हाल ही में बने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने शुक्रवार रात करीब सवा 11 बजे राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को अपना इस्तीफा सौंप दिया। वे सिर्फ 115 दिन ही मुख्यमंत्री रह पाए।
राजभवन जाने से पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस में गिनाईं उपलब्धियां, इस्तीफे के सवालों पर रहे चुप
राजभवन जाने से पहले रात पौने 10 बजे रावत ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इसमें उन्होंने अपने कार्यकाल की गिनाईं। इसके बाद वे प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म कर चले गए। पत्रकारों ने उनसे इस्तीफे के बारे में सवाल भी किया, लेकिन वे बिना जवाब दिए निकल गए।
पहले कहा गया था कि तीरथ सिंह रावत भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा को इस्तीफा सौंप चुके हैं। अब राज्य के नए मुख्यमंत्री के तौर पर धन सिंह रावत और सतपाल महाराज के नाम चर्चा में हैं। भाजपा ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को राज्य के लिए केंद्रीय पर्यवेक्षक बनाया है। वह शनिवार को बैठक में मौजूद रहेंगे।
संविधानिक संकट या आलाकमान से प्रेशर?
रावत का कहना है कि संविधानिक संकट के चलते उन्होंने इस्तीफा दिया है. वहीं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने कहा कि आलाकमान के कहने पर मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दिया है। उन्होंने बताया कि अगला मुख्यमंत्री कोई विधायक ही होगा। शनिवार को होने वाली विधायक दल की बैठक में इस पर फैसला लिया जाएगा।
विवादित बयान और कुम्भ, इस्तीफे कि वजह?
रावत मुख्यमंत्री पद कि शपथ लेने के बाद से ही अपने विवादित बयानों से मीडिया में छाए रहते थे, जिससे पार्टी कि छवि पर काफी असर पड़ा है. सूत्रों के मुताबिक, पार्टी ने दिल्ली बुलाकर उनसे इस्तीफा मांग लिया और उन्होंने पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा को इस्तीफा सौंप भी दिया है.
कुंभ के दौरान तीरथ सिंह रावत ने जिस तरह से भीड़ को जमा होने की छूट दी और उसके बाद कोरोना जांच के नाम पर फर्जीवाड़े में उनके करीबियों का नाम उछला, उससे उनकी स्थिति काफी खराब हो गई। वैसे भी तीरथ जिस तरह से काम कर रहे थे, उससे भाजपा को लगने लगा था कि आगामी चुनाव में उसकी नैया पार नहीं लगने वाली।
तीरथ सिंह रावत के सामने संवैधानिक समस्या क्या थी?
त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद तीरथ सिंह रावत ने 10 मार्च को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। अब संविधान के मुताबिक पौड़ी गढ़वाल से भाजपा सांसद तीरथ को 6 महीने के भीतर विधानसभा उपचुनाव जीतना था, तभी वह CM रह पाते। यानी 10 सितंबर से पहले उन्हें विधायकी जीतनी थी। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि तीरथ सिंह गंगोत्री से चुनाव लड़ेंगे। आम आदमी पार्टी ने तो यहां उनके खिलाफ अपना कैंडिडेट कर्नल अजय कोठियाल को बना भी दिया था।
फिर से बन सकते हैं मुख्यमंत्री या मिल सकता है केंद्रीय राजनीत का टिकेट?
चुनाव आयोग द्वारा सितंबर से पहले उपचुनाव कराने से इनकार करने के बाद सीएम रावत के सामने विधायक बनने का संवैधानिक संकट खड़ा हो गया। हालांकि वह 6 माह पूरा होने से पहले इस्तीफा देकर दोबारा शपथ ले सकते थे, लेकिन भाजपा को अगले साल के शुरू में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ऐसा करना ठीक नहीं लग रहा था। तीरथ को हालांकि भाजपा केंद्र में भी पद दे सकती है, क्योंकि वह पौड़ी गढ़वाल सीट से सांसद भी हैं।
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