Varanasi : सर्व सेवा संघ ध्वस्तीकरण के खिलाफ 100 दिनों का सत्याग्रह

कृष्णा मोहंती की आंखों में आंसू और दिल में दुख, सत्याग्रह का संकल्प लेकर अन्याय के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत.

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वाराणसी के सर्व सेवा संघ पर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई के खिलाफ सत्याग्रह जारी है. 11 सितंबर, जो विनोबा भावे की जयंती का दिन है, इसी दिन से सत्याग्रह की शुरुआत हुई. कृष्णा मोहंती, जो कि इस संघर्ष की एक प्रमुख नेता हैं, ने बताया कि वे उसी दिन से इस आंदोलन में शामिल हैं. उन्होंने सत्याग्रह के महत्व को बताते हुए कहा, “सत्याग्रह का मतलब अहिंसा की लड़ाई है और हम अन्याय के खिलाफ यह लड़ाई लड़ रहे हैं. जिस तरीके से अलोकतांत्रिक रूप से इमारत को ध्वस्त किया गया, वह दिल तोड़ने वाला था.”

ध्वस्तीकरण की मार्मिक घटना

कृष्णा मोहंती ने बताया कि जब उन्होंने वीडियो के माध्यम से सर्व सेवा संघ की इमारत का ध्वस्तीकरण देखा, तो वह वहीं खड़ी-खड़ी फूट-फूटकर रोने लगीं. किताबों को बिखेरा जा रहा था, बुलडोजर चल रहे थे, और इस दृश्य ने उन्हें गहरे भावनात्मक दर्द में डाल दिया. “हम लोग इस जगह से केवल नैतिक रूप से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, व्यक्तिगत, और भावनात्मक रूप से जुड़े हुए थे,” उन्होंने कहा.

यहां उनके तीनों बच्चों ने पढ़ाई की थी, और उनके दीदी-जीजा भी इस स्थान पर रहते थे और अपना जीवन सेवा संघ को समर्पित किया था. इस केंद्र की स्थापना विनोबा भावे की इच्छा से की गई थी और इसे साधना केंद्र के रूप में देखा जाता था.

Krishna Mohanti

अन्याय के खिलाफ संघर्ष

कृष्णा मोहंती ने बताया कि जब ध्वस्तीकरण हुआ, कोर्ट का फैसला आना अभी बाकी था. दो दिनों के बाद आदेश आने वाला था, लेकिन उससे पहले ही प्रशासन ने इमारत को तोड़ दिया. उन्होंने कहा, “यह अन्याय है, और अन्याय करने वाले लोग मानवता भूल जाते हैं.” सत्याग्रह का संकल्प लेते हुए उन्होंने कहा कि वे और उनके साथी इस अन्याय के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे.

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सर्व सेवा संघ: एक ऐतिहासिक धरोहर के लिए सत्याग्रह 

सर्व सेवा संघ से कई ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरें जुड़ी हैं. महात्मा गांधी के विचार और उनके सिद्धांत यहां की नींव रहे हैं. कृष्णा मोहंती ने याद किया कि कैसे जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री जैसे प्रमुख नेताओं ने इस स्थान का दौरा किया था.

ध्वस्तीकरण के दिन यहां की किताबें फेंक दी गईं और वृद्ध लोगों को जबरन बाहर निकाला गया. यह दृश्य भावनात्मक और नैतिक रूप से हृदयविदारक था. मोहंती ने कहा, “इतना अन्याय अपने देश में देखना अकल्पनीय था. हमारा देश एक गणतांत्रिक देश है, और यहां अलोकतांत्रिक तरीके से यह सब हुआ है.”

महात्मा गांधी की यादें

कृष्णा मोहंती ने अपने बचपन के दिनों को याद किया, जब वह महात्मा गांधी से रोजाना मिला करती थीं. महज 6 साल की उम्र में उन्होंने गांधी जी को देखा और उनके साथ कई बार टहलने का अवसर भी मिला. उन्होंने बापू की हंसी और उनके सरल स्वभाव को याद किया, जो उन्हें आज भी प्रेरणा देता है.

गांधी जी के विचारों को याद करते हुए मोहंती ने कहा, “गांधी जी ने कहा था कि मैं अपनी कब्र से भी उठूंगा, और यह सत्याग्रह उन्हें कब्र से उठाने का एक अवसर है.”

सत्य की ताकत से सत्याग्रह 

कृष्णा मोहंती और उनके साथियों का मानना है कि सत्य को कोई मिटा नहीं सकता. उन्होंने कहा कि सत्य को बार-बार तोड़ने की कोशिश की गई, लेकिन वह हर बार और अधिक मजबूत होकर उभरेगा. “यह संघर्ष गांधी जी के विचारों को जीवित रखने की कोशिश है, और हम इसे जारी रखेंगे,” उन्होंने कहा.

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समाप्ति: यह सत्याग्रह सिर्फ एक ध्वस्तीकरण के खिलाफ लड़ाई नहीं है, बल्कि यह गांधी जी के सिद्धांतों और विचारों को जिंदा रखने की कोशिश है. अन्याय के खिलाफ इस अहिंसात्मक लड़ाई में शामिल लोग अपने संघर्ष को जारी रखने का संकल्प ले चुके हैं.

 

 

 

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