बिजली का बिल, राशन वाले का कर्ज जैसे न जाने कितनी समस्याए अब नासूर बनती जा रही है।
अभी तक जैसे-तैसे खर्च चलाया लेकिन अब फंकाकशी की नौबत आ गई गई है। अब उनके सामने एक मात्रा रास्ता सड़क पर उतरने का है। रानी की तरह होटल में काम करने वाले 52 कर्मचारी मंगलवार को धरने पर बैठ गए। सभी की एक ही मांग है कि होटल खोला जाए।
ये हाल सिर्फ एचएचआई होटल का ही नहीं है, बल्कि शहर के लगभग सभी छोटे-बड़े होटलों पर ताला चढ़ा हुआ है। सरकार ने आठ जून को ही होटल खोलने की इजाजत दे दी थी लेकिन अधिकांश होटल प्रबंधन ताला खोलने को राजी नहीं है। उनका तर्क है कि जब मुसाफिर ही नहीं पहुंच रहे हैं तो फिर होटल खोलने का क्या फायदा ? जब आमदनी ही नहीं हो रही है तो सैलरी कहां से दें ?
होटल प्रबंधन सिर्फ चुनिंदा कर्मचारियों के भरोसे होटल चला रहे हैं। उनके सामने परेशानी सिर्फ सैलरी नहीं है। सैलरी के अलावा बिजली का बिल भी एक बड़ी समस्या है। दूसरी तरफ इन होटलों में काम करने वाले हजारों कर्मचारी समझ नहीं पा रहे कि करें तो क्या करें।
एचएचआई होटल में कर्मचारी संघ के अध्यक्ष संजय चौधरी बताते हैं, ‘बहुत से ऐसे कर्मचारी हैं, जिन्होंने होटल को चलाने में खून पसीना बहाया है। लेकिन अब मुश्किल की इस घड़ी में होटल प्रबंधन ने आंखें मूंद ली है। बताईए अब हम कहां जाए। चार महीने से सैलरी नहीं मिल रही है। और आगे मिलने की उम्मीद भी नहीं दिख रही है। हम लोगों के सामने अब धरना-प्रदर्शन के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है।’
क्यों बेबस बने हैं होटल प्रबंधन ?
बनारस में होटल कारोबार का अर्थतंत्र पूरी तरह बैठा हुआ है। आमतौर पर अगस्त से मार्च में बनारस में सैलानियों की संख्या सबसे अधिक होती है। मतलब पर्यटन के लिहाज से पीक सीजन की शुरुआत हो चुकी है लेकिन अभी तक होटलों पर ताला चढ़ा हुआ है। होटल प्रबंधन बेबस हैं।
उनके पास कर्मचारियों की सैलरी देने के अलावा कई और समस्याएं हैं। बनारस होटल एसोसिएशन के महामंत्री गोकुल शर्मा की लाचारी को भी जानिए। कहते हैं, ‘इस उद्योग में जान फूंक पाना कठिन है। युद्धकाल में भी ऐसी मुश्किल नहीं आई थी। हम तो मान चुके हैं कि होटल व्यवसाय हाल-फिलहाल उबर पाएगा? लोन चुकाने के लिए अगर बैंक दबाव डालेंगे तो दो नतीजे आएंगे। उन्हें होटल गिरबी रखना पड़ेगा या फिर भीख मांगनी पड़ेगी। हम सरकार से क्या उम्मीद करें। इतना जरूर चाहते हैं कि बनारस को बचाना है तो पुराने कर्ज माफ किए जाएं। लाकडाउन तक बिजली का भार घटा दिया जाए। तमाम तरह के टैक्स में सहूलियत दी जाए।’
क्या है बनारस में होटल कारोबार का अर्थतंत्र ?
-वाराणसी में छोटे-बड़े होटलों की संख्या 430 है।
-लगभग 25-30 हजार परिवार व्यवसाय से जुड़े।
-इन होटलों में आने वाले सैलानियों की बदौलत हर साल लगभग 450 करोड़ रुपए का कारोबार होता है।
-पर्यटन के लिहाज से अगस्त से फरवरी महीने को पीक सीजन माना जाता है।
-हर साल इस दौरान लगभग 45-50 लाख देसी और विदेशी मूल के सैलानी पहुंचते हैं ।
-भारत सरकार के 110 गाइड है जबकि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर 100 गाइड है।
वहीं अगर पूरे देश की बात करें तो कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री के मुताबिक कोरोना के बाद हुए लॉकडाउन की वजह से बड़े होटल समूहों को करीब 1.10 लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा। ऑनलाइन ट्रेवल एजेंसियों को करीब 4,312 करोड़ रुपये का नुकसान होगा।
टूर ऑपरेटर्स को करीब 25,000 करोड़, एडवेंचर टूर ऑपरेटर्स को करीब 19,000 करोड़ और क्रूज टूरिजम को करीब 419 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा। केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक इंडस्ट्री को कुल मिलाकर करीब पांच लाख करोड़ रुपये का नुकसान होने की आशंका है।
उदाहरण के लिए रिजर्व बैंक ने लोन चुकाने के लिए तीन महीने की रियायत दी है, लेकिन इतनी बड़ी इंडस्ट्री को खड़ा होने और फिर से लोन चुकाने लायक पैसे कमाने में तीन महीने से ज्यादा का ही वक्त लगेगा। ऐसे में ये इंडस्ट्री सरकार से कुछ और रियायतें मांग रही है।
कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री के मुताबिक इस इंडस्ट्री के पास नवंबर, 2020 की शुरुआत से पहले कैश फ्लो नहीं आ पाएगा और सबकुछ ठीक रहा तो 2021 की शुरुआत में ये इंडस्ट्री फिर से खड़ी हो पाएगी।
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