Varanasi: ब्राह्मणों ने मांगा सूर्य से तेज, पाप की मांगी क्षमा याचना
वाराणसीः सनातन धर्म में दशहरा क्षत्रियों का प्रमुख पर्व है वहीं दीपावली वैश्यों व होली अन्य जनों के लिए विशिष्ट महत्व का पर्व है. वहीं रक्षाबंधन अर्थात् श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाने वाला श्रावणी उपाकर्म ब्राह्मणों व द्विजों का सबसे बड़ा पर्व है. इसी क्रम में सोमवार को वाराणसी में गंगा स्नान तथा तर्पण एवं आत्म शुद्धि क्रिया के पश्चात् शास्त्रार्थ महाविद्यालय के सरस्वती भवन में सप्तऋषि पूजन किया गया.
इसमें उपस्थित सभी ब्राह्मणों ने सप्त ऋषियों का पूजन-अर्चन कर वर्ष पर्यंत धारण करने वाले यज्ञोपवित को अभिमंत्रित किया. उपाकर्म का संयोजन विप्र समाज के संयोजक व शास्त्रार्थ महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. पवन कुमार शुक्ल ने किया. यह उपाकर्म प्रतिवर्ष श्रावण पूर्णिमा (रक्षाबंधन) वाले दिन होता रहा है. सोमवार को प्रात: गंगा तट के अहिल्याबाई घाट पर विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी विप्र समाज, उत्तर प्रदेश एवं शास्त्रार्थ महाविद्यालय, दशाश्वमेध के संयुक्त तत्वावधान में शुक्लयजुर्वेदीय माध्यांदिनी शाखा के ब्राह्मणों द्वारा श्रावणी मनाई गई.
आत्मशुद्धि का है यह उत्सव
वैदिक काल से द्विज जाति पवित्र नदियों व तीर्थों के तट पर आत्मशुद्धि का यह उत्सव मनाती आ रही है. इस कर्म में आंतरिक व बाह्य शुद्धि के लिए गोबर, मिट्टी, भस्म, अपामार्ग, दूर्वा, कुशा एवं वेद मंत्रों द्वारा की जाती है.
महाऔषधि है पंचगव्य…
श्रावणी में दूध, दही, घृत, गोबर, गोमूत्र का प्राशन कर शरीर के अंतःकरण को शुद्ध किया जाता है. परम्परा को अक्षुण बनाए रखा है. प्रतिवर्षानुसार प्राचीन वैदिक परम्परा को जीवंत रखते हुए ब्राह्मणों ने श्रावणी उपाकर्म किया. पं.विकास दीक्षित के आचार्यत्व में सर्वप्रथम गाय के गौमय, गौघृत, गौदुग्ध, गौदधि तथा गौमूत्र मिश्रित पंचगव्य से स्नान तथा उसका पान करने के बाद भस्मलेपन किया गया . श्रावणी में अपामार्ग के पत्तों एवं कुशा एवं दूर्वा का भी नियमानुसार प्रयोग किया गया .
देश-देशांतर में बैठे जनेऊधारी व्यक्ति आते हैं काशी
कायर्क्रम के संयोजक शास्त्रार्थ महाविद्यालय के पूर्व राष्ट्रपति पुरस्कृत प्राचार्य डॉ.गणेश दत्त शास्त्री ने बताया कि श्रावणी उपाकर्म का आयोजन प्राचीन काल से ही नदियों,तालाबों के किनारे विधिपूर्वक ऋषियों-मुनियों द्वारा किया जाता रहा है. कालान्तर में धीर-धीरे यह पद्धति काफी विकसित हुई और आज वर्ष में एक बार इस उपाकर्म को करने के लिए देश-देशांतर में बैठे जनेऊधारी व्यक्ति काशी आते हैं और इस उपाकर्म को ग्रहण कर अपने को धन्य करते हैं.
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इनकी रही उपस्थिति…
इस अवसर पर डॉ. गणेश दत्त शास्त्री,ज्योतिषाचार्य डॉ.आमोद दत्त शास्त्री,डॉ.अशोक पाण्डेय,आचार्य विशाल औढेंकर,विनय कुमार तिवारी “गुल्लू महाराज”,दिनेश शंकर दूबे,अविनाश पाण्डेय “सुट्टू महाराज”,डॉ.शेषनारायण मिश्र,विजय द्विवेदी,गणेश प्रसाद शुक्ल,विकास महाराज,अजय पाण्डेय,श्रेयांश दत्त शुक्ला,दिव्यांश दत्त शुक्ला,अनिरूद्ध शास्त्री,मुकुंद मुरारी पाण्डेय आदि विद्वान् सहित सैकड़ों द्विज ब्राह्मण शामिल रहे .